हाईवे विकास की अगली योजनाओं का सारा का सारा फोकस अब एक्सप्रेसवेज बनाने में होने वाला है ताकि वाहन बिना किसी बाधा के फ़र्राटे भर सके। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार 2024 तक सरकार 3000 किलोमीटर नए एक्सप्रेसवे बना कर तैयार कर लेगी। इतना ही नहीं, देश के कुछ प्रमुख शहरों के बीच 4000 किलोमीटर नए ग्रीनफ़ील्ड हाईवे भी बनाए जाएँगे। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने इसके लिए तैयारियाँ शुरू कर दी हैं।
3000 किलोमीटर के नए एक्सप्रेसवे वाराणसी-राँची-कोलकाता, इंदौर-मुंबई, बेंगलुरु-पुणे और चेन्नई-त्रिची सहित कई शहरों को जोड़ने का काम करेगी। इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया:
“भारतमाला के पहले चरण के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने में हमें लगभग दो साल लग गए थे। इससे अगली बहुत सी परियोजनाओं के लिए डीपीआर तैयार करने से समय की बचत होगी और तेजी से निष्पादन के लिए उच्च गुणवत्ता वाली विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।”
बता दें कि डीपीआर में देरी के कारण सरकार को पहले भी कई बार परियोजनाओं में देरी का सामना करना पड़ा है। इसीलिए, इस बार सरकार इस मामले में सख्त है और अधिकारीगण इसे तय समय सीमा के भीतर पूरा करने में लगे हुए हैं। सरकार ने इस बार पहले से ही कंपनियों को डीपीआर बनाने के लिए आमंत्रित करना शुरू कर दिया है।
ग्रीनफ़ील्ड हाईवे के तहत पटना-राउरकेला, झांसी-रायपुर, सोलापुर-बेलगाम, गोरखपुर-बरेली और वाराणसी-गोरखपुर के बीच हाइवेज बनाए जाएँगे। अभी मौज़ूदा सड़क कॉरिडोर को बढ़ाने के बजाय सरकार ग्रीनफ़ील्ड हाइवेज पर इसीलिए ध्यान दे रही है ताकि जमीन अधिग्रहण में देरी न हो। इस में सरकार को लागत भी कम आएगी, क्योंकि जमीन ख़रीदने के लिए अधिक क़ीमत नहीं देनी पड़ेगी। साथ ही, अतिक्रमण से भी बचा जा सकेगा।
सरकारी सूत्रों के अनुसार इन सभी परियोजनाओं को 2024 तक पूरा कर लिया जाएगा। अभी हाल ही में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने दिल्ली से सांसद मनोज तिवारी को पत्र लिख कर सूचित किया था कि राजधानी की कुछ सड़कों को भी भारतमाला के तहत विकसित किया जाएगा। इस से दिल्ली में लगातार बढ़ रही ट्रैफ़िक समस्या से निज़ात मिलने की उम्मीद है। ये सड़कें 6 लेन की होंगी।
इसके अलावा सरकार ने इस बार इस बात का भी ध्यान रखा है कि नई सड़क परियोजनाएँ नेशनल पार्क, बर्ड-सैंक्चुरी इत्यादि के आसपास न हो ताकि वन विभाग, पर्यावरण विभाग इत्यादि से क्लीयरेंस लेने की नौबत ही न आए। अक्सर ऐसा देखा गया है कि इस प्रकार की क्लीयरेंस के चक्कर में फ़ाइलें इस विभाग से उस विभाग तक घूमती रहती हैं और परियोजनाओं में देरी का कारण बनती हैं।