पाकिस्तान में इन दिनों ‘मेरा जिस्म, मेरी मर्जी’ का नारा ख़ूब चल रहा है। ‘औरत मार्च’ के बाद लोकप्रिय हुआ ये नारा वहाँ के मुल्ला-मौलवियों व इस्लामी कट्टरपंथियों की सोच को चुनौती दे रहा है, जो औरत को बुर्के में कैद रहने वाली एक वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं समझते। महिलाएँ अपने अधिकारों के लिए सड़क पर हैं। महिला दिवस के अवसर पर भी पाकिस्तान के कई शहरों में महिलाओं ने रैलियाँ निकालीं। पिछले तीन सालों से लगातार ‘औरत मार्च’ होता आया है और इस बार इसका थीम ‘मेरा जिस्म, मेरी मर्जी’ वाली टैंगलाइन को रखा गया था। आइए, जानते हैं उनकी माँगें क्या हैं।
महिलाओं की सबसे पहली माँग है कि उनके जिस्म पर उन्हें निर्णय लेने का अधिकार हो, ऐसा नहीं कि कोई पुरुष कुछ भी थोप दे। उनकी दूसरी माँग है कि पितृसत्तात्मक समाज की अवधारणा को ख़त्म किया जाए और देश व समाज के आर्थिक संसाधनों पर महिलाओं को बराबर का हक़ मिले। पुरुषों द्वारा प्रताड़ना और जबरन मजहबी धर्मान्तरण का शिकार भी अधिकार महिलाएँ ही होती हैं, इसीलिए इन दोनों की रोकथाम भी महिलाओं की माँगों में शामिल है। उनकी ये भी माँग है कि मीडिया व मनोरंजन की इंडस्ट्री में महिलाओं को जिस तरीके से अब तक दिखाया जाता है, उस पर रोक लगे।
‘औरत मार्च’ का आयोजन व इसकी प्रक्रिया में पाकिस्तान की कई महिला संगठनें शामिल हैं। पाकिस्तान की वामपंथी आवामी वर्कर्स पार्टी ने कहा है कि महिलाएँ अब पितृसत्तात्मक समाज की संरचनाओं को स्वीकार नहीं करेंगी और इसीलिए वो इसे तहस-नहस करने के लिए आगे आ रही हैं। इस मार्च में कई छात्राओं ने भी शिरकत की। महिलाधिकार संगठनों का मानना है कि पाकिस्तान की ताज़ा रैलियों के बारे में ख़ास बात ये है कि इन्हें युवा महिलाओं द्वारा लीड किया जा रहा है। लेकिन हाँ, इसका विरोध भी ख़ूब हो रहा है।
Still divorced and Happy! Take it ✊???♀️ @sehrdad @AuratMarch #AuratMarch2020 pic.twitter.com/bmwrNN87U7
— Nighat Dad (@nighatdad) March 8, 2020
पिछले साल हुए ‘औरत मार्च’ में कुछ ऐसे पोस्टर्स शेयर किए गए थे, जो कई लोगों को रास नहीं आए थे। एक पोर्टर में एक महिला टाँगे फैला कर बैठी होती हैं और लिखा होता है कि अब पुरुष नहीं सिखाएँगे कि महिलाओं के बैठने का ‘सही तरीका’ क्या है? जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के मुखिया मौलाना फजलुर रहमान की माँग है कि प्रशासन ऐसी रैलियों पर तत्काल रोक लगाए। उनका कहना है कि इस्लाम में महिलाओं को जितने अधिकार दिए गए हैं, उससे आगे नहीं बढ़ना चाहिए। वकील अज़हर सिद्दीकी का कहना है कि ये मार्च पश्चिमी अजेंडा का हिस्सा है। हालाँकि, उनकी याचिका लाहौर हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दी।
Aurat March, Slogans and Posters https://t.co/5cz5m4zlqS pic.twitter.com/iL4cLDcrq9
— Bina Shah (@BinaShah) March 9, 2019
पाकिस्तान में 2012-13 में हुए एक सर्वे के अनुसार 32% महिलाएँ वहाँ हिंसा का शिकार बनती हैं और 40% महिलाओं को उनके शौहरों द्वारा प्रताड़ना का शिकार बनाया जाता है। एक पाकिस्तानी लेखक ने तो सरेमाम लाइव टीवी डिबेट में एक महिला को गालियाँ बकीं क्योंकि उन्होंने ‘मेरा जिस्म, मेरी मर्जी’ का नारा लगाया था। पाकिस्तान में महिलाओं को ‘कायदे के कपड़े पहनने’ की सलाह दी जाती है और ऐसा न करने पर उनके साथ मारपीट होती है। इन्हीं चीजों को रोकने के लिए महिलाओं ने ‘औरत मार्च’ का सहारा लिया है।