बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सरकार द्वारा राज्य में कराई जा रही जातिगत जनगणना के फैसले को हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में तत्काल सुनवाई के लिए सहमत हो गया है। कोर्ट 13 जनवरी 2023 को याचिका पर सुनवाई करेगा। याचिका में दावा किया गया है कि जातिगत जनगणना को लेकर जारी की गई सूचना संविधान के मूल ढाँचे के खिलाफ है। यह भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है।
अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा ने बिहार सरकार के उप सचिव द्वारा राज्य में जातिगत जनगणना कराने के लिए जारी की गई अधिसूचना को रद्द करने और अधिकारियों को इसे आगे बढ़ने से रोकने की माँग की। इसको लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि वह शुक्रवार (13 जनवरी, 2023) को इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
अधिसूचना को रद्द करने की माँग
याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने नीतीश कुमार सरकार पर आरोप लगाया है कि उनके द्वारा 6 जून, 2022 को जारी की गई जाति आधारित जनगणना संबंधी अधिसूचना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, जिसमें विधि के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण का प्रावधान है। ऐसे में उन्होंने जनहित याचिका दायर कर इस अधिसूचना को रद्द करने और इस पर हो रही कार्रवाई को तत्काल रोकने की माँग की है।
जाति आधारित भेदभाव करना तर्कहीन और अनुचित
रिपोर्ट्स के मुताबिक, नालंदा निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश ने अधिवक्ता बरुण कुमार सिन्हा और अभिषेक के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने दावा किया है कि अगर जाति आधारित सर्वेक्षण का उद्देश्य उत्पीड़न का शिकार जातियों को समायोजित करना है, तो देश और जाति आधारित भेदभाव करना तर्कहीन और अनुचित है। इनमें से कोई भी भेद कानून में दिए किए गए उद्देश्य के अनुरूप नहीं है।
याचिकाकर्ता के अनुसार, बिहार में कुल 200 से अधिक जातियाँ हैं और उन सभी जातियों को सामान्य श्रेणी, ओबीसी, ईबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
याचिका के मुताबिक, बिहार राज्य में 113 जातियाँ ओबीसी और ईबीसी के रूप में जानी जाती हैं, आठ जातियाँ उच्च जाति की श्रेणी में शामिल हैं। इसके अलावा लगभग 22 उपजातियाँ हैं, जो अनुसूचित जाति श्रेणी में शामिल हैं और 29 को उप जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल किया गया हैं।
बिहार सरकार का राजनीतिक स्टंट
गौरतलब है कि जातिगत जनगणना की माँग करने वालों का तर्क है कि ST, SC को उनकी आबादी के आधार पर आरक्षण दिया गया था, लेकिन OBC के मामले में ऐसा नहीं है। उनका कहना है कि कोटा को संशोधित करने की जरूरत है और इसके लिए जाति आधारित जनगणना की जरूरत है। इसके अलावा बिहार सरकार का यह कहना है कि वह इन आँकड़ों का इस्तेमाल जान-उपयोगी नीतियों को बनाने में करेगी। हालाँकि, बिहार सरकार का यह आँकड़ा पूरी तरह राजनीतिक साबित होता है।
बिहार सरकार ने यह भी कहा था कि जातिगत आँकड़ों के अभाव में गैर-एसटी/एसटी से अलग अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सही जनसंख्या का पता नहीं चल पा रहा है।