ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच तनाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है। पहले ऑस्ट्रेलिया ने अपने राष्ट्रीय हितों और विदेशी संबंधों का हवाला देते हुए चीन के साथ हुए बेल्ट एण्ड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से संबंधित समझौतों को रद्द कर दिया था वहीं अब चीन ने गुरुवार (06 मई) ऑस्ट्रेलिया के साथ ‘चीन-ऑस्ट्रेलिया इकोनॉमिक डायलॉग मकैनिज्म’ के अंतर्गत आने वाली सभी गतिविधियों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया है।
यह डायलॉग चीन के प्रमुख आर्थिक नीति निर्माता संस्थान नेशनल डेवलपमेंट एण्ड रिफॉर्म कमीशन (NDRC) और ऑस्ट्रेलिया सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के मध्य स्थापित हुआ था।
ऑस्ट्रेलिया और चीन संबंधों की इस महत्वपूर्ण व्यवस्था को रद्द करते हुए NDRC ने कहा कि वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया की सरकार के चीन के प्रति भेदभावपूर्ण रवैये और ‘कोल्ड वॉर’ की मानसिकता को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है कि NDRC के द्वारा ऑस्ट्रेलिया के साथ स्थापित इकोनॉमिक डायलॉग को रद्द किया जाए।
21 अप्रैल 2021 को ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मेराइस पेन ने चीन के साथ हुए चार समझौतों को रद्द करने की घोषणा की थी। इन चार समझौतों में से दो समझौते ऑस्ट्रेलिया की विक्टोरिया प्रांत की सरकार ने किए थे, जो चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई से जुड़े थे। ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री ने कहा था कि ये समझौते ऑस्ट्रेलिया की विदेश नीति और विदेशी संबंधों के प्रतिकूल थे।
संभवतः यही कारण है कि चीन ने भी ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने संबंधों की पुनर्समीक्षा की है। हालाँकि ऑस्ट्रेलिया के मंत्री ने कहा कि चीन का यह निर्णय निराशाजनक है क्योंकि ऑस्ट्रेलिया सभी देशों के साथ बेहतर संबंधों को लेकर प्रतिबद्ध है।
पिछले कुछ समय से ऑस्ट्रेलिया ने चीन को लेकर अपना रवैया अधिक स्पष्ट किया है। फिर चाहे वह चाइनीज कंपनी हुआवे को बैन करने की बात हो या फिर शिनजियांग और हॉन्गकॉन्ग में मानवाधिकारों पर आवाज उठाने की। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया ने ताइवान समेत चीन के आंतरिक मुद्दों पर चर्चा करने की माँग भी की थी। हालाँकि चीन से ऑस्ट्रेलिया के रिश्ते तब से ही खराब हैं, जब ऑस्ट्रेलिया ने कोरोना वायरस महामारी के विषय में चीन की स्वतंत्र रूप से जाँच की माँग की थी।
हालाँकि चीन और ऑस्ट्रेलिया के मध्य उत्पन्न हो रहे इस तनाव के कई दूसरे अर्थ भी हो सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले कुछ समय से ऑस्ट्रेलिया, भारत के काफी निकट आया है। चाहे वह क्वाड समूह की बात हो अथवा हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी की, ऑस्ट्रेलिया-भारत के संबंध पहले से अधिक प्रगाढ़ हुए हैं।
हाल ही में भारत, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में मुक्त, समावेशी और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक साझा मूल्यों की स्थापना को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की। लंदन में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, फ्रांस के विदेश मंत्री जीन ले ड्रियान और ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मेराइस पेन के साथ एक बैठक में सम्मिलित हुए।
तीन देशों के विदेश मंत्रियों की इस बैठक में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक, सुरक्षा, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए एक साझा सहयोग की आवश्यकता पर चर्चा हुई। इसके अलावा बैठक में तीनों देशों की ओर से क्षेत्रीय समूहों जैसे आसियान, पैसिफिक आइलैंड फोरम, ओसिएन रिम एसोसिएशन और इंडियन ओसिएन नवल सिम्पोजियम की आवश्यकता और समूहों के संवर्धन पर भी चर्चा की गई।
ज्ञात हो कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र सदैव से ही पूरी दुनिया के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है। हालाँकि चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में अशान्ति का कारण बनता आया है लेकिन पिछले कुछ समय में जिस प्रकार से जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए सक्रिय हुए हैं, उससे निश्चित ही इस क्षेत्र में एक नई सामरिक स्थिति निर्मित होगी।