2019 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबिय अहमद अली को यह पुरस्कार इरीट्रिया के साथ उनके देश की 20 साल से चली आ रही जंग और सीमा विवाद का अंत करके ‘हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका’ के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने के लिए दिया जा रहा है। बाडमे (Badme) नामक एक कस्बे के नियंत्रण का विवाद पिछले 18 साला से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव का केंद्र बना हुआ था। यही मसला 1998-2000 तक चले युद्ध के बाद इरीट्रिया और इथियोपिया के बीच हुई आल्जिएर्स संधि को भी लागू करने में रोड़ा था। अबिय अली ने इस कस्बे का नियंत्रण इरीट्रिया को सौंप दिया।
खत्म की अपने देश की हठधर्मिता
आल्जिएर्स समझौते के अनुसार अंतरराष्ट्रीय सीमा आयोग के निर्णय को लागू करते हुए इथियोपिया को बाडमे इरीट्रिया को सौंप देना था। लेकिन उसने आयोग के निर्णय को नकारते हुए ऐसा करने से मना कर दिया था, जिससे दुनिया के सबसे गरीब देशों में गिने जाने वाले दोनों देशों के बीच ‘शीत संघर्ष’ (frozen conflict) की स्थिति बनी हुई थी।
अबिय अहमद अली ने इस संघर्ष की स्थिति का अंत किया और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध दोबारा शुरू हुए। 8 जुलाई, 2018 को अली इरीट्रिया के राष्ट्राध्यक्ष से मिलने वाले पिछले दो दशकों के पहले इथियोपियाई प्रधानमंत्री बने। दोनों देशों के बीच सीधे दूरसंचार संबंध तक नहीं थे, जो इस मुलाकात के अगले दिन “साझा शांति और मित्रता उद्घोषणा” (Joint Declaration of Peace and Friendship) पर हस्ताक्षर होने के बाद शुरू हुए। इसके अलावा इससे पूरी तरह जमीनी रेखाओं वाले और समुद्र से कटे इथियोपिया को इरीट्रिया के मसावा और आसेब बन्दरगाहों के इस्तेमाल का अधिकार भी मिला।
ईसाईयों-मजहब विशेष में शांति की स्थापना
खुद ईसाई माँ और चार शादियाँ करने वाले पिता की सन्तान अबिय अहमद अली ने अपने देश में दोनों समुदायों के बीच शांति की स्थापना में भी महती भूमिका का निर्वहन किया है। इथियोपियाई ऑर्थोडॉक्स तेवाहेदो चर्च और इथियोपियाई इलामिक काउंसिल के बीच कई तरह के संघर्ष हैं। सत्ता पर काबिज़ होने के पहले ही साल में अली ने इनका निपटारा करने के लिए कई कदम उठाए। इसके लिए उन्हें दोनों ही समुदायों के मज़हबी संगठनों ने अपने सर्वोच्च शांति पुरस्कारों से नवाज़ा है।