17वीं लोकसभा का निर्वाचन जैसे-जैसे अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ताबड़तोड़ इंटरव्यू दिए जा रहे हैं। एनडीटीवी और इंडिया टुडे के बाद इंडियन एक्सप्रेस से भी उन्होंने बात की और बताया कि कैसे उन पर परिवारवाद का आरोप राजनीतिक प्रोपेगंडा है, मनमोहन सिंह सरकार का अध्यादेश फाड़ तत्कालीन प्रधानमंत्री का अपमान करना उनकी गलती थी, और कैसे वह अनिल अंबानी और मेहुल चोकसी को एक जैसा ‘क्रोनी कैपिटलिस्ट’ मानते हैं। पेश है हर मुद्दे पर उनकी विस्तृत राय और उनके दावे:
जनता का नारा है ‘चौकीदार चोर है’
राहुल गाँधी ने दावा किया कि ‘चौकीदार चोर है’ का नारा उनकी ईजाद नहीं, छत्तीसगढ़ की एक जनसभा में स्वःस्फूर्त उत्पन्न हुआ जनता का उद्गार है। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके कॉन्ग्रेस अध्यक्ष होकर इसे उठा लेने से खाली इस नारे की जनता में ‘धमक’ (amplification) बढ़ गई है।
हालाँकि जब इंडियन एक्सप्रेस के साक्षात्कारकर्ता ने सवाल उठाया कि खुद राहुल गाँधी और पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला के अलावा किसी वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता को इसका प्रयोग करते नहीं सुना गया है तो वह पहले इसे नकारते नज़र आए और बाद में आक्रामक हो साक्षात्कारकर्ता से ही पूछने लगे कि इस सवाल को उठाने से मंतव्य क्या है। इसके अलावा उन्होंने यह भी दावा किया कि शायद उनकी पार्टी के नेता प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आगे जाकर इसका ‘बदला लिए जाने’ से डर रहे हैं, पर वह (मोदी) राहुल को नहीं डरा सकते।
₹30,000 करोड़ का गणित चिदंबरम और सुरजेवाला से पूछो
राहुल हर रैली में आजकल यह दोहरा रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मित्र’ अनिल अंबानी को अनुचित लाभ पहुँचाने के लिए वायुसेना के ₹30,000 करोड़ उनके ‘खाते में डाल दिए’। इस राशि पर वह कैसे पहुँचे, इसका सीधा जवाब देने से कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बचते नजर आए। पहले तो जब साक्षात्कारकर्ता ने यह पूछा कि पूरा राफ़ेल सौदा ही ₹60,000 करोड़ का है तो इसकी 50% राशि आखिर किसी एक बिजनेसमैन को कैसे मिल गई तो उन्होंने ‘पर्याप्त दस्तावेज हैं’ का गोलमोल उत्तर दे टालने की कोशिश की।
जब साक्षात्कारकर्ता टस-से-मस नहीं हुआ तो उन्होंने सौदे में ‘प्रक्रियागत गड़बड़ियों’, द हिन्दू के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट, जेपीसी जाँच की माँग, अनिल अंबानी की तथाकथित रक्षा उत्पादन अनुभवहीनता, उनकी आर्थिक देनदारियों आदि का हवाला देकर मामला घुमाने की कोशिश की। पर जब साक्षात्कारकर्ता ने याद दिलाया कि तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने खुद 2-जी घोटाले में बार-बार ₹2 लाख करोड़ के गणित का मूल पूछा था तो अंत में उन्होंने माना कि उन्हें आकलन बताया गया है। यह कैसे आया इसका हिसाब पूर्व वित्तमंत्री और कॉन्ग्रेस के आर्थिक दिमाग पी चिदंबरम व प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला के ही पास है। उन्होंने एक बार फिर प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर सार्वजनिक बहस के लिए ललकारा।
वरिष्ठ नेताओं को एक हार के लिए निकाल नहीं सकता, अनुभव का सदुपयोग किया
जब कॉन्ग्रेस अध्यक्ष से पूछा गया कि 2014 में पार्टी इतिहास की सबसे बड़ी हार के बाद भी संगठन में कोई बड़ी तब्दीली नहीं हुई तो राहुल एके एंटनी, अशोक गहलोत जैसे वरिष्ठ नेताओं का बचाव करते नजर आए। उन्होंने विस्तृत अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे कद्दावर और अनुभवी नेताओं को एक हार का ठीकरा उनके सर फोड़कर निकालना अनुचित होता। उसकी बजाय पार्टी ने उनके अनुभव का उपयोग दूसरी नेताओं की पंक्ति को मजबूत करने के लिए किया। उन्होंने मोदी के अपराजेय होने का मिथक तोड़ने का श्रेय भी कॉन्ग्रेस को दिया, और याद दिलाया कि कैसे केवल 44 लोकसभा सदस्यों वाली कॉन्ग्रेस ने मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल का रास्ता रोक लिया था। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें उस वाकये पर गर्व महसूस होता है।
अकेले मोदी ही जिम्मेदार, इसलिए विचारधारा की बजाय उनपर हमला
राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही निशाना साधे रखते हुए उन्हें देश की उस स्थिति के लिए जिम्मेदार बताया जिसे वह ‘बदहाल’ कहते हैं। उन्होंने कहा कि इसीलिए वह अपने निशाने पर पूरी भाजपा की बजाय केवल नरेंद्र मोदी को रखे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री रहते हुए अपनी ही सरकार में किसी की नहीं सुनी। उन्होंने प्रधानमंत्री की नोटबंदी को देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ रिजर्व बैंक की स्वायत्ता को भी नुकसान पहुँचाने वाला बताया। उन्होंने राफ़ेल के तथाकथित ‘घोटाले’ को भी ‘मोदी की मनमर्जी’ का ही दुष्परिणाम बताया।
मोदी के एक हम ही वैचारिक विरोधी, हम से है संघ को खतरा
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने यह भी दावा किया कि उनकी पार्टी ही संघ की इकलौती वैचारिक विरोधी है, और इसीलिए प्रधानमंत्री ने ‘कॉन्ग्रेस-मुक्त भारत’ का नारा दे रखा है। वह किसी और पार्टी को देश से खत्म नहीं करना चाहते; केवल कॉन्ग्रेस को समाप्त करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 2014 के बाद कॉन्ग्रेस ने आत्म-चिंतन किया और उसके परिणामस्वरूप न केवल जमीन से नए नेताओं की पूरी पौध को लेकर आगे आई बल्कि इन नेताओं ने और इनका नेतृत्व कर रहे राहुल ने 5 साल तक भाजपा के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। राहुल गाँधी ने यह भी जोड़ा कि यह उनकी लड़ाई का ही परिणाम है कि 2 वर्ष पहले तक मोदी सरकार को दस साल का न्यूनतम कार्यकाल देने वाले आज मोदी को पूर्ण बहुमत को लेकर भी आश्वस्त नहीं हैं।
कॉन्ग्रेस में नहीं है परिवारवाद, शाह भाजपा अध्यक्ष बने मोदी के बल पर
राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस पर लगने वाले शायद सबसे पुराने आरोप परिवारवाद का भी बचाव किया। उन्होंने राजीव साटव (गुजरात कॉन्ग्रेस प्रभारी, यूथ कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और महाराष्ट्र सांसद), जोतिमणि सेन्नीमलै (करूर लोकसभा प्रत्याशी, कॉन्ग्रेस मीडिया पैनलिस्ट), माणिक टैगोर (विरुधुनगर प्रत्याशी और इसी सीट से 2009 के लोकसभा सदस्य) समेत कई कॉन्ग्रेस सदस्यों का उदाहरण देते हुए परिवारवाद के आरोप को नकारा। इसके अलावा उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (मुलायम सिंह यादव के बेटे) और भाजपा सांसद पंकज सिंह (गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे) का उदाहरण दिया कि हर पार्टी में कुछ नेताओं की संतानें अपने परिवार की राजनीतिक परंपरा में भागीदार होतीं हैं।
जब साक्षात्कारकर्ता ने राहुल गाँधी से सीधे-सीधे पूछा कि उन्हें 5 साल पहले भी पता था कि कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष वही बनेंगे जबकि भाजपा में कभी यह ‘फिक्स’ नहीं होता तो राहुल गाँधी ने इसे भी चुनौती दी। उन्होंने भाजपा में अमित शाह के अध्यक्ष पद पर चुनाव को भी ‘फिक्स्ड’ बताते हुए यह आरोप लगाया कि उन्हें यह पद मोदी की जी-हुजूरी करने से और यही करने के लिए मिला है। उन्होंने अपने खिलाफ वंशवाद के आरोप को प्रपोगंडा बताते हुए सवाल किया कि क्या उनके पिछले 5 साल के संघर्ष को उनके ‘वंश की देन’ बताकर नकारा जा सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा नहीं, बहाना है; हम भय नहीं फैलाते
राहुल गाँधी ने राष्ट्रीय सुरक्षा को निर्वाचन की राजनीति में मुद्दा मानने से मना करते हुए साफ़ किया कि कॉन्ग्रेस इसे केवल अर्थव्यवस्था, राफेल और बेरोजगारी पर कॉन्ग्रेस के आरोपों का सामना करने से बचने का प्रधानमंत्री का बहाना मानती है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी जनता के बीच खराब अर्थव्यवस्था, किसानों के खराब हालात और बेरोजगारी के मुद्दे पर है और मोदी उनके सवालों से बचने के लिए राष्ट्रवाद की आड़ लेना चाहते हैं। लोगों में “भाजपा आएगी तो…” का भय फैलाने के आरोप के जवाब में उन्होंने आरोप दोहराए कि भाजपा आई तो संविधान पुनर्लिखित कर दिया जाएगा, प्रधानमंत्री भ्रष्ट हैं और संस्थाओं में ‘एक खास विचारधारा’ (संघ की विचारधारा) के लोगों को भरकर संस्थाएँ बर्बाद कर रहे हैं।
उन्होंने मोदी के किए ‘नुकसान’ की भरपाई के लिए अपनी पार्टी के उपाय भी गिनाए। बकौल कॉन्ग्रेस अध्यक्ष, उनकी पार्टी एक सरल जीएसटी लाएगी। इसके अलावा उन्होंने अपनी विवादास्पद ‘न्याय स्कीम’ को नोटबंदी से हुए तथाकथित नुकसान की भरपाई बताया।
प्रज्ञा ठाकुर, सच्चर पर सवाल टाले
भाजपा की भोपाल प्रत्याशी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से प्रचार करने के सवाल पर राहुल गाँधी बचते नजर आए। उन्होंने कहा कि ‘हालाँकि’ उन्हें भोपाल में प्रचार करने से कोई परहेज नहीं है, लेकिन प्रज्ञा सिंह वैसे ही भारी अंतर से मुकाबला हार रहीं हैं। इसके अलावा सच्चर समिति की रिपोर्ट का जिक्र अपनी पार्टी के पिछले दो लोकसभा घोषणापत्रों में होने और इस बार गायब होने के बारे में भी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने कोई सीधी टिप्पणी नहीं की। उन्होंने केवल यह दोहराया कि कॉन्ग्रेस भारत को “सभी का” मानती है और यहाँ तक कि भाजपा को लेकर भी वह “भाजपा मुक्त भारत” जैसी बातें नहीं करते।
मनमोहन केवल सम्मानित नहीं, प्रेम भी करता हूँ
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में राहुल गाँधी ने कहा कि वह उनका (डॉ. सिंह का) केवल सम्मान ही नहीं करते बल्कि उन्हें दिल से चाहते भी हैं। उन्होंने मनमोहन सरकार के अध्यादेश को सार्वजानिक रूप से फाड़ने को गलती मानते हुए अफ़सोस जताया। साथ में यह भी जोड़ा कि उन्होंने यह लगता है कि मनमोहन सिंह जिस ऊँचे ‘कद’ के व्यक्तित्व हैं, वैसे व्यक्ति का राहुल गाँधी कुछ भी कर लें, असम्मान हो ही नहीं सकता। पर उन्होंने यह भी माना कि उनकी पार्टी ने यह स्वीकारना बंद कर दिया था कि 2012 आते-आते उनकी नीतियाँ स्पष्ट रूप से काम करना बंद कर चुकीं थीं, इसीलिए जनता ने उन्हें दण्डित किया।
हम न राईट, न लेफ़्ट; अनिल अंबानी-मेहुल चोकसी क्रोनी कैपिटलिस्ट
अपनी पार्टी के चरम-वामपंथी हो जाने के आरोप को भी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने सिरे से नकार दिया। उन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में नरसिम्हा राव-मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण के कदम का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस लोगों की बातें लगातार सुनती रहती है और किसी भी परिस्थिति के अनुसार उपयुक्त निर्णय लेती है।
कॉर्पोरेट बिजनेसमैनों को नाम लेकर अपमानित करने के मुद्दे पर राहुल गाँधी रक्षात्मक नजर आए। उन्होंने भारतीय कॉर्पोरेट जगत को ईमानदार, मेहनती संस्था बताते हुए अनिल अंबानी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या, नीरव मोदी को इनसे अलग ‘क्रोनी कैपिटलिस्ट’ बताया। उन्होंने कहा कि ईमानदार कॉर्पोरेट वालों का वह पूर्ण समर्थन करते हैं।
मतभेद कॉन्ग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र; राहुल गाँधी को सबको सुनने वाले के रूप में जानें
पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग लाने के मामले में निर्णय की जिम्मेदारी लेने से भी राहुल गाँधी बचते नजर आए। उन्होंने मोदी-शाह पर संवैधानिक संस्थाओं को दबाने का आरोप दोहराया। साथ में वह भी जोड़ा कि महाभोयोग का निर्णय पिछले साल की शुरुआत में की गई चार जजों की प्रेस वार्ता में दीपक मिश्र पर लगे आरोपों के द्वारा जनित सार्वजनिक मत के चलते उठाया। गौरतलब है कि उन चार जजों में से एक रंजन गोगोई इस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) हैं।
इस निर्णय के खिलाफ कॉन्ग्रेस में ही उठी आवाजों के बारे में उन्होंने सफाई दी कि यह उनकी पार्टी में जीवंत लोकतंत्र और असहमति की संस्कृति का प्रतीक है। साथ ही यह पूछे जाने पर कि उनमें ऐसी कौन-सी खूबी है जो लोगों को नरेंद्र मोदी की बजाय उन्हें चुनें, उन्होंने कहा कि वह सबकी सुनते हैं, उनके दिल में करुणा है, और वह सचमुच देश के लोगों की मदद करना चाहते हैं।