तुर्की के इस्तांबुल शहर में स्थित चोरा चर्च को मई 2024 तक मस्जिद में बदल दिया जाएगा। इसके बाद मुस्लिम यहाँ नमाज अता कर सकेंगे। अभी इस चर्च को मस्जिद में बदलने का काम चल रहा है। इस चर्च को मस्जिद में बदलने का फैसला तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्दोगन ने किया था। इसके पहले ऐतिहासिक हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद बनाया जा चुका है।
जिस चर्च को मस्जिद में बदलने का काम किया जा रहा है, वह लगभग 1400 साल पुराना है। इसे कुस्तुनतुनिया (Constantinople- जिसे आज का इस्तांबुल कहा जाता है) पर रोमन शासन के दौरान बनाया गया था। इसके भीतर और अधिक साज सज्जा का काम बाईजेंटाइन शासन के दौरान किया गया था। इसमें बनी हुई मोजायक फर्श और भित्ति चित्र अपने आप में अद्वितीय हैं।
यह 15वीं शताब्दी तक चर्च के रूप में ही था, लेकिन इसके बाद जब यहाँ तुर्कों के ऑटोमन साम्राज्य ने अधिकार हुआ तो इसे मस्जिद में बदल दिया गया। कुछ शताब्दियों तक यह मस्जिद ही बना रहा। इसके बाद सन 1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यहाँ फिर से उदारवाद का दौर चालू हुआ तो इसे एक म्यूजियम के रूप में बदल दिया गया। वर्ष 2019 तक यह उसी रूप में रहा।
इसके बाद साल 2020 में तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्दोगन ने इसे एक सक्रिय मस्जिद में बदलने का ऐलान किया था। इसके बाद से इसमें कुछ मरम्मत का काम किया जा रहा था। अब सरकार ने बताया है कि इस चर्च को मई 2024 में मुस्लिमों की नमाज के लिए खोल दिया जाएगा। इसके पहले इसे फरवरी 2024 में खोले जाने की अटकलें थीं।
गौरतलब है कि एर्दोगन लगातार खुद को दुनिया के मुस्लिमों के संरक्षक के तौर पर पेश करते रहे हैं। वह तुर्की को खिलाफत के दौर में वापस ले जाना चाहते हैं। प्रथम विश्व युद्ध से पहले तुर्की में खलीफा का शासन था, जिसे पूरी दुनिया के मुस्लिमों का नेता माना जाता था। एर्दोगन खुद के लिए वही पदवी की चाह लिए बैठे हैं। इसी क्रम में उन्होंने यह कदम उठाया है।
हालाँकि, यह पहली बार नहीं हो रहा है कि किसी चर्च को मस्जिद में बदला जा रहा है। इससे पहले वर्ष 2020 में इस्तांबुल में ही हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद में तब्दील कर दिया गया था। इसके चर्च से मस्जिद में बदले जाने पर काफी हो हल्ला भी हुआ था। हागिया सोफिया भी रोमन शासन के बना एक ऐतिहासिक चर्च है, जिसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया है।
तुर्की के भीतर चर्चों को मस्जिद में बदलने को लेकर कोई भी आवाज नहीं उठ रही है। इसको लेकर कोई मुस्लिम संगठन या अन्य लिबरल गैंग भी अपना असंतोष नहीं जता रहे हैं। यहाँ उन मौलवियों के दावे भी झूठे साबित हो रहे हैं कि इस्लाम दूसरे के इबादतगाहों पर मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं देता है, जैसा कि ज्ञानवापी और श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मामले में कुछ मौलानाओं ने यह बात कही है।
भारत में सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक लड़ाई जीत कर बनाए गए राम मंदिर को लेकर खूब रोना-धोना हुआ था। इसके बाबरी मस्जिद वाले स्थान पर बनाए जाने को लेकर चिंताएँ जताई गईं थी, जबकि यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका था कि जहाँ मंदिर बना वहीं पर पहले भी मंदिर ही था और उसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।