शिक्षा पर गठित संसदीय समिति ने पक्षपात रहित शैक्षिक पाठ्यक्रमों को बनाने और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को स्कूली इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में किस तरह से दिखाया गया है इसकी समीक्षा करने की अनुशंसा की है। समिति ने सुझाव दिया है कि वेदों के प्राचीन ज्ञान को भी स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए।
मंगलवार 30 नवंबर 2021 को संसदीय समिति ने राज्यसभा के पटल पर अपनी रिपोर्ट को रखा। इसमें समिति ने इस बात पर जोर दिया है कि पाठ्यक्रमों में सिख और मराठा इतिहास के साथ-साथ लिंग-समावेशी साहित्य को शामिल करने की आवश्यकता है।
भाजपा सांसद विनय पी सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाली इस समिति में राज्यसभा के 10 सदस्य हैं। समिति में BJP के चार सांसद और TMC (सुष्मिता देव), CPM (बिकास रंजन भट्टाचार्य), DMK (आरएस भारती), अन्नाद्रमुक (एम थंबीदुरै), सपा के (विशंभर प्रसाद निषाद) और कॉन्ग्रेस से (अखिलेश प्रसाद सिंह) शामिल हैं। इसके अलावा, इसमें 21 लोकसभा सदस्य हैं, जिनमें से 12 भाजपा से और 2 कॉन्ग्रेस और एक-एक सदस्य TMC, CPM, जद (यू), शिवसेना, YSRCP, DMK और BJD से शामिल हैं।
समिति की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि प्रमुख इतिहासकारों के साथ मिलकर इस बात की समीक्षा किए जाने की आवश्यकता है कि देश के विभिन्न भागों से आने वाले स्वंतत्रता संग्राम सेनानियों को किताबों में अब तक कितनी जगह दी गई है। इससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अधिक संतुलित और विवेकपूर्ण धारणा को बल प्रदान कर बच्चों के सामने तर्कसंगत और न्यायपूर्ण नजरिया पेश किया जा सकेगा। इसका फायदा यह होगा कि जिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अब तक गुमनामी में रखा गया, उन्हें भी इतिहास में जगह मिलेगी।
समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, NCERT और SCERT को स्कूल के पाठ्यक्रमों में वेदों और प्राचीन भारतीय ज्ञान को शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे भारतीय विश्वविद्यालयों में अपनाई गई शिक्षा पद्धतियों का अध्ययन किया जाना चाहिए और उन्हें शिक्षकों के लिए मॉडल के तौर पर पेश करने के लिए उसमें बदलाव किया जाना चाहिए।
इस रिपोर्ट में समिति के कुछ ऐसे अवलोकन को भी शामिल किया गया है, जिससे पता चलता है कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम के कई ऐतिहासिक आँकड़ों और स्वतंत्रता सेनानियों को गलत तरीके से चित्रित किया गया है। समिति ने NCERT को सुझाव दिया है कि वो इतिहास की किताबों के लेखन के नियमों की समीक्षा करे, ताकि इतिहास की किताबों में विभिन्न युगों, कालों और घटनाओं को महत्व दिया जा सके।
रिपोर्ट के में कहा गया है, “ये देखा गया है कि स्कूली किताबों में विक्रमादित्य, चोल, चालुक्य, विजयनगर, गोंडवाना या त्रावनकोर और उत्तर-पूर्व के अहोम जैसे कुछ महान भारतीय साम्राज्यों को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया है। विश्व के पटल पर भारत की स्थिति को स्पष्ट करने के इनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।” समिति ने यह भी पाया कि भारतीय पाठ्यपुस्तकों में महिलाओं के योगदान को कमतर आँका गया है। इसीलिए पाठ्यक्रमों में महाश्वेता देवी, कल्पना चावला, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, कित्तूर चेन्नम्मा, एम एस सुब्बुलक्ष्मी, और सावित्रीबाई फुले जैसी प्रमुख महिलाओं के योगदान को भी शामिल करने की सिफारिश की गई है।
हाल ही में 26 नवंबर को की गई एक अन्य सिफारिश कहा गया है कि किताबों को पक्षपात से रहित होना चाहिए। साथ ही इन्हें राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के अलावा संविधान में निहित मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता पैदा करने वाला होना चाहिए। देश के नायकों के बारे में गैर-ऐतिहासिक तथ्यों और विकृतियों को हटाने, महिलाओं की उपलब्धि पर प्रकाश डालने पर जोर देने के साथ ही संसदीय समिति स्कूली पाठ्यपुस्तकों में संशोधन करने के लिए एक रिपोर्ट पर काम शुरू कर चुकी है।
इस बीच भारतीय इतिहास कॉन्ग्रेस (IHC) ने समिति का विरोध करते हुए कहा है कि समीक्षा आवश्यक है, लेकिन इसे देश के मान्यता प्राप्त विद्वानों को शामिल करके किया जाना चाहिए।
NCERT ने इस्लामिक आक्रमणकारियों को दिया अधिक महत्व
इस मामले में ऑपइंडिया पहले ही बता चुका है कि शिक्षा पर संसदीय समिति के समक्ष जुलाई 2021 में पेश की गई एक प्रतिष्ठित थिंक टैंक की शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा प्रकाशित इतिहास की पाठ्यपुस्तकें और केरल सरकार द्वारा जारी पाठ्यपुस्तकों में मुगल शासकों और जाति के मुद्दों पर अधिक जोर है, जबकि हिंदू राजाओं, भारतीय संतों, समाज सुधारकों आदि की उपलब्धियों का बहुत ही कम उल्लेख किया जाता है।