Wednesday, November 13, 2024
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एक फूल से मणिपुर में खिला कमल: जानिए कैसे बीजेपी ने पाटी मैतेई और नागा के बीच की खाई, कभी इन्हें बाँटकर राज करती थी कॉन्ग्रेस

“कॉन्ग्रेस के मंत्री मुश्किल से कभी पहाड़ियों में आते थे। लेकिन 2017 से हर दूसरे महीने यहाँ कोई न कोई कैबिनेट या केंद्रीय मंत्री आते हैं। लोग इसे पसंद करते हैं।”

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा के साथ ही 10 मार्च 2022 को मणिपुर के भी नतीजे आए थे। राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में बीजेपी 32 सीटें हासिल कर बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। पार्टी को करीब 38 फीसदी वोट भी मिले हैं।

मणिपुर उन राज्यों में से है जहाँ कुछ साल पहले तक बीजेपी का कोई खासा असर नहीं था। 2017 विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी भलेसरकार बनाने में सफल रही थी, लेकिन उसे केवल 21 सीटें हासिल हुई थी। NPP और निर्दलीयों के समर्थन से एन बीरेन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार का गठन किया था। बीरेन सिंह भी चुनावों से ठीक पहले कॉन्ग्रेस से बीजेपी में आए थे।

ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि 5 साल में बीजेपी ने ऐसा क्या किया, जिसकी वजह से इस बार चुनावों में एंटी इनकंबेंसी फैक्टर निष्प्रभावी हो गया। आपको शायद हैरत हो पर यह एक फैक्ट है कि बीजेपी सरकार के एक फूल महोत्सव ने न केवल राज्य में पार्टी को मजबूती दी, बल्कि 2022 में बहुमत के साथ सत्ता में उसकी वापसी करवाने में भी बड़ी भूमिका निभाई है।

जानकारों का मानना है कि 2017 के चुनाव में ट्राइबल बिल की वजह से भाजपा को मणिपुर में लाभ मिला था। सत्ता में आने के बाद भौगोलिक तौर पर दो हिस्सों में बँटे मणिपुर में एन बीरेन सरकार ने ‘Go to hills’ की नीति अपनाई। इस कदम ने पार्टी को राज्य में स्थापित होने में मदद की। 

दरअसल, राज्य में घाटी और जंगल दो हिस्से हैं। घाटी में मैतेई रहते हैं और जंगल में नागा। दोनों राज्य की प्रमुख जनजाति हैं। लेकिन दोनों हिस्सों में तनाव अक्सर तनाव बना रहता था। राज्य में अरसे तक सत्ता में रहने वाली कॉन्ग्रेस ने कभी इस तनाव को भरने का काम नहीं किया। इसके उलट उसके शासनकाल में दोनों जनजातियों के बीच दूरी बढ़ती ही गई। खुद को राज्य में स्थापित करने के लिए बीजेपी की सरकार ने इस दूरी को भरने का काम किया।

इसी कड़ी में बीरेन सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के दो महीने बाद मई 2017 में मणिपुर के उखरूल जिले में पाँच दिवसीय ‘शिरुई लिली महोत्सव’ का उद्घाटन किया। यह त्योहार मुख्य रूप से विलुप्त होने के कगार पर पहुँच चुके मणिपुर के स्टेट फ्लॉवर शिरुई लिली के संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए आयोजित किया गया था। हालाँकि उखरुल की तंगखुल नागा पहाड़ियों में इसका उद्देश्य कुछ और भी था। यह कार्यक्रम इम्फाल घाटी और मणिपुर के आदिवासी पहाड़ी क्षेत्रों के बीच संबंध को सुधारने के उद्देश्य से भी किया गया था। इसका असर भी नजर आया था। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में स्थानीय लोगों के हवाले से बताया गया है कि इस महोत्सव की वजह से बड़ी संख्या में उखरूल की घाटी मैतेई लोग भी आए थे। वहीं उखरूल के एक पत्रकार के हवाले से बताया गया है कि उसने अपने 20 साल के करियर में इससे पहले ऐसा कुछ नहीं देखा था।

दोनों जनजातियों के बीच इस दौरान सामंजस्य बनाने में खुद मुख्यमंत्री बिरेन सिंह लगे थे। उद्घाटन के दौरान उन्होंने तंगखुल नागा टोपी पहन रखी थी और सामुदायिक बंधनों और समान विकास के महत्व की बात की। इसके अगले साल बीरेन सरकार ने पहाड़ी जिलों में कैबिनेट बैठकें आयोजित करने का फैसला किया। मई 2018 में,उनकी पहाड़ी-घाटी सुलह परियोजना को ‘गो टू हिल्स’ नाम दिया गया था, जिसका मकसद नागरिकों से संपर्क बनाने के लिए उनके दरवाजे तक पहुँचना था। रिपोर्ट के अनुसार इन कदमों की वजह से आज राज्य में दोनों जनजाति के बीच की दूरी काफी हद तक कम हो चुकी है। रिपोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ताओं के हवाले से कहा गया है, “कॉन्ग्रेस के मंत्री मुश्किल से कभी पहाड़ियों में आते थे। लेकिन 2017 से हर दूसरे महीने यहाँ कोई न कोई कैबिनेट या केंद्रीय मंत्री आते हैं। लोग इसे पसंद करते हैं।”

क्या है शिरुई लिली

उखरूल, मणिपुर के सबसे ऊँचाई पर बेस जिलों के रूप में प्रसिद्ध है। यह मणिपुर की राजधानी इंफाल से लगभग 83 किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित है। शिरुई लिली फूल सिर्फ शिरुई चोटी पर ही उगता, जो उखरूल जिले की सबसे ऊँची चोटियों में से एक है। समुद्र तल से लगभग 5000 फीट की ऊँचाई पर उगने वाला यह फूल दुनिया भर में सिर्फ मणिपुर में ही पाया जाता है। स्थानीय लोग इस फूल को काशॉन्ग टिमरावन के रूप में जानते हैं। स्थानीय लोग इसे दयालु शक्ति मानते हैं, जो शिरुई की चोटी पर रहती है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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