Sunday, November 17, 2024
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पर्यावरण के नाम पर वसूले ₹883 करोड़, खर्चे बस ₹14 करोड़: केजरीवाल सरकार ने RTI में खोली खुद की पोल

इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का दिल्ली सरकार से पूछना है कि आखिर जब इस तरह जनता के पैसे खाने थे तो फिर ऑड-ईवन का नाटक क्यों किया गया था? एक यूजर तंज कसते हुए कहता है कि 1% प्रदूषण रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया, क्योंकि बाकी का विज्ञापन पर यूज होना था।

दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार प्रदूषण की समस्या को लेकर कितनी ‘गंभीर’ है यह एक आरटीआई जवाब से फिर उजागर हुआ है। द संडे गार्जियन की खबर के अनुसार केजरीवाल सरकार ने बीते चार साल में पर्यावरण के नाम पर 883 करोड़ रुपए इकट्ठे किए हैं। लेकिन, प्रदूषण रोकने पर इस राशि का केवल 1.6 फीसदी ही खर्च किया गया है। यानी 883 करोड़ रुपए में से केवल 141,280,000 रुपए खर्च किए गए हैं।

यह चौंकाने वाला खुलासा दिल्ली सरकार के ट्रांसपोर्ट विभाग ने स्वयं संडे गार्जियन की आरटीआई के जवाब में किया है। विभाग द्वारा मुहैया करई गई जानकारी के मुताबिक दिल्ली सरकार ने साल 2017 में पर्यावरण कर के नाम पर 503 करोड़ रुपए, साल 2018 में 228 करोड़ रुपए और साल 2019 में 110 करोड़ रुपए इकट्ठा किए। इसके अलावा सरकार पर्यावरण उपकर के नाम पर साल 2020 में सितंबर तक 4 करोड़ रुपए जमा कर चुकी है।

रिपोर्ट बताती है कि पर्यावरण कर को दिल्ली सरकार क्षतिपूर्ति शुल्क के रूप में एकत्रित करती है। इसका एक बड़ा हिस्सा उन ट्रकों से लिया जाता है जो आए दिन दिल्ली में घुसते हैं और जिनके कारण प्रदूषण फैलता है। इस सूचना में आगे कहा गया है कि दिल्ली सरकार पर्यावरण उपकर का केवल बहुत छोटा हिस्सा सालों से प्रदूषण रोकने के लिए इस्तेमाल कर रही है।

आरटीआई यह भी बताती है कि दिल्ली सरकार ने पिछले चार सालों में सिर्फ 15 करोड़ 58 लाख रुपए पर्यावरण संरक्षण और साफ हवा के लिए खर्च किया है, जबकि साल 2017 में इकट्ठा हुए उपकर में से केजरीवाल सरकार ने एक रुपया भी खर्च नहीं किया है।

साल 2018 के कर में से 15 लाख रुपए एनएमवी (नॉन-मोटर व्हीकल) लेन के सुधार और रखरखाव के लिए खर्च किए गए थे और शहर में मार्शल के रूप में नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों की तैनाती के लिए 43 करोड़ रुपए खर्च किया गया।

यहाँ याद दिला दें कि साल 2017 में आम आदमी पार्टी सरकार ने हाइड्रोजन पावर बस लाने का वादा किया था, लेकिन आरटीआई जवाब में बताया गया है कि साल 2019 तक इस पर सिर्फ 15 करोड़ खर्च हुआ है और 265 करोड़ रुपए दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल ट्रांसपोर्ट प्रणाली के सुधार के लिए खर्च किया गया है।

साल 2017 में द न्यूज इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक फंड का सही उपयोग न कर पाने के कारण AAP सरकार को कॉन्ग्रेस तक घेर चुकी है। कॉन्ग्रेस नेता अजय माकन ने उस समय आरोप लगाया था कि दिल्ली सरकार फंड का सही प्रयोग नहीं कर पा रही है और न ही ट्रांसपोर्ट सुविधा सुधार रही है।

अब सोचने वाली बात है कि दिल्ली में आए दिन प्रदूषण के नाम पर पड़ोसी राज्यों को दोषी ठहराने वाली केजरीवाल सरकार का मकसद क्या है? आखिर क्यों हमें भ्रम में रख कर ऐसा दर्शाया जा रहा है कि सरकार प्रदूषण के लिए नित नए कदम उठा रही है, लेकिन उसे दूसरे लोग सहयोग नहीं कर रहे।

‘ऑड-ईवन’ से लेकर ‘रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ’ तक का आह्वान करवाने के लिए दिल्ली सरकार जोर-शोर से जनता के सामने विज्ञापन करती है। लेकिन ऐसे प्रयोगों के नतीजे जब देने होते हैं तो दिल्ली की जनता का आभार व्यक्त करके उससे उनका ध्यान भटका दिया जाता है। 

संडे गार्जियन की यह रिपोर्ट सवाल उठाती है कि आखिर क्यों प्रदूषण जैसी व्यापक समस्या से उभरने के लिए सरकार ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए? आखिर क्यों आम आदमी पार्टी ने एक भी बार पर्यावरण के नाम पर इकट्ठा धनराशि का जवाब देना सही नहीं समझा? क्या केवल दिवाली पर पटाखे बैन से समस्या का समाधान हो जाएगा? क्या केवल ग्रीन दिल्ली एप लॉन्च करने से दिल्ली का AQI सुधर जाएगा?

इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का दिल्ली सरकार से पूछना है कि आखिर जब इस तरह जनता के पैसे खाने थे तो फिर ऑड-ईवन का नाटक क्यों किया गया था? एक यूजर तंज कसते हुए कहता है कि 1% प्रदूषण रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया, क्योंकि बाकी का विज्ञापन पर यूज होना था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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