ब्रिटेन के एक स्कूल की वेबसाइट से ब्रिटिश जीसीएसई धार्मिक स्टडीज वर्कबुक (GCSE religious studies workbook) को हटा लिया गया है। साथ ही प्रकाशक ने भी इसे वापस ले लिया है। यह कदम प्रवासी भारतीयों के विरोध प्रदर्शन के बाद उठाया गया है। प्रवासी भारतीयों का कहना था कि इस पुस्तक में हिंदुओं को आतंकवाद के साथ जोड़ा गया था।
सोमवार (अक्टूबर 5, 2020) तक यह पुस्तक स्कूल की वेबसाइट पर उपलब्ध थी। इसे वेस्ट मिडलैंड्स के सोलिहुल में एक कंप्रीहेन्सिव माध्यमिक विद्यालय, लैंगली स्कूल की वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता था। हालाँकि अब स्कूल ने प्रवासी भारतीयों के विरोध के बाद इसे हटा लिया है।
वर्कबुक में AQA लोगो था और इसका शीर्षक “GCSE Religious Studies: Religion Peace and Conflict” था। यह एक पुस्तिका थी, जिसमें विश्व के धर्मों के बारे में जानकारी होती है और उसके बाद प्रश्नों का उत्तर देना होता है।
पुस्तक के पृष्ठ चार पर हिंदू धर्म का वर्णन है, जिसमें कहा गया है, “धार्मिक ग्रंथ सिखाते हैं कि धर्म को बनाए रखने के लिए युद्ध को नैतिक रूप से न्यायसंगत बनाने में सक्षम होना आवश्यक है। क्षत्रिय के रूप में अर्जुन अपने कर्तव्य की याद दिलाता है कि वास्तव में धार्मिक युद्ध से बेहतर कुछ भी नहीं है।”
इसमें आगे कहा गया है, “यदि कारण उचित है, तो हिंदू हथियार उठाएँगे। आत्मरक्षा उचित है, इसलिए भारत के पास आक्रामक हथियारों से बचने के लिए परमाणु हथियार हैं। कुछ हिंदू अपनी हिंदू मान्यताओं की रक्षा के लिए आतंकवाद की तरफ रुख कर चुके हैं।”
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ब्रिटिश हिंदू के निकाय, हिंदू फोरम ऑफ़ ब्रिटेन (HFB) के अध्यक्ष ने कहा, “यह हिंदुओं और भारत को बदनाम करने के लिए एक राजनीतिक कदम है। मुझे यकीन है कि जिसने भी यह लिखा है, उसने जानबूझकर ऐसा किया है।”
पटेल और एचएफबी के उपाध्यक्ष रमेश पट्टनी ने इस बाबत AQA को पत्र भेजा। जिसमें उन्होंने इसे ‘आपत्तिजनक’ और ‘गलत’ करार दिया। इसमें उन्होंने कहा कि इस तरह की चीजें प्रकाशित करने का साफ मतलब हिंदुओं के बारे में गलत धारणाएँ सिखाना था।
पत्र में कहा गया है, “आपने धर्म के अर्थ की पूरी तरह से गलत व्याख्या की है और इसे आतंकवाद के रूप में वर्णित किया है। यहाँ तक कि अर्जुन के बारे में भी व्याख्या पूरी तरह से गलत है। पुस्तक में जिस तरह से हिंदू मान्यताओं और प्रथाओं को चित्रित किया गया है, उससे हमें संदेह है कि इसके पीछे कोई राजनीतिक एजेंडा हो सकता है।
AQA के एक प्रवक्ता ने कहा, “सोशल मीडिया पर शेयर की गई वर्कबुक का निर्माण हमने नहीं किया था और हमारे ‘लोगो’ (logo) का इस्तेमाल हमारी अनुमति के बिना किया गया था। इसमें कुछ सामग्री एक पाठ्यपुस्तक से आई है। हमने प्रकाशक से बात की है, उन्होंने पुस्तक वापस ले ली है।”
लैंगली स्कूल ने पुष्टि की कि जैसे ही सोमवार को उसे इसके बारे में पता चला, उसने इसे अपनी साइट से हटा दिया। स्कूल ने कहा कि उसे कार्यपुस्तिका में लगे ‘लोगो’ के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि अब यह पुस्तक शिक्षण के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
स्कूल ने एक बयान में कहा, “हमारे स्टाफ के एक सदस्य ने कुछ साल पहले टाइम्स एजुकेशनल सप्लीमेंट वेबसाइट से सप्लीमेंट खरीदा था। हम डॉक्यूमेंट के लेखक से अनभिज्ञ हैं। हमें अफसोस है कि हमारे प्रशासन की निगरानी में यह अपराध हुआ है। हम आपको आश्वासन दे सकते हैं कि इसका उपयोग स्कूल में नहीं किया जाता है।”