18वीं सदी के मैसूर पर राज करने वाले टीपू सुल्तान के बिना कर्नाटक की राजनीति अधूरी है। जहाँ एक तरफ कॉन्ग्रेस उसे मसीहा मान कर उसकी पूजा करती है, वहीं दूसरी तरफ़ भाजपा सरकार ने उसके जयंती वाले सरकारी कार्यक्रमों पर रोक लगा दी है। कर्नाटक के शिक्षा मंत्री ने पाठ्यक्रम से भी टीपू सुल्तान को हटाने की बात कही है। इस बीच एक नया खुलासा हुआ है। श्रीरंगपत्तनम में टीपू सुल्तान की एक शस्त्रशाला थी, जो रेलवे ट्रैक के आड़े आ रही थी। इसके बाद इस शस्त्रागार को वहाँ से हटा कर उसे किसी और जगह पर ट्रांसलोकेट कर दिया गया।
मैसूर और बंगलौर के बीच रेलवे ट्रैक बनाने के लिए ऐसा किया गया। पत्थरों से बनी इस शस्त्रशाला में टीपू सुल्तान अपने और सेना के अस्त्र-शस्त्र व हथियारों को रखा करता था। इसमें गोला-बारूद भी रखे जाते थे। अपने 17 वर्षों के शासनकाल में वह शक्तिशाली मिसाइल और रॉकेट भी वहीं रखा करता था। मार्च 2017 में इसे उखाड़ कर इसके मूल जगह से 130 मीटर (390 फिट) दूर स्थापित कर दिया गया। साउथर्न रेलवे ने इस बाबत जानकारी देते हुए बताया कि शस्त्रागार को रेलवे के रास्ते से हटा दिया गया था।
श्रीरंगपत्तनम मैसूर से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यही वो जगह है जहाँ टीपू सुल्तान चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में मारा गया था। टीपू मैसूर के सुल्तान हैदर अली का सबसे बड़ा बेटा था। अपनी मृत्यु से पहले वह कई बार अंग्रेजों पर विजय भी प्राप्त कर चुका था। उसने दक्कन में कई हिन्दू राजाओं से भी लड़ाइयाँ लड़ी, ताकि अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार कर सके। इस शस्त्रगार का वजन 1000 टन है और ये 12 मीटर चौड़ा और 10 मीटर लम्बा है। ये लगभग एक वर्ग के आकार का है।
The 225-year-old majestic armoury of 18th centurys #Mysore ruler #TipuSultan was translocated intact from its original location at #Srirangapatna to make way for a railway track between Mysore and #Bengaluru.
— IANS Tweets (@ians_india) November 3, 2019
Photo: IANS pic.twitter.com/2PNaSlULjL
गर्मियों में टीपू सुल्तान श्रीरंगपट्टनम को अपनी राजधानी बना लेता था। वहाँ से ये शस्त्रगार 1.7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह 138 किलोमीटर के ‘रेलवे लाइन डबलिंग प्रोजेक्ट’ में बाधा बन रहा था, जिसके कारण इसे हटाया गया। इस शस्त्रागार को शिफ्ट न किए जाने के कारण रेलवे का ये डबलिंग प्रोजेक्ट क़रीब एक दशक तक अधर में लका रहा था। हालाँकि, कर्नाटक की सरकार ने इसकी अनुमति दे दी थी लेकिन इसके लिए रेलवे को ‘नेशनल मोनुमेंट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ की अनुमति की भी ज़रूरत थी क्योंकि इस ढाँचे को ‘रेयर हेरिटेज’ की केटेगरी में रखा गया है।
भारत में इस तरह के ऑपरेशन काम ही हुए हैं। इसीलिए, रेलवे ने इसके लिए भारतीय इंजीनियरों के अलावा अमेरिकी एजेंसियों की भी मदद ली। इसे कोई क्षति न पहुँचे, इसीलिए इसे धीरे-धीरे 9 दिनों में ट्रांसलोकेट किया गया। इसमें कुल 14 करोड़ रुपए का ख़र्च आया। हालाँकि, इसे एएसआई ने ‘प्रोटेक्टेड मोन्यूमेंट’ का दर्जा दिया हुआ है लेकिन यहाँ सिक्योरिटी गार्ड न होने के कारण लोग इसमें ही कचड़ा फेंकने लगे हैं।