दिल्ली कॉन्ग्रेस प्रदेश कमिटी को नए अध्यक्ष के रूप में सुभाष चोपड़ा को ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। 72 वर्षीय सुभाष चोपड़ा को यह पद मिलने से पहले अस्थायी तौर पर भाजपा छोड़कर कॉन्ग्रेस में आए कीर्ति आज़ाद को दिया गया था। बता दें कि 20 जुलाई 2019 को दिल्ली की पूर्व सीएम और कॉन्ग्रेस पार्टी की कद्दावर महिला नेता शीला दीक्षित के निधन के बाद यह पद खाली था। हालाँकि, अब कीर्ति आज़ाद महज़ चुनाव प्रचार समिति के प्रमुख बनकर ही काम करेंगे। बुधवार को पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के बयान के मुताबिक कॉन्ग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने ही सुभाष चोपड़ा और कीर्ति आज़ाद की नियुक्ति की है।
Subhash Chopra appointed as the new Chief of Delhi Congress. Kirti Azad will be the Campaign Committee Chairman of the unit. pic.twitter.com/Jv0G7gp9Ym
— ANI (@ANI) October 23, 2019
बता दें कि सुभाष चोपड़ा 1968 में छात्र राजनीति से शुरुआत करने के बाद कॉन्ग्रेस की ओर झुकाव लेकर सक्रिय राजनीति में आए। 1970-71 में वे दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए। इसके बाद सुभाष दिल्ली कॉन्ग्रेस के सचिव, खजांची और महासचिव के अलावा उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। साथ ही सुभाष 16.6.2003 तक दिल्ली प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। सुभाष चोपड़ा 1968 में चौथे मेट्रोपोलिटन काउंसिल के सदस्य और 1998 व 2003 में विधायक बने। जून 2003 से दिसंबर 2003 तक विधानसभा के स्पीकर रहे। 2008 में वे फिर विधायक बने।
बता दें कि कॉन्ग्रेस पार्टी में फ़िलहाल तीन कार्यकारी अध्यक्ष पद सम्भाले हुए हैं। इनमें हारुन युसूफ, देवेन्द्र यादव और राजेश लिलोठिया शामिल हैं। दिल्ली में अगले वर्ष अगस्त की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने को हैं। बता दें कि दिल्ली में तकरीबन 70 विधानसभा सीटे हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 सीटों में से 67 पर जीत दर्ज की थी। इसी के बाद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। बता दें कि इसी चुनाव में 15 साल दिल्ली पर राज करने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया था। हालाँकि दिल्ली की जनता का ऐसा मानना है कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने चुनाव को जीतने के लिए कुछ ज्यादा ही वादे कर डाले। इन्हें असल रूप में निभा पाना और अपने किए हुए वादों पर खरा उतरने का तो संभव नहीं लेकिन आने वाले वक़्त में यह जनता की जेब के लिए टैक्स के रूप में नई चुनौतियाँ खड़ी कर सकता है।