पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि देश के विकास में दीन के प्रति वफादारी सबसे बड़ी बाधा है। उन्होंने कहा कि देश में संवैधानिक व्यवस्था को ढंग से लागू करने और शासन को सुचारू रूप से चलाने के बजाय इस्लाम को ज्यादा जगह देने और उसे स्थापित करने की कोशिश की गई।
इसके अलावा, न्यायमूर्ति आसिफ सइद खोसा ने कहा कि मुल्क को तय करना होगा कि इस्लामी शासन में सरकार की क्या भूमिका थी और वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था और शासन में इस्लाम को कहाँ रखना है। उन्होंने कहा कि मुल्क में सामने आने वाले मुद्दों की पहचान नहीं की गई तो मुल्क में असुरक्षा बनी रहेगी। पाकिस्तानी अखबार ‘द डॉन’ के अनुसार, उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बाधा विकास की थी, क्योंकि समाज की निष्ठा मुल्क की तुलना में अपने कबीले या जनजाति के प्रति थी। इसी तरह की प्रवृत्ति विधिज्ञ वर्ग सहित विभिन्न संस्थानों में भी बढ़ रही है।
जस्टिस अहमद ने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था और शासन के प्रतिमान के रूप में इस्लाम को स्थापित किए जाने के प्रयासों के कारण अदालत में छोटे-छोटे मुद्दों याचिकाओं की भरमार होती जा रही है, लेकिन नागरिक अधिकारों को लागू करने की क्षमता नहीं बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि इन्हीं सब स्थितियों के कारण मुल्क में गरीब और असहाय लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और उन्हें कई तरह की तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है।
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि मुल्क में स्थिति ये हो गई है कि सड़कों की सफाई, कूड़ा उठाने जैसी-जैसी छोटी बातों के लिए अदालत पहुँचा जा रहा है, जबकि ये सरकार के बुनियादी कार्य हैं। किसी भी सरकार की ये पहली प्राथमिकता होती है, लेकिन इमरान खान की सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है।
मुख्य न्यायाधीश गुलजार ने कहा कि मुल्क में संविधान को सार्वजनिक जीवन के सभी पहलुओं पर लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने सरकार से आसपास की स्थिति पर ध्यान देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि संविधान के तहत न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करने का काम दिया गया है कि संविधान को सही मायने में लागू किया गया है नहीं।