Saturday, April 20, 2024
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2 हफ्ते की बच्ची का खतना करने की फिराक में थी 2 औरतें, कोर्ट ने कहा- इनको बच्ची वापस करना दोबारा शेर की गुफा में डालने जैसा

बिना किसी मेडिकल कारण के महिला के गुप्तांग का बाहरी हिस्सा हटाना या फिर गुप्तांगों को चोट पहुँचाना ऑस्ट्रेलिया में बैन है।

ऑस्ट्रेलिया में 2 हफ्ते की मासूम बच्ची के गुप्तांग को विकृत करने की साजिश रचने के आरोप में दो महिलाओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई हो रही है। महिलाओं के नाम- सबरीना लाइटबॉडी (Sabrina Lightbody) और नोरिडाह बिंते मोहम्मद (Noridah Binte Mohd) है। दोनों पर्थ के दक्षिण में कैनिंगटन पुलिस जिले के एक उपनगर से हैं।

कथित तौर पर दोनों महिलाओं ने इस साल जनवरी में एक डॉक्टर से बच्ची का खतना करवाने के लिए संपर्क किया था। हालाँकि, डॉक्टर ने इसके लिए मना कर दिया और प्रशासन को इसके बारे में बता दिया। जाँच हुई तो चाइल्ड एब्यूज स्क्वॉड के जासूसों ने मामले को सच पाया। 

बता दें कि फीमेल जेनिटल म्युटिलेशन यानी खतना पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में अपराध माना जाता है। इसलिए ऑस्ट्रेलिया पुलिस ने महिलाओं पर बच्ची के विरुद्ध साजिश रचने के आरोप लगाया। दोनों को शुक्रवार को आरमाडेल मजिस्ट्रेट कोर्ट (Armadale Magistrates Court) के समक्ष पेश किया गया। 

इस सुनवाई में बाल संरक्षण अधिकारियों से बच्चे के कस्टडी को फिर से हासिल करने के महिलाओं के अनुरोध को कोर्ट द्वारा अस्वीकार कर दिया गया। उन्होंने जेनिटल म्यूटिलेशन को एक गंभीर अपराध भी बताया।

मजिस्ट्रेट ने कहा कि महिलाओं को बच्ची वापस करना बिलकुल ऐसे है, जैसे बच्चे को दोबारा शेर की गुफा में डाल दिया गया हो। संभव है कि इस केस में महिलाओं के दोषी पाए जाने के बाद 10 साल की सजा होगी।

पुलिस का कहना है कि बच्ची के गुप्तांग को विकृत करना सांस्कृतिक मान्यताओं के तौर पर योजनाबद्ध किया गया था। लेकिन बिना किसी मेडिकल कारण के महिला के गुप्तांग का बाहरी हिस्सा हटाना या फिर गुप्तांगों को चोट पहुँचाना ऑस्ट्रेलिया में बैन है। रिपोर्ट बताती है कि पूरे ऑस्ट्रेलिया में करीब 53000 महिलाएँ इस दर्द को झेल चुकी हैं।

जानकारी के मुताबिक आमतौर पर जेनिटल म्यूटिलेशन की प्रक्रिया 4 से 10 साल की उम्र में की जाती है। लेकिन इसे शादी से पहले, गर्भावस्था के दौरान या फिर बच्चे के जन्म के बाद भी किया जा सकता है। ये प्रक्रिया तमाम सामाजिक व मनोवैज्ञानिक उदाहरण दे देकर इस्लामिक कानून में अनिवार्य की गई है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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