सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के जवाब के बाद हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा देने से जुड़ी चर्चाओं ने फिर जोर पकड़ लिया है। इसी कड़ी में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि राज्य में अब मुस्लिम अल्पसंख्यक दर्जे के अधिकारी नहीं हैं। कई जिले ऐसे हैं जहाँ हिंदुओं की जनसंख्या बेहद कम है। उनका कहना है कि ऐसे जिलों में हिंदुओं को माइनॉरिटी घोषित किया जाना चाहिए।
सरमा ने सोमवार (28 मार्च 2022) को कहा, “जब हिंदू राज्य में बहुसंख्यक नहीं हैं, तो आप उन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर सकते हैं। मैं अपील करना चाहूँगा कि जिस जिले में हिंदू समुदाय बहुसंख्यक नहीं हैं, कम से कम उन जिले में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित किया जाए। असम में कई ऐसे जिले हैं, जहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हैं। उनमें से कुछ में 5,000 से भी कम हिंदू रहते हैं।” उन्होंने यह भी कहा, “मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक हैं। असम में यह सबसे बड़ा समुदाय है। यह मेरी व्यक्तिगत राय नहीं है। आँकड़े बताते हैं कि मुस्लिम असम में सबसे बड़ा समुदाय हैं।”
इससे पहले विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर बहस के दौरान असम के मुख्यमंत्री ने कहा था, “आज मुस्लिम समुदाय के लोग विपक्ष में नेता हैं, विधायक हैं और उनके पास समान अवसर और शक्ति है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है कि आदिवासी लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाए और उनकी भूमि पर कब्जा नहीं किया जाए।”
असम के मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की समीक्षा करने की भी अपील की है। उन्होंने कहा है, “हमने पहले भी कहा था कि पुराने एनआरसी की समीक्षा की जानी चाहिए और नए सिरे से इसे किया जाना चाहिए। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के साथ हमारी चर्चा चल रही है। हम चाहते हैं कि राज्य में फिर से एनआरसी हो।” मालूम हो कि NRC की अपडेटेड लिस्ट अगस्त 2019 में प्रकाशित हुई थी और 3.3 करोड़ आवेदकों में से 19.06 लाख से अधिक लोगों को इससे बाहर कर दिया गया था।
बता दें कि सोमवार को (28 मार्च 2022) केंद्र की मोदी सरकार ने भी कुछ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यकों का दर्जा देने की माँग करने वाली याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कोर्ट को बताया था कि राज्य अपने हिसाब से हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकते हैं। केंद्र ने यह भी कहा कि जिस प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर ईसाई, सिख, मुस्लिम, बौद्ध पारसी और जैन को माइनॉरिटी का तमगा मिला है, वैसे ही राज्य भाषायी या फिर संख्या के आधार पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखने के लिए स्वतंत्र हैं।