Sunday, December 22, 2024
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रायबरेली में कमला नेहरू ट्रस्ट की विवादित जमीन पर चला योगी सरकार का बुलडोजर: अवैध निर्माण ध्वस्त

बुधवार (16 दिसंबर, 2020) तड़के जिला प्रशासन ने जमीन पर सभी अवैध निर्माण को ध्वस्त करना शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने पुलिस पर पथराव किया जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा लिया लेकिन तोड़फोड़ जारी रही। इस दौरान कुछ गिरफ्तारियाँ भी की गई।

उत्तर प्रदेश के रायबरेली के लखनऊ-प्रयागराज NH-30 स्थित सिविल लाइन चौराहा के बहुचर्चित करोड़ों की फर्जी कमला नेहरू ट्रस्ट नाम से दर्ज जमीन विवाद मामले को लेकर जिला प्रशासन ने अवैध रूप से कब्जा जमाए लोगों की दुकानों और मकान पर बुलडोजर चलावा दिया है। कथित तौर पर ट्रस्ट द्वारा भाजपा नेता को जमीन बेचने के बाद यह मामला पहली बार उच्च न्यायालय में गया। क्योंकि जमीन का स्थानांतरण विवादित था।

जिसके बाद उच्च न्यायालय ने जिला प्रशासन के पक्ष में फैसला दिया और इसे नजूल भूमि घोषित कर दिया। बता दें नजूल भूमि मूल रूप से ऐसी भूमि होती है, जिसका कोई दावेदार नहीं है और इसे सरकार से संबंधित माना जाता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकारी जमीन पर फर्जी तरीके से कब्जा जमाए लोगों से जमीन को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने खाली करवाने के आदेश कई महीने पहले ही दिए थे। अदालत के आदेशों के बाद, ज़िला प्रशासन ने ज़मीन का अतिक्रमण करने वाले लोगों को नोटिस दिया और फिर उनकी बिजली काटी गई, लेकिन उसके बाद भी जमीन खाली नहीं नही हो पाई थी।

जिसके बाद बुधवार (16 दिसंबर, 2020) तड़के जिला प्रशासन ने जमीन पर सभी अवैध निर्माण को ध्वस्त करना शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने पुलिस पर पथराव किया जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा लिया लेकिन तोड़फोड़ जारी रही। इस दौरान कुछ गिरफ्तारियाँ भी की गई।

कमला नेहरू ट्रस्ट

कमला नेहरू ट्रस्ट चालीस साल पहले एक शैक्षिक समाज, स्कूल और अस्पताल बनाने के उद्देश्य से बनाया गया था। कमला नेहरू एजुकेशनल सोसाइटी की स्थापना 1976 में रायबरेली के सिविल लाइंस इलाके में सिधौली के रहने वाले कैलाश चंद्र द्वारा 1135 रुपए के वार्षिक किराए पर ली गई थी।

कथिततौर पर लड़कियों के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सोसाइटी ने 30 साल के लिए जमीन को लीज पर ली थी। हालाँकि, जमीन पर कोई कार्य नहीं किया गया, कोई निर्माण नहीं हुआ और जमीन पर सैकड़ों लोगों द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया था। दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित, पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के निजी सहायक यशपाल कपूर और पूर्व मंत्री शीला कौल, हाल ही में लखनऊ में जिनके घर प्रियंका गाँधी वाड्रा के रहने की व्यवस्था की गई थी, सहित सोसाइटी के सभी 8 सदस्यों का निधन हो चुका है।

जिसके बाद 2003 में एक नई समिति का गठन किया गया था। जिसमें कौल परिवार के सदस्य, पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद और वरिष्ठ वकील ललित भसीन शामिल थे। सोसाइटी ने 2003 में भूमि को एक फ्रीहोल्ड संपत्ति घोषित कर दिया और 2016 में इसे बेचने का फैसला किया। लगभग 6 महीने से जिला प्रशासन अदालत के आदेशों के अनुसार संपत्ति को खाली कराने का प्रयास कर रहा है, लेकिन लोगों ने भूमि को खाली करने से इनकार कर दिया था।

भाजपा नेता अदिति की भूमिका

उल्लेखनीय है कि पिछले महीने भाजपा नेता व पूर्व में रायबरेली से कॉन्ग्रेस की विधायक रही अदिति सिंह ने इकोनॉमिक ऑफिसर विंग (EOW) को पत्र लिखकर कमला नेहरू एजुकेशनल सोसायटी में कथित वित्तीय अनियमितताओं की जाँच की माँग की थी। सिंह ने आरोप लगाया था कि जिस उद्देश्य के लिए इसका गठन किया गया था वह समाज की सेवा नहीं था। उन्होंने कहा कि भूमि को फ्रीहोल्ड भूमि में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि 100 से अधिक दुकानें थीं जिनसे लगभग 600 लोगों की दैनिक रोजी रोटी चलती है।

जिसके मद्देनजर योगी सरकार ने नवंबर 2020 में कमला नेहरू ट्रस्ट के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोपों की जाँच का आदेश दिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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