संशोधित नागरिकता क़ानून को लेकर कई जगह विरोध प्रदर्शन चालू है और विपक्षी दल लगातार इसे भुनाने में लगे हैं। केरल में मामला अलग नहीं है और यहाँ भी कई मुस्लिम व दलित संगठनों ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन आयोजित किया है। इसी क्रम में मंगलवार (दिसंबर 17, 2019) को केरल के कुछ संगठनों ने हड़ताल आयोजित किया है, जिसमें संशोधित नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ सड़क पर उतर कर विरोध दर्ज कराया जाएगा। लेकिन, राजनीतिक दलों को ये लगता है कि इससे जनता के बीच यह सन्देश जाएगा कि इस क़ानून से कुछ समुदायों के ऊपर ही बुरा असर पड़ा है।
राजनीतिक दल इसे राष्ट्रीय विरोध का मुद्दा बनाने पर उतारू हैं और वो जनता को ये विश्वास दिलाना चाहते हैं कि इससे पूरे देश का नुकसान है। केरल के मुख्यमंत्री पिन्नाराई विजयन और नेता प्रतिपक्ष रमेश चेन्नीथाला ने बार-बार कहा है कि ये क़ानून पूरे देश के लिए नुक़सानदेह है। कई राजनीतिक पार्टियों और संगठनों ने मंगलवार को बुलाए गए हड़ताल से दूर रहने का फ़ैसला लिया है। इस हड़ताल को एमके फैजी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) ने बुलाया है। एसडीपीआई के आतंकियों से कनेक्शन सामने आते रहते हैं और कन्नूर के नारथ इलाक़े में इसके नेताओं के यहाँ पुलिस की रेड में कई ख़तरनाक हथियार मिले थे।
केरल के राजनीतिक दल ख़ुद को एसडीपीआई से दूर दिखाने के लिए इस हड़ताल में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। एनआईए ने स्पष्ट कहा था कि एसडीएफआई योग और स्वास्थ्य कैम्पों के नाम पर हथियारों का प्रशिक्षण देता है और देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा है। केरल के कुछ उत्तरी जिलों में सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और सुन्नी जमीयतुल उलामा ने भी इस हड़ताल से दूरी बनाने का फ़ैसला लिया है। जमीयतुल ने कहा कि उनकी पार्टी किसी ऐसे संगठन के साथ सड़क पर नहीं उतरेगी, जो क़ानून को अपने हाथ में लेता हो या फिर जो कट्टरवादी हो।
#Kerala Tomorrow’s call for hartal by various Islamic organizations, led by SDPI/Popular Front is illegal, says @TheKeralaPolice. Given how SDPI and others are taking advantage of the current situation, kudos to @vijayanpinarayi govt for making this crystal clear. pic.twitter.com/kSqQda925I
— നിഖിൽ ?? (@nikhilnarayanan) December 16, 2019
जमीयतुल के नेताओं ने कहा कि हड़ताल शांतिपूर्ण और क़ानून-व्यवस्था बनाए रखते हुए होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ छोटे संगठनों ने हड़ताल बुलाई है लेकिन इससे कोई बदलाव नहीं आ जाएगा। जमीयतुल नेता कांथापुरम ने आशंका जताई कि इस हड़ताल से सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उन्होंने आशंका जताई कि इससे व्यापारियों को ख़ासा नुकसान हो सकता है, जो आर्थिक मंदी की वजह से पहले से ही ख़ासे परेशान चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वो पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मिल कर अपनी बात रखेंगे और बताएँगे कि कैसे इस क़ानून का मुस्लिमों पर बुरा असर पड़ा है। साथ ही उन्होंने कहा कि अगर फिर भी बात नहीं बनती है तो उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।
वहीं मुस्लिम लीग का मानना है कि सीएए के विरोध को किसी ख़ास समुदाय से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सबरीमाला मंदिर में दर्शन चालू है और ऐसे समय में हड़ताल आयोजित कर के जनजीवन अस्त-व्यस्त करने का उनकी पार्टी समर्थन नहीं करती है। इधर राज्य सरकार ने सभी जिलों की पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिया है कि क़ानून हाथ में लेने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए। हड़ताल से 7 दिन पहले ही संगठनों को पुलिस को इसकी सूचना देनी थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सिर्फ़ सोशल मीडिया में ही सूचना दी गई। जो भी हो, इस हड़ताल को अधिकतर राजनीतिक दलों और संगठनों का समर्थन नहीं मिल रहा है।