ऑस्ट्रेलिया में 2 हफ्ते की मासूम बच्ची के गुप्तांग को विकृत करने की साजिश रचने के आरोप में दो महिलाओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई हो रही है। महिलाओं के नाम- सबरीना लाइटबॉडी (Sabrina Lightbody) और नोरिडाह बिंते मोहम्मद (Noridah Binte Mohd) है। दोनों पर्थ के दक्षिण में कैनिंगटन पुलिस जिले के एक उपनगर से हैं।
कथित तौर पर दोनों महिलाओं ने इस साल जनवरी में एक डॉक्टर से बच्ची का खतना करवाने के लिए संपर्क किया था। हालाँकि, डॉक्टर ने इसके लिए मना कर दिया और प्रशासन को इसके बारे में बता दिया। जाँच हुई तो चाइल्ड एब्यूज स्क्वॉड के जासूसों ने मामले को सच पाया।
बता दें कि फीमेल जेनिटल म्युटिलेशन यानी खतना पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में अपराध माना जाता है। इसलिए ऑस्ट्रेलिया पुलिस ने महिलाओं पर बच्ची के विरुद्ध साजिश रचने के आरोप लगाया। दोनों को शुक्रवार को आरमाडेल मजिस्ट्रेट कोर्ट (Armadale Magistrates Court) के समक्ष पेश किया गया।
Australia: Two women arrested for planning female genital mutilation of two-week-old baby https://t.co/sQ6BQlGYst
— Robert Spencer روبرت سبنسر रॉबर्ट स्पेंसर 🇺🇸 (@jihadwatchRS) March 12, 2021
इस सुनवाई में बाल संरक्षण अधिकारियों से बच्चे के कस्टडी को फिर से हासिल करने के महिलाओं के अनुरोध को कोर्ट द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। उन्होंने जेनिटल म्यूटिलेशन को एक गंभीर अपराध भी बताया।
मजिस्ट्रेट ने कहा कि महिलाओं को बच्ची वापस करना बिलकुल ऐसे है, जैसे बच्चे को दोबारा शेर की गुफा में डाल दिया गया हो। संभव है कि इस केस में महिलाओं के दोषी पाए जाने के बाद 10 साल की सजा होगी।
Australia: Two women arrested, face up to 10 years in jail for planning genital mutilation of a two-week-old baby girlhttps://t.co/pAvJHCY2ZC
— OpIndia.com (@OpIndia_com) March 13, 2021
पुलिस का कहना है कि बच्ची के गुप्तांग को विकृत करना सांस्कृतिक मान्यताओं के तौर पर योजनाबद्ध किया गया था। लेकिन बिना किसी मेडिकल कारण के महिला के गुप्तांग का बाहरी हिस्सा हटाना या फिर गुप्तांगों को चोट पहुँचाना ऑस्ट्रेलिया में बैन है। रिपोर्ट बताती है कि पूरे ऑस्ट्रेलिया में करीब 53000 महिलाएँ इस दर्द को झेल चुकी हैं।
जानकारी के मुताबिक आमतौर पर जेनिटल म्यूटिलेशन की प्रक्रिया 4 से 10 साल की उम्र में की जाती है। लेकिन इसे शादी से पहले, गर्भावस्था के दौरान या फिर बच्चे के जन्म के बाद भी किया जा सकता है। ये प्रक्रिया तमाम सामाजिक व मनोवैज्ञानिक उदाहरण दे देकर इस्लामिक कानून में अनिवार्य की गई है।