Sunday, December 22, 2024
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हिंदू होकर खाना खिलाने की सजा: ‘मानव तस्करी के लिए बच्चों को देता है दवा’ – बांग्लादेशी कट्टरपंथियों से घिरा संगठन

"सोशल मीडिया पर की जा रही टिप्पणियाँ एक संगठन की प्रामाणिकता और सच्ची नीयत पर सवाल उठाते हैं। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि इसका नाम बंगाली है और इसके संस्थापक हिंदू हैं। ये सभी बातें बांग्लादेशियों के बीच बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता की ओर इशारा करती है।"

कोरोनो वायरस महामारी के दौरान जरूरतमंदों को खिलाने, अल्प-पोषित बच्चों को शिक्षा प्रदान करने और समाज में अधिकारहीन लोगों तक हर संभव मदद पहुँचाने के बावजूद विद्यानंद (विद्यानंदो या बिद्यानंदो – स्थानीय बोली के अनुसार – Bidyanondo Foundation) फाउंडेशन नामक बांग्लादेशी एनजीओ सोशल मीडिया पर कट्टरपंथियों के हमले की चपेट में आ गया है। इस फाउंडेशन का हिंदू नाम और उसके मालिक के हिन्दू होने की वजह से ही उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।

विद्यानंद फाउंडेशन के संस्थापक किशोर कुमार दास के खिलाफ हमले और दुष्प्रचार इतना तीव्र हो गया कि उन्हें फाउंडेशन के अध्यक्ष से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह घोषणा 5 मई को आधिकारिक रूप से फेसबुक पेज के माध्यम से आई थी।

हालाँकि, विद्यानंद फाउंडेशन की कार्यकारी समिति ने किशोर के इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया। साथ ही किशोर को अपना निर्णय वापस लेने का आग्रह भी किया।

ढाका ट्रिब्यून से एनजीओ के चेयरपर्सन ने कहा, “धार्मिक जुड़ाव के कारण सोशल मीडिया पर मेरे खिलाफ व्यक्तिगत हमलों के बाद मैंने इस्तीफा देने का फैसला किया। लेकिन बाद में मुझे महसूस हुआ कि यह फाउंडेशन के अभियान और गतिविधियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा।”

बांग्लादेशी सूत्रों ने दैनिक ढाका ट्रिब्यून से कहा कि पिछले दो वर्षों से फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया पर इसके नाम और संस्थापक के धार्मिक जुड़ावों के लिए लगातार हमलों का सामना करना पड़ा है।

हिंदूपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, ”भूख और सामाजिक वर्जनाओं के खिलाफ लड़ाई के कारण विद्यानंद फाउंडेशन के काम की बांग्लादेश में व्यापक रूप से प्रशंसा हो रही है। यह फाउंडेशन “एक टके आहार” (Food at Tk 1 – मतलब बांग्लादेशी करेंसी, जिसे टका कहा जाता है, उसके 1 टके में खाना) नामक एक परियोजना के माध्यम से अयोग्य लोगों को खाना खिला रहा है।

किशोर एक ऐसी दुनिया के सपने देखते हैं, जहाँ कोई भी बच्चा पीड़ित नहीं हो और कोई भी खाली पेट ना सोए। कोरोना वायरस महामारी के बाद, फाउंडेशन और भी अधिक सक्रिय हो गया है और जरूरतमंदों के लिए भोजन की आपूर्ति शुरू कर दी है।

इसके अलाव ढाका के सार्वजनिक वाहनों और अन्य क्षेत्रों में कीटाणुनाशक का छिड़काव भी यह संस्था कर रही है। कुत्तों को खाना खिलाने से लेकर फाउंडेशन द्वारा कई अन्य गतिविधियाँ की जा रही हैं। इसके लिए उन्हें समाज के हर तबके में प्रशंसा मिल रही है।”

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, किशोर कुमार दास को फाउंडेशन के “गैर-मुस्लिम” नाम के कारण कट्टरपंथियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

एनजीओ और चेयरपर्सन पर लगाए गए आरोप

● एनजीओ द्वारा दिए जा रहे भोजन में दवा मिलाया जा रहा ताकि बच्चें तुरंत सो जाएँ और बाद में उनका मानव तस्करी किया जाए। यह आरोप पूरी तरह गलत साबित हुआ।

● पिछले साल यह आरोप लगाया गया था कि एनजीओ द्वारा आयोजित इफ्तार में समुदाय विशेष के भोले-भाले लोगों को हिंदुओं में बदलने के लिए गोमूत्र/गोबर के साथ मिला कर दिया गया था।

● सोशल मीडिया पर यह आरोप लगाया गया था कि विद्यानंद फाउंडेशन भारत द्वारा वित्त पोषित एक हिंदू मिशनरी (इस्कॉन) संगठन है।

● यह भी आरोप लगाया गया है कि विद्यानंद फाउंडेशन दान के नाम पर धन इकट्ठा करता है और भारत में तस्करी करता है।

हिन्दूपोस्ट में ‘विद्यानंद फाउंडेशन को खुद का बचाव नहीं करनी चाहिए’ शीर्षक वाला एक लेख प्रकाशित हुआ। यह लेख एक बांग्लादेशी तनीम अहमद ने लिखा है। तनीम ओमनीस्पेस के संस्थापक और सीईओ हैं। इस लेख में विद्यानंद फाउंडेशन और इसके संस्थापक पर लगाए सारे आरोपों को खारिज किया गया है।

लेखक ने यह महसूस किया कि सोशल मीडिया पर की जा रही टिप्पणियाँ एक संगठन की प्रामाणिकता और सच्ची नीयत पर सवाल उठाते हैं। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि इसका नाम बंगाली है और इसके संस्थापक हिंदू हैं। ये सभी बातें बांग्लादेशियों के बीच बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता की ओर इशारा करती है।

लेखक ने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि बांग्लादेश तेजी से केवल “मुस्लिमों” का देश बन रहा है, जहाँ अन्य धर्मों के लोग दूसरे दर्जे के नागरिक बन जाएँगे, जबकि अन्य नास्तिक और शायद अहमदिया जैसे लोग पीछे धकेल दिए जाएँगे।

बांग्लादेशी NGO विद्यानंद (विद्यानंदो या बिद्यानंदो – स्थानीय बोली के अनुसार – Bidyanondo Foundation) फाउंडेशन

विद्यानंद फाउंडेशन की स्थापना वर्ष 2013 में किशोर कुमार दास ने की थी। भुखमरी और सामाजिक वर्जनाओं के खिलाफ लड़ाई, दलित बच्चों की बेहतरी के लिए अथक परिश्रम… आदि के लिए इस एनजीओ की बांग्लादेश में व्यापक रूप से प्रशंसा की गई। यह कार्य एक परियोजना के माध्यम से किया गया, जिसका नाम है: “एक टके आहार” (Food at Tk 1 – मतलब बांग्लादेशी करेंसी, जिसे टका कहा जाता है, उसके 1 टके में खाना)।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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