चुनाव आयोग ने गुरुवार (9 जून 2022) को राष्ट्रपति चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया। देश के सर्वोच्च पद के लिए 18 जुलाई को वोटिंग होगी। नतीजे 21 जुलाई को घोषित किए जाएँगे। राष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिसूचना 15 जून को जारी की जाएगी। नामांकन की अंतिम तिथि 29 जून और नामांकन पत्रों की जाँच 30 जून को निर्धारित की गई है। उम्मीदवार अपना नामांकन दो जुलाई तक वापस ले सकते हैं।
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— Election Commission of India #SVEEP (@ECISVEEP) June 9, 2022
चुनाव आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पैसा या किसी भी प्रकार का लालच देने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। कोई भी राजनीतिक दल व्हिप जारी नहीं कर सकता है। वोटरों को एक, दो, तीन लिखकर अपनी पसंद बतानी होगी। वोट देने के लिए सभी को विशेष इंक वाला पेन दिया जाएगा। आयोग ने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव के कुल वोटरों की संख्या 4809 है। इसमें लोकसभा के सांसद और सभी राज्यों के विधानसभा के विधायक शामिल हैं।
भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई 2022 को समाप्त हो जाएगा। इससे पहले देश के अगले और 15वें राष्ट्रपति को चुन लिया जाएगा। आइए जानते हैं भारत में कैसे होता है राष्ट्रपति का चुनाव, कौन इसके लिए वोट करते हैं और कैसे इन वोट की वैल्यू निर्धारित होती है।
The term of office of President Ram Nath Kovind will be ending on 24th July: Rajiv Kumar, Chief Election Commissioner of India pic.twitter.com/arMBBZZdoI
— ANI (@ANI) June 9, 2022
कैसे होता है राष्ट्रपति चुनाव
भारत में राष्ट्रपति का चुनाव आम चुनाव से बेहद अलग होता है। इस चुनाव में भारत के नागरिक अप्रत्यक्ष रूप से हिस्सा लेते हैं। अर्थात, इस चुनाव में जनता द्वारा चुने गए विधायक और सांसद हिस्सा लेते हैं। वोट में हिस्सा लेने वाले विधायक और सांसद के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है। संविधान के अनुच्छेद-54 के अनुसार, राष्ट्रपति का चुनाव एक इलेक्टोरल कॉलेज करता है। इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातिक होता है। यानी, उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है, पर उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है।
इनको है वोट देने का अधिकार
इस चुनाव में सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के चुने हुए सदस्य, लोकसभा और राज्यसभा में चुनकर आए सांसद वोट डालते हैं। राष्ट्रपति की ओर से राज्य सभा में मनोनीत 12 सदस्य वोट नहीं डाल सकते हैं। इसके अलावा राज्यों की विधान परिषदों के सदस्यों को भी वोटिंग का अधिकार नहीं है, क्योंकि उन्हें जनता ने नहीं चुना होता है।
सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम क्या है
राष्ट्रपति चुनाव में एक खास तरीके से वोटिंग होती है। इस प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले सदस्य तमाम उम्मीदवारों में से पहले अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट डालते है। अर्थात बैलट पेपर में सदस्य बता देते हैं कि राष्ट्रपति पद के लिए उनकी पहली, दूसरी और तीसरी पसंद क्या है। यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।
राष्ट्रपति चुनाव में वोट की वैल्यू का निर्धारण
जैसा पहले ही बता चुके है कि चुनाव प्रक्रिया में विधायक और सांसद वोट की वैल्यू अलग-अलग होती है। यह हर एक विधायक के लिए अलग हो सकता है और इसका निर्धारण उसके राज्य की जनसंख्या और विधानसभा क्षेत्र की संख्या पर निर्भर करता है। वोट का वेटेज निकलने के लिए उस प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है, इसके बाद जो नंबर आता है, उसे 1000 से भाग दिया जाता है। इस तरह यह उस राज्य के विधायक के एक वोट का वेटेज होता है। यदि भाग देने के बाद प्राप्त संख्या 500 से ज्यादा है तो इसमें 1 जोड़ दिया जाता है।
सांसद के वोट की वैल्यू
सांसदों के वोटों का वेटेज अलग है। इसमें सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने सदस्यों के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है। अब इस सामूहिक वेटेज को राज्यसभा और लोकसभा के चुने सदस्यों की कुल संख्या से भाग किया जाता है। इस तरह जो नंबर मिलता है, वह एक सांसद के वोट का वेटेज होता है। अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक का इजाफा हो जाता है।
आपको बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव की एक और सबसे खास बात यह है कि इस चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है। राष्ट्रपति वही बनता है, जो सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे। मान लीजिए राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10,98,882 है। ऐसे में जीत के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को 5,49,442 वोट हासिल करने होंगे। जो प्रत्याशी सबसे पहले यह कोटा हासिल करता है, उसे राष्ट्रपति चुन लिया जाता है।