ब्लूम्सबरी इंडिया ने जनवरी 2014 में एयरलाइन के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव द्वारा लिखी पुस्तक ‘The Descent of Air India’ के प्रकाशन को वापस ले लिया था। ब्लूम्सबरी इंडिया ने ऐसा पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के विरोध के बाद किया था। बता दें कि प्रफुल्ल पटेल ने पब्लिकेशन हाउस के खिलाफ मानहानि का मुकदमा भी दायर किया था।
Yes, it was Bloomsbury which had withdrawn the book, but I self-published it soon thereafter and ensured availability of ‘The Descent of Air India’ on Amazon – both in print format and as e-book. https://t.co/xVe5ti5hui pic.twitter.com/MMiJLl9ynB
— Jitender Bhargava (@JitiBhargava) August 23, 2020
इस पुस्तक में वरिष्ठ एनसीपी नेता और यूपीए सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहे प्रफुल्ल पटेल को राष्ट्रीय एयरलाइन के कमजोर वित्तीय अवस्था के लिए दोषी ठहराया गया है। पब्लिशिंग हाउस ने प्रफुल्ल पटेल से कहा था कि अगर उन्हें कंटेंट की वजह से किसी प्रकार की शर्मिंदगी हुई, तो वे माफी माँगते हैं। ब्लूम्सबरी ने एक बयान में कहा था, “किसी भी तरीके से उन्हें (प्रफुल्ल पटेल) बदनाम करना हमारा मकसद कभी नहीं था।”
अक्टूबर 2013 में प्रकाशित, ‘द डिसेंट ऑफ़ एयर इंडिया’ में बताया गया है कि कैसे बोइंग और एयरबस से 2005 से 2006 के बीच 111 विमानों की खरीद के लिए सौदा हुआ और इंडियन एयरलाइंस के साथ इसके विलय से इंडियन एयरलाइंस के लिए वित्तीय संकट उत्पन्न हुआ।
प्रफुल्ल पटेल मई 2004 से जनवरी 2011 तक नागरिक उड्डयन के लिए केंद्रीय मंत्री थे। पब्लिकेशन हाउस की माफी के बाद, पटेल ने ब्लूम्सबरी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा वापस ले लिया था। 2014 में कहा गया कि जब पटेल ने ब्लूम्सबरी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा वापस ले लिया था, तब उन्होंने जितेंद्र भार्गव के खिलाफ मामले को आगे बढ़ाने का फैसला किया था। उनके वकील सतीश मनेशिंदे थे, जो वर्तमान में सुशांत सिंह राजपूत मामले में रिया चक्रवर्ती का केस लड़ रहे हैं।
स्टॉक में बची हुई पुस्तक की सभी प्रतियों को नष्ट कर दिया गया था। भार्गव ने कहा था कि दस्तावेजों के आधार पर उनके आरोपों की पुष्टि की जा सकती है। जितेंद्र ने बताया कि बाद में उन्होंने पुस्तक को स्वयं प्रकाशित किया।
गौरतलब है कि अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा, सोनाली चितलकर और प्रेरणा मल्होत्रा की पुस्तक ‘Delhi Riots 2020: The Untold Story’ का प्रकाशन ब्लूम्सबरी ने वापस ले लिया है। प्रकाशन संस्थान ने इस्लामी कट्टरपंथियों और वामपंथी लॉबी के दबाव में आकर ऐसा किया।
उन्होंने इसके पीछे का एक कारण उनकी जानकारी के बिना लेखकों द्वारा आयोजित किए गए वर्चुअल प्री-पब्लिकेशन इवेंट लॉन्च करने को बताया। प्रकाशक ब्लूम्सबरी इंडिया ने यह बातें एक प्रेस रिलीज जारी करके कहा।
अब इस्लामी कट्टरवादी आतिश तासीर ने खुलासा किया है कि स्कॉटिश इतिहासकार और लेखक विलियम डेलरिम्पल ही वो व्यक्ति है, जिसने इस पुस्तक के प्रकाशन पर रोक लगवाई है। आतिश तासीर ने मोनिका अरोड़ा की दिल्ली दंगों पर आने वाली पुस्तक को सत्ता का प्रोपेगेंडा करार देते हुए कहा कि डेलरिम्पल ने इसके प्रकाशन पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाई है, जिसके लिए वे उनके आभारी हैं।
उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि स्कॉटिश लेखक के बिना ये संभव नहीं हो पाता। साथ ही उन्होंने (आतिश तासीर) इस पुस्तक के प्रकाशन को वापस लेने के लिए ब्लूम्सबरी इंडिया का धन्यवाद भी किया। उन्होंने कहा कि सत्ताधारी पार्टी और इसके हिंसक लोगों द्वारा इतिहास को बदलने का प्रयास बलपूर्वक किया जा रहा है, इसीलिए इस पुस्तक को वापस लिया ही जाना था।