साल 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद यदि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापस लौटती है तो पुष्कर सिंह धामी ही राज्य के मुख्यमंत्री बनाए जाएँगे। धामी के दोबारा सीएम बनने पर सवाल उठने के बाद आज (22 दिसंबर) यह घोषणा उत्तराखंड के भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक ने की है। उन्होंने टाइम्स नाऊ नवभारत से बात करने के दौरान कहा कि कॉन्ग्रेस पर तंज कसा कि जो अपने लिए अध्यक्ष नहीं चुन पाए वो नेतृत्व की बात कर रहे हैं। वो लोग अपने परिवार से ही बाहर नहीं पा रहे।
बता दें कि एक तरफ जहाँ मदन कौशिश ने सभी अटकलों पर विराम लगाया है। वहीं उत्तराखंड के सीएम की एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आई है। इस वीडियो में वह बेहद सहजता से बता रहे हैं कि कैसे साल 2017 के विधानसभा चुनावों से ही वह उम्मीद लगा रहे थे कि शायद सरकार में उन्हें जगह मिले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, फिर सरकार के चार होने पर नेतृत्व बदला तो भी उन्हें कोई पद मिलने की उम्मीद थी, लेकिन फिर भी ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद वह अपना सारा सामान लेकर देहरादून से लौट आए और उम्मीद ही छोड़ दी कि उन्हें कोई पद मिलेगा। मगर 2021 में वो समय आया जब उन्हें अपने सब्र का फल मिला।
यूथ कैन के प्रोग्राम में वह कहते हैं, “जब 2017 में विधानसभा का चुनाव हुआ और नतीजा आया, तो मैं भी चूँकि युवा मोर्चा में था, विद्यार्थी परिषद में था..सभी संगठनों में काम भी किया। सभी से जान पहचान भी थी। मुझे लगता था कि अभी मंत्रीपरिषद बन रही है तो इसमें मेरा नाम जरूर आएगा। लेकिन मेरा नाम नहीं आया। थोड़ा बहुत झटका तो लगता ही है। हर किसी को अपेक्षा होती है। ये मनुष्य का स्वभाव है कि वो दूसरों को जितना समझा ले लेकिन जब खुद पर बीतती है तो उसको संभालना थोड़ा कठिन होता है…बड़े-बड़े ज्ञानी-विज्ञानी के साथ जब कुछ घटित होता है तो उन्हें दिक्कत होती है लेकिन वो दूसरों को समझाते हैं। हमारे साथ भी यही हुआ। धक्का लगा। मगर फिर सब ठीक हो गया। क्योंकि इस पार्टी ने शुरू से ही सिखाया था राष्ट्र प्रथम है, संगठन द्वितीय है, और व्यक्ति अंतिम है। हम काम पर लग गए।“
साल 2019 के लोकसभा चुनावों के समय का अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा, “मैंने सोचा जब मेरा नाम मंत्री परिषद में नहीं आया तो मुझे लोकसभा का टिकट मिलना चाहिए। मैंने प्रयास किया। मगर, हमें मना कर दिया गया क्योंकि विधायक के जीतने से सीट खाली हो जाती फिर उपचुनाव होते…. इसके कुछ दिन बाद पार्टी का अध्यक्ष बनना था, फिर मेरा नाम जोर-शोर से चला, लेकिन उसमें भी मेरा नाम नहीं आया। इस बार मैं निराश नहीं हुआ क्योंकि मुझे आदत हो गई थी।”
राज्य में सीएम बदलने पर बात करते हुए वह बोले, “सरकार के जब चार साल पूरे हुए तो नेतृत्व परिवर्तन हो गया। सीएम बनने से पहले भी मेरा नाम आया। कभी सीएम में कभी डिप्टी सीएम में। जब दो दिन बाद शपथ हुई तो फिर कोई नाम नहीं था। अब की बार मैंने अपना सारा सामान देहरादून से लिया और चला गया। मैंने सोचा जब किसी काम से पार्टी बुलाएगी, जरूरी बैठक होगी तभी यहाँ आऊँगा। मैं भूल गया था सब। मन में निराकार भाव आ गया था। ये भाव वो होता है जब ईश्वर के अलावा कोई कुछ नहीं लगता। मैं सोचने लगा कि इस दुनिया में कोई कुछ करने वाला नहीं। मैंने पद के बारे में जब सोचना बंद कर दिया। इतने में नई स्थिति पैदा हुई। एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन हुआ। मैंने मनाया कि मेरा नाम कहीं न छपे। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इन सबसे चाहने वालों और समर्थकों को बुरा लगता है। उन्हें समझाना मुश्किल हो जाता है।”
वह कहते हैं, “मैं यमुना कॉलोनी में आकर लेटा और वहाँ से निकला ही नहीं। एक दो बार मुझे फोन भी किया गया। हल्का-फुल्का नाम आ रहा था। मैंने कहा कि कहीं भी मेरा नाम नहीं है। मैंने पत्रकारों से भी कह दिया कि मेरा नाम बिलकुल मत निकालना। सच बताऊँ तो इसके बाद किसी ने मेरा नाम लिखा भी नहीं। एक ने भी नहीं लिखा और पिर 3 जुलाई 2021 को विधान दल मंडल की बैठक होती है और मैं पीछे जाकर बैठा। नरेंद्र सिंह तोमर ने आकर माइक पकड़ा और कहा विधान मंडल दल नेता के लिए एक ही नाम आया है और सर्वसम्मति से उनका नाम सुन लिया जाता है, तब जाकर मैं आगे गया।”
युवाओं के बीच लोकप्रिय पुष्कर सिंह धामी
बता दें कि 3 जुलाई 2021 को उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को बीजेपी विधायक दल ने अपना नया नेता चुना था, जिसके बाद ये तय हो गया है कि वो राज्य के नए मुख्यमंत्री होंगे। भाजपा के आलाकमान ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पर्यवेक्षक के रूप में देहरादून भेजा था, जिनकी उपस्थिति में ये निर्णय लिया गया। पुष्कर सिंह धामी खटीमा से विधायक थे, जो उधम सिंह नगर में पड़ता है। वो वहाँ से लगातार दूसरी बार विधायक बने थे।
मुख्यमंत्री बनने से पहले युवाओं के बीच पुष्कर सिंह धामी की अच्छी लोकप्रियता और पकड़ थी। बेरोजगारी समेत अन्य मुद्दों पर वो खासे मुखर रहते हैं। 2002 से 2008 के दौर में उन्होंने पूरे प्रदेश में भ्रमण कर के कई बेरोजगार युवाओं को संगठित किया था और कई विशाल रैलियाँ की थीं। राज्य के उद्योगों में युवाओं को 70% आरक्षण दिलाने में उनकी ही सबसे बड़ी भूमिका रही थी। ऐसे कई कारणों से पार्टी ने उन पर भरोसा जताया है।