जब भीड़ कहीं एकत्रित होती है तब उसकी कार्यशैली का कोई फिक्स पैटर्न नहीं होता। कोई यह नहीं बता सकता कि भीड़ का अमुक व्यक्ति किस समय क्या करेगा। भीड़ की प्रतिक्रिया एकदम रैंडम होती है वैसे ही जैसे पदार्थ के कुछ कणों का व्यवहार अप्रत्याशित होता है जिसे ‘ब्राउनियन मोशन’ कहा जाता है। हालाँकि पदार्थ के कणों के रैंडम व्यवहार को मापने के लिए गणित का सहारा लिया जाता रहा है लेकिन मनुष्यों की भीड़ कब क्या करेगी इसकी भविष्यवाणी करना कठिन है।
युद्ध में किसकी सेना का पलड़ा भारी होगा यह गेम थ्योरी बता सकती है। बैक्टीरिया की संख्या कब और कितनी तेज़ी से बढ़ेगी यह सांख्यिकीय विश्लेषण से ज्ञात किया जा सकता है। लेकिन किसी समूह में जब एक से अधिक चीजें अप्रत्याशित व्यवहार करती हैं तब उनका सामूहिक व्यवहार कैसा होगा यह पता लगाना कठिन है वह भी तब जब समूह की प्रत्येक इकाई को मानव मस्तिष्क नियंत्रित कर रहा हो।
गत कुछ दशकों में विकसित हुई कंप्यूटर विज्ञान की शाखा ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ में इतनी प्रगति हुई है कि अब भीड़ जैसे सिस्टम के व्यवहार की भविष्यवाणी भी की जा सकती है। आईआईटी मद्रास के विद्यार्थियों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे कश्मीर में पत्थरबाज़ों की भीड़ के व्यवहार का अध्ययन किया जा सकता है और उससे बचने के उपाय खोजे जा सकते हैं।
आईआईटी मद्रास में सेंटर फॉर इनोवेशन के स्टूडेंट एग्जीक्यूटिव हेड राघव वैद्यनाथन के अनुसार ‘एक्शन रिकग्निशन एल्गोरिदम’, ‘क्राउड डेंसिटी मैप’ और सीसीटीवी द्वारा प्राप्त लाइव इमेज को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक से जोड़ कर कश्मीर में पत्थरबाजी के दौरान होने वाली अप्रत्याशित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और उन घटनाओं से निजात पाने के उपाय थलसेना द्वारा पहले से किए जा सकते हैं।
‘एक्शन रिकग्निशन एल्गोरिदम’ एक प्रकार का एल्गोरिदम है जो मनुष्य की हरकतों का संज्ञान लेने के लिए प्रयोग किया जाता है। ‘क्राउड डेंसिटी मैप’ से भीड़ का घनत्व अथवा आकार मापा जा सकता है। सीसीटीवी फुटेज से पत्थरबाजों की सटीक पहचान की जा सकती है। इन तीनों के मेल से यह बताया जा सकता है कि अमुक पत्थरबाज यदि दोबारा दिखाई दे तो वह कैसी प्रतिक्रिया कर सकता है।
आईआईटी मद्रास के चार विद्यार्थियों ने नई दिल्ली में आयोजित हुए आर्मी टेक्नोलॉजी सेमिनार-2019 (ARTECH) में भाग लेते हुए इस खोज के बारे में बताया जिसपर थलसेना के उच्च अधिकारियों द्वारा सकारात्मक प्रतिक्रिया आई। थलेसना का विभाग ‘आर्मी डिज़ाइन ब्यूरो’ इस प्रकार के सेमिनार करवाता रहता है जिससे सेना और तकनीकी संस्थानों के बीच विचारों का आदान प्रदान होता रहे।
एक प्रश्न यह भी है कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीक आतंकवाद और पत्थरबाजी जैसी घटनाओं को रोकने में वास्तव में कारगर सिद्ध होगी। यहाँ बताते चलें कि आधुनिक तकनीक जैसे बिग डेटा एनालिटिक्स की सहायता से आतंकवादी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के प्रयास पहले भी किये जा चुके हैं।
मेरीलैंड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वी एस सुब्रमण्यन ने ऐसी एल्गोरिदम की खोज की है जिससे उन्होंने इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर ए तय्यबा जैसे संगठनों की हरकतों की भविष्यवाणी की थी। वे इसे SOMA और Temporal Probabilistic Rules कहते हैं। इनकी सहायता से प्रोफेसर सुब्रमण्यन ने 2013 में नरेंद्र मोदी की पटना रैली में हुए बम धमाकों की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी।
यदि इस विषय पर निरंतर शोध होता रहा तो आईआईटी मद्रास के विद्यार्थियों द्वारा किया गया प्रयास भविष्य में सफल हो सकता है और थलसेना उनके द्वारा विकसित की गई तकनीक को अपना सकती है। यह इस पर निर्भर करेगा कि रियल टाइम सिचुएशन में आईआईटी के विद्यार्थियों द्वारा बनाया गया एल्गोरिदम कितने सटीक परिणाम दे पाता है। थलसेना द्वारा तकनीकी संस्थानों के विद्यार्थियों के साथ ARTECH जैसे संवाद और प्रोत्साहन भविष्य में निश्चित ही फलदायी होंगे।