अनुच्छेद 370 एक ऐसा प्रावधान था, जिसके कारण जम्मू कश्मीर को कई विशेषाधिकार मिले हुए थे और गृहमंत्री अमित शाह ने अपने संसदीय भाषणों में कई बार दोहराया कि इससे न तो देश और राज्य का कोई भला हुआ और न ही जम्मू कश्मीर की जनता का। इस प्रावधान ने राज्य में उद्योग के प्रसार को रोक रखा था, जिससे रोजगार भी नहीं पनप सका। शेष भारत के लोग इस प्रावधान के कारण जम्मू कश्मीर में संपत्ति खरीदने के योग्य नहीं थे। इससे अब्दुल्ला व मुफ़्ती परिवार को एकछत्र सत्ता सुख भोगने का मौका मिल गया।
डॉक्टर एसएन बुसी की एक पुस्तक से कुछ नए खुलासे हुए हैं, जिसके अनुसार पंडित नेहरू जम्मू कश्मीर को धर्मनिरपेक्षता का एक मॉडल बनाना चाहते थे क्योंकि पाकिस्तान की स्थापना एक इस्लामिक राष्ट्र के रूप में हुई थी। बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर पर लिखी गई डॉक्टर बुसी की पुस्तक “Framing the Indian Constitution” के कुछ ऐसे हिस्सों के बारे में बताना जरूरी है, जिसमें नेहरू और शेख अब्दुल्ला के ‘खेल’ पर प्रकाश डाला गया है।
“Framing the #Indian Constitution”, once again reiterates how PM #JawaharlalNehru moved ahead with his idea of making the erstwhile Princely State his shop window for secularism given that the new #democratic dispensation was headed by a #Muslim in a Muslim majority #state. pic.twitter.com/BLjJbD2gpg
— IANS Tweets (@ians_india) August 11, 2019
6 वॉल्यूम में प्रकाशित इस पुस्तक के अनुसार, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके साथ के कई राष्ट्रीय नेता शेख अब्दुल्ला के साथ मिल कर जम्मू कश्मीर को विशेषाधिकार दिए जाने के लिए प्रयासरत थे। उनका मानना था कि जम्मू कश्मीर भारतीय गणराज्य का हिस्सा तो होगा लेकिन इसे कुछ विशेष प्रावधानों के तहत विशेष अधिकार दिए जाएँ। इसके बाद पंडित नेहरू ने फैसला किया कि जम्मू कश्मीर के लिए कुछ अस्थायी प्रावधान बनाए जाएँ क्योंकि राज्य को उनकी आवश्यकता है।
Therefore, Pandit #Nehru felt that it was desirable to make certain temporary provisions in respect of #JammuandKashmir state in the #Indian #Constitution.
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शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के प्रीमियर थे और संविधान सभा के सदस्य भी थे। नेहरू ने शेख अब्दुल्ला के साथ मिल कर इस विषय पर बात की। लेकिन, नेहरू को इस बात का डर था कि तत्कालीन (और देश के प्रथम) क़ानून मंत्री भीमराव अम्बेडकर नहीं मानेंगे। उन्होंने अब्दुल्ला से अम्बेडकर को मनाने को कहा। पुस्तक के अनुसार, शेख अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर के लिए अस्थायी विशेषाधिकार वाले प्रावधानों को लेकर बाबसाहब से बातचीत की।
But #DrAmbedkar was unyielding and told #SheikhAbdullah point blank in these words: “To give consent to this proposal would be a treacherous thing against the interests of #India and I, as a Law Minister of India, will never do. I cannot betray the interests of my #country.” pic.twitter.com/U3hJHIrKts
— IANS Tweets (@ians_india) August 11, 2019
ऐसा सुनते ही बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर ने शेख अब्दुल्ला को डपट दिया। बाबासाहब ने सीधे, साफ़ और सपाट शब्दों में कहा,
“अगर मैं इस प्रस्ताव (जम्मू कश्मीर को विशेषाधिकार) का समर्थन करता हूँ तो यह मेरे देश भारत के साथ विश्वासघात करने जैसा होगा। और हाँ, भारत का क़ानून मंत्री होने के नाते मैं ऐसा कभी नहीं करूँगा। मैं अपने देश के हितों के साथ धोखा नहीं कर सकता।”