चीन ने पिछले कुछ समय में उइगरों का नरसंहार करते हुए नस्लभेद का सबसे डरावना चेहरा दिखाया है। कैम्पेन फॉर उइगर के एडवाइज़री बोर्ड के चेयरमैन तुर्दी होजा के मुताबिक़ चीन में लाखों उइगरों को कंसंट्रेशन कैम्प में रखा जा रहा है, जहाँ उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जिसके बारे में सोचना तक मुश्किल है।
“Campaign For Uyghurs” नाम के अपने लेख में होजा ने लिखा, “पिछले कई दशकों में चीनी सरकार खुले तौर पर उइगर और तिब्बती संस्कृति को नीचा दिखा रही है। जिससे आम लोगों में ऐसा संदेश जाए कि इससे जुड़े लोगों और रीति रिवाजों को उखाड़ फेंकने की ज़रूरत है। आज से लगभग 3 साल पहले चीन की सरकार ने उइगर समुदाय के मजहब को मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित कर दिया।”
बता दें कि बीजिंग में होने वाले मानवाधिकार हनन के मामले में बीजिंग की वैश्विक स्तर पर आलोचना होती है। इसके लिए सीधे तौर पर शी जिनपिंग और उनकी सरकार को दोष दिया जाता है।
इसके साथ ही होजा ने इस बात का भी उल्लेख किया कि चीनी सरकार ने लगभग 30 लाख उइगरों और अन्य तुर्की बोलने वाले लोगों को कंसंट्रेशन कैम्प में बंद कर रखा है। चीन सरकार उन पर झूठा आरोप लगाती है कि उन्हें मानसिक परामर्श की ज़रूरत है, इस बहाने इलाजा का दावा कर उन्हें कंसंट्रेशन कैम्प में बंद करती है, फिर उन पर अत्याचार करती है। जबकि उसमें से कई बुद्धिजीवी और कलाकार हैं।
इसके अलावा होजा ने कहा, “जब दुनिया पूरी तरह शांत थी तब धीरे-धीरे मानवाधिकार का यह अत्याचार बड़े पैमाने पर होने वाले नरसंहार में बदल गया। चीनी सरकार का अत्याचार इतना बढ़ गया है कि पहले उइगरों को कैद किया जाता है इसके बाद उनके बच्चों को उनकी संस्कृति और मजहब से अलग करके अनाथालयों में भेज दिया जाता है।”
होजा ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि जिन उइगरों की पत्नियाँ घरों में अकेली रहती हैं, चीनी लोग उनके साथ ज़्यादती करते हैं। होजा के मुताबिक़, “पहले उइगरों को कैद किया जाता है। इसके बाद उनकी पत्नियाँ अकेली हो जाती हैं और फिर चीनी लोग उनके साथ अत्याचार करते हैं। ऐसी तमाम रिपोर्ट भी सामने आई हैं जिसमें ऐसा बताया गया है कि उइगर औरतों को चीनी आदमियों के साथ संबंध बनाने के लिए दबाव बनाया जाता है।”
हाल ही में आई कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ उइगर महिलाओं की जबरन नसबंदी कर दी जाती है। जिससे उनकी आबादी और उनका वंश आगे न बढ़ पाए।
होजा का कहना था कि अब इस सूची में हॉन्गकॉन्ग का नाम भी शामिल हो चुका है। इतना ही नहीं चीन ने पिछले कुछ सालों में लगभग हर पड़ोसी देश के लिए मुश्किल खड़ी की है। इसमें जापान, ताइवान, वियतनाम, फिलिपीन्स, इंडोनेशिया, नेपाल और भारत भी शामिल हैं। चीन के इस रवैये से दुनिया का हर देश आक्रोशित है। हॉन्गकॉन्ग में पिछले साल से लोकतांत्रिक माँगों को लेकर काफी बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। जिसे दबाने के लिए चीन ने हॉन्गकॉन्ग पर ड्रैकोनियन सेक्युरिटी लॉ लागू कर दिया था।
अपनी अत्याचारी तानाशाही के चलते चीन ने सब कुछ अपने मन मुताबिक़ तय कर लिया है। चाहे वह सस्ते मजदूर हों या अपने तौर तरीके से बढ़ाया हुआ बाज़ार हो या संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद् में अपने खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को डरा धमका कर रखना हो। होजा ने कहा “दुनिया में शांति व्यवस्था और संतुलन बनाए रखने के लिए बहुत ज़रूरी है चीन जैसे देश के हाथों में सब कुछ जाने से रोका जाए।”
इसके बाद होजा ने कहा “जब दुनिया के लाखों और करोड़ों लोग एक महामारी के चलते अपने घरों में बंद हैं जिसकी शुरुआत चीन में हुई थी। ऐसे में लोगों को अपनी आँख खोल कर चीन की तरफ ध्यान से देखना चाहिए। भले कितने अलग तरह के दावे कर लिए जाएँ लेकिन सच यही है कि असल में चीन ही इस महामारी के लिए ज़िम्मेदार है। और उइगर और तिब्बती लोगों के साथ हो रहे अत्याचार के लिए भी।”
एशिया के अल्पसंख्यक समूह का सदस्य होने के नाते होजा ने कहा “मुझे नहीं लगता कि ट्रंप ने अगर इसे चीनी वायरस कहा तो वह एशिया के लोगों पर नस्लभेद का प्रचार कर रहे थे। चीन ने पूरी दुनिया से झूठ कहा जिसकी वजह से कोरोना वायरस पहले वुहान में फैला और उसके बाद पूरी दुनिया में। चीन अपनी राष्ट्रीय सीमाएँ बंद नहीं कर पाया जिसके चलते यह वायरस पूरी दुनिया में फ़ैल गया। अगर इस बार चीन से सवाल नहीं किया गया तो आने वाले समय में दुनिया के सामने इससे बड़ी चुनौतियाँ होंगी।”
इसके बाद होजा ने कहा “जब भी चीन की करतूतों का ज़िक्र होता है, दुनिया में कोई भी उसके खिलाफ बोलता हुआ नहीं नज़र आता है। यह उइगरों से बेहतर और कोई नहीं जानता है। मैं खुद साल 2017 के बाद अपने रिश्तेदारों से संपर्क नहीं कर पाया हूँ, ठीक ऐसे ही बचे हुए उइगर चीन के बाहर ही रह रहे हैं। चीन ने ऐसा तकनीकी सेटअप तैयार कर लिया है जिसकी वजह से पश्चिमी हिस्से में रहने वाले 15 लाख उइगरों का जीवन नर्क हो गया है।”