रविवार (नवंबर10, 2019) को कई लोगों ने सोशल मीडिया पर ‘राममंदिरकापुजारीकौन’ को ट्रेंड करवाने की कोशिश की। दरअसल इसके पीछे उनकी मंशा ये दिखाने की थी कि अयोध्या में राम मंदिर एक ‘ब्राह्मणवादी परियोजना’ है।
Valmiki is original but tulsi was copycat and brahmnical mentality #राममंदिरकापुजारीकौन
— The_Introvert_ (@TheIntr20433770) November 10, 2019
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— The Dalit Voice (@ambedkariteIND) November 10, 2019
Job Vacancy in Ram Mandir
Chief priest
GEN- 1
OBC- 0
SC – 0
ST – 0
Other priest
GEN-100
OBC- 0
SC – 0
ST – 0
Note*- Only chitpawan Brahmin form will be accepted,
Warning*- Dogs and Sc St Obc are not allowed. #राममंदिरकापुजारीकौन #RamRajya
Now that Ram Lalla has got back his land, Can this Dalit man be made the priest of the Ram temple for which he laid the first stone ? @RSSorg @PMOIndia @ratanlal72 @dilipmandal @AcharyaPramodk @myogiadityanath #राममंदिरकापुजारीकौन pic.twitter.com/ozSkptuf0w
— Shashi P. Narayan (@Shashi4aisa) November 10, 2019
इसमें द प्रिंट के पत्रकार दिलीप मंडल भी शामिल थे। कुछ दिन पहले ब्लू टिक हासिल करने के लिए उन्होंने ट्विटर पर भी जातिवादी होने का आरोप लगाया था।
सिर्फ आधे घंटे के लिए ट्रैंड कराएं. #राममंदिरकापुजारीकौन
— Prof. Dilip Mandal (@dilipmandal) November 10, 2019
कोर्ट के आदेश से मंदिर सरकार बनाएगी. सरकार बताए कि #राममंदिरकापुजारीकौन
— Prof. Dilip Mandal (@dilipmandal) November 10, 2019
हिंदुओं के किसी भी चीज को ‘जाति’ के रूप में बाँटकर दिखाना इन वामपंथियों की आदत बन गई है। दरअसल वामपंथी, ‘ब्राह्मणवादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई’ की आड़ में हिंदुत्व को छलनी करके जाति विभाजन को बढ़ावा देना अधिक पसंद करते हैं।
अब देश के तमाम लोग यह जानने के अतिउत्सुक है कि #राममंदिरकापुजारीकौन होगा?
— Sanjay Yadav (@sanjuydv) November 10, 2019
क्या एक नया, प्रगतिशील और समावेशी भारत बनाने एवं मोदी सरकार के “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” नारे को चरितार्थ करते हुए किसी ग़ैर ब्राह्मण वर्ण के व्यक्ति को पुजारी बनाया जाएगा? देखना दिलचस्प होगा?
संजय यादव जैसे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता भी इससे अछूते नहीं। इन्होंने भी इसमें योगदान दिया और लिखा, “अब देश के तमाम लोग यह जानने के लिए अति उत्सुक है कि #राममंदिरकापुजारीकौन होगा? क्या एक नया, प्रगतिशील और समावेशी भारत बनाने एवं मोदी सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ नारे को चरितार्थ करते हुए किसी ग़ैर ब्राह्मण वर्ण के व्यक्ति को पुजारी बनाया जाएगा? देखना दिलचस्प होगा?” बता दें कि संजय यादव बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और राजद विधायक तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार हैं।
हालाँकि जाति के आधार लोगों को बाँटने वाले लोगों की पागल भीड़ के साथ अपनी एकजुटता दिखाने वाले संजय यादव यह बात आसानी से भूल गए कि बिहार की राजधानी पटना में लगभग एक दर्जन मंदिरों में दशकों से दलित ही पुजारी हैं। 300 साल पुराने हनुमान मंदिर के पुजारी सूर्यवंशी फलाहारी दास हैं, जो दलित हैं। 1993 में पटना के महावीर मंदिर में इनकी नियुक्ति प्रधान पुजारी के रूप में हुई थी। इसको लेकर समाज के किसी भी भाग में किसी तरह का कोई विरोध नहीं हुआ था। आज भी इस मंदिर में अगर कोई बड़ा आयोजन होता है तो इनकी उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है। कोई मुख्यमंत्री, राज्यपाल या राष्ट्रीय स्तर का कोई बड़ा नेता आता है, तो पूजा वही कराते हैं।
पटना के इस हनुमान मंदिर का संचालन महावीर ट्रस्ट करता है। पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल इसके अध्यक्ष हैं। मंदिरों में दलित पुजारियों की नियुक्ति के सामाजिक परिवर्तन में उनका बड़ा योगदान है। अयोध्या मामले से भी वे जुड़े रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने रामजन्मभूमि स्थान का जो नक्शा फाड़ा था, उसे तैयार करने में किशोर कुणाल की अहम भूमिका रही है। अयोध्या पर शीर्ष अदालत के फैसले के बाद महावीर ट्रस्ट ने राम मंदिर के लिए पॉंच साल तक दो-दो करोड़ रुपए देने की घोषणा की थी।
किशोर कुणाल को अयोध्या मुद्दे को हैंडल करने के लिए वीपी सिंह सरकार के तहत गृह मंत्रालय द्वारा 1990 में ओएसडी नियुक्त किया गया था। उन्हें रामजन्मभूमि विवाद में विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के बीच मध्यस्थता की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बिहार महावीर मंदिर ट्रस्ट (BMMT) भी पूर्वी चंपारण जिले के केसरिया में एक विराट रामायण मंदिर का निर्माण भी कर रहा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर होगा।