केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। इस चुनाव में जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी संगठनों के नेता भी चुनाव मैदान में उतर रहे हैं, जिसने 1987 के बाद से लगातार लोकतांत्रिक कार्यकलापों का बहिष्कार किया है। यही नहीं, इस चुनाव में आतंकवादी अफजल गुरु का भाई एजाज गुरु भी अपनी किस्मत आजमा रहा है। यही नहीं, पूर्व अलगाववादियों ने तहरीक-ए-आवाम नाम की राजनीतिक पार्टी भी बनाई है।
आतंकवाद की नर्सरी से जुड़े लोगों का लोकतंत्र में लौटा विश्वास!
कश्मीर में आतकंवाद और अलगाववाद की जननी और पोषक कही जाने वाले प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के चार पूर्व नेताओं ने चुनावी दंगल में उतरते हुए बतौर निर्दलीय अपना-अपना नामांकन जमा कराया। इसमें पुलवामा विधानसभा सीट से जमात-ए-इस्लामी के पूर्व नेता तलत मजीद, कुलगाम विधानसभा क्षेत्र से जमात-ए-इस्लामी से जुड़े सयार अहमद रेशी, देवसर विधानसभा क्षेत्र से जमात-ए-इस्लामी से जुड़े रहे नजीर अहमद बट ने नामांकन कराया है।
इसके अलावा सरजन अहमद बागे उर्फ सरजन बरकती उर्फ आजादी चाचा ने शोपियाँ के जेनपोरा विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय पर्चा भरता है। वो टेरर फंडिंग के मामले में जेल में है। तो संसद हमले में फाँसी की सजा पाने वाले आतंकी अफजल गुरु का भाई एजाज गुरु भी उत्तरी कश्मीर में सोपोर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। हालाँकि इन लोगों ने तहरीक-ए-आवाम नाम की पार्टी बनाई है, लेकिन अभी तक चुनाव आयोग से पार्टी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है, ऐसे में सभी निर्दलीय ही मैदान में हैं।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक, तलत मजीद कहा कि मौजूदा वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए,जम्मू कश्मीर में जो हालात हैं, उन्हें देखते हुए मेरा मानना है कि हमारा चुनावी प्रक्रिया में शामिल होने का वक्त आ चुका है। कश्मीर मुद्दे पर आज से पहली मेरी क्या राय थी, वह सार्वजनिक है। जमात-ए-इस्लामी और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्यकों ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। बतौर कश्मीरी हमें अतीत में नहीं बल्कि वर्तमान में जीना चाहिए और एक बेहतर भविष्य के लिए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
बता दें कि 1987 तक जमात-ए-इस्लामी ने जम्मू-कश्मीर में हुए लगभग हर विधानसभा चुनाव में भाग लिया है। जम्मू कश्मीर में 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में जमात-ए-इस्लामी के 22 में से 5, 1977 के विधानसभा चुनाव में 19 में एक प्रत्याशी ने जीत दर्ज की जबकि 1983 के चुनाव में इसने 26 उम्मीदवार मैदान में उतारे और सभी हार गए। इसके बाद 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के बैनर तले कश्मीर में चुनाव लड़ने वाले जमात के 4 सदस्यों ने जीत हासिल की थी। तब से जमात ए इस्लामी ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया।
यहाँ ये बात फिर से ध्यान दिलाना जरूरी है कि भारत में वही व्यक्ति राजनीतिक गतिविधियों में भाग ले सकता है, जिसने भारत की एकता और अखंडता की शपथ ली हो। खासकर राजनीतिक पार्टियों से जुड़े मामलों में ऐसा ही है। भारत के 16वें संविधान संसोधन के मुताबिक, वही राजनीतिक दल भारत के लोकतंत्र का हिस्सा बन सकेंगे, जिन्होंने भारत की संप्रभुता और अखंडता के प्रति शपथ लिया हो। भारत के 16वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1963 के तहत, भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में भाषण और अभिव्यक्ति, शांतिपूर्ण सभा, और संघ की आज़ादी पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसके अलावा, विधायकों, मंत्रियों, न्यायाधीशों, और सीएजी को जो शपथ और घोषणाएं लेनी होती हैं, उनमें भी संप्रभुता और अखंडता की अवधारणाएँ जोड़ी गईं।
प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने उतारे उम्मीदवार
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए मुख्य राजनीतिक पार्टियों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी है। बीजेपी ने 2 तिहाई सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं, तो कॉन्ग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस साथ में चुनाव लड़ रहे हैं। पीडीपी भी अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर रही है। अन्य छोटे-मोटे दल भी अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार रहे हैं। माकपा ने कॉन्ग्रेस-नेकॉं के साथ गठबंधन किया है, तो पैंथर्स पार्टी भी उनके साथ है।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होंगे। नतीजे 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएँगे। पहले चरण के लिए नामांकन 27 अगस्त, दूसरे चरण के लिए 5 सितंबर और तीसरे चरण के लिए 12 सितंबर से दाखिल किए जाएँगे। इस चुनाव में कश्मीरी प्रवासियों के लिए दिल्ली, जम्मू और उधमपुर में स्पेशल पोलिंग बूथ बनाए गए हैं।
जम्मू-कश्मीर में कुल 90 निर्वाचन क्षेत्र हैं जिनमें से 74 जनरल, 9 अनुसूचित जाति और 7 अनुसूचित जनजाति के लिए हैं। केंद्रशासित प्रदेश में मतदाताओं की संख्या कुल 87.09 लाख हैं जिसमें 44.46 लाख पुरुष और 42.62 लाख महिला मतदाता हैं। जम्मू-कश्मीर में युवा मतदाताओं की संख्या 20 लाख है। पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया था।