वियोन की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के प्रकोप और भारत के साथ मौजूदा सीमा तनाव के बीच चीन ने अब रूसी शहर व्लादिवोस्तोक पर अपना दावा ठोक दिया है। शुक्रवार को भारत में रूसी दूतावास ने जापान के समुद्र के गोल्डन हॉर्न बे में रूसी सैन्य चौकी व्लादिवोस्तोक को स्थापित करने के बारे में एक वीडियो ट्वीट किया था। ट्वीट में कहा गया है कि इस सैन्य पोस्ट को मई 1880 में एक शहर का दर्जा दिया गया था।
🌞Good morning, #India!
— Russia in India (@RusEmbIndia) July 2, 2020
🚢#OTD, 160 years ago, the Russian military post named #Vladivostok was set up in the Golden Horn Bay of the Sea of Japan. In May 1880, Vladivostok received the status of a city.
Full video ➡️ https://t.co/QM7cYyscCO pic.twitter.com/6yD4NJVFds
ऐसा ही एक बीडियो बीजिंग में रूसी दूतावास द्वारा चीन की माइक्रोब्लॉगिंग साइट वीबो पर पोस्ट किया गया था, हालाँकि, इस पोस्ट को चीन के सोशल मीडिया वेबसाइट वीबो पर कुछ इस तरह से पसंद नहीं किया गया, जिस तरह से चीन के सोशल मीडिया यूजर्स ने रूस के खिलाफ इस अभियान को ऑनलाइन शुरू किया था।
राज्य के स्वामित्व में चलने वाले सीजीटीएन के जर्नलिस्ट शेन सिवई ने कहा कि रसियन दूतावास के द्वारा जो ट्वीट किया गया है उसे ज्यादा लोगों ने पसंद नहीं किया है, क्योंकि व्लादिवोस्तोक शहर पहले चीन के क्षेत्र में आता था। इसे रूस से एकतरफा संधि के जरिए छीन लिया गया था। कुछ इसी तरह की भावनाएँ अन्य चीन के राजदूतों द्वारा व्यक्त की गई, जिनमें पाकिस्तान में चीन के राजनयिक भी शामिल हैं।
This “tweet” of #Russian embassy to #China isn’t so welcome on Weibo
— Shen Shiwei沈诗伟 (@shen_shiwei) July 2, 2020
“The history of Vladivostok (literally ‘Ruler of the East’) is from 1860 when Russia built a military harbor.” But the city was Haishenwai as Chinese land, before Russia annexed it via unequal Treaty of Beijing. pic.twitter.com/ZmEWwOoDaA
दूसरा अफीम युद्ध और पेकिंग की संधि
द्वितीय अफीम युद्ध (1856-1860) के दौरान चीन को ब्रिटेन, रूस और फ्रांस के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। युद्ध की समाप्ति के बाद इस पूरे सुदूरवर्ती इलाके को रुस को दे दिया गया था। दरअसल, व्लादिवोस्तोक का क्षेत्र चीन के किंग राजवंश का ही एक हिस्सा था और 1860 में पेकिंग की संधि के तहत से रूस को सौंप दिया गया था।
हालाँकि, यह कानूनी रूप से स्वामित्व में था, लेकिन इसके बाद भी विस्तारवादी नीति पर चल रही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) अब इस संधि को खारिज कर देती है। व्लादिवोस्तोक शहर की तरह ही चीन ने कॉवलून प्रायद्वीप को खो दिया है, जो कि अब ब्रिटेन का हिस्सा है। अब चीन ने सोशल माडिया के माध्यम से 160 वर्ष बाद इस मामले पर अपना आक्रोश जाहिर किया है।
रूस-चीन के बीच संबंधों में उलझन
वुहान शहर से निकले कोरोना वायरस महामारी के कारण चीन के संबंध विश्व शक्तियों के साथ ठीक नहीं चल रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी चीन अपने करीबी सहयोगी रूस के ही खिलाफ खड़ा हो गया है। यह सब तब हुआ है कि जब रूस ने अभी तक चीन को न तो वुहान कोरोना वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया है और न ही हॉन्गकॉन्ग में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए।
हालाँकि, भारत में रूसी दूतावास द्वारा ट्वीट के माध्यम से व्लादिवोस्तोक के स्थापना दिवस को जश्न के रूप में मनाते हुए बड़ा रणनीतिक संकेत दिया है। इस ट्वीट ने भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद के बीच महत्व भारत और रूस के बीच की रणनीतिक साझेदारी को उजागर किया है।
दरअसल, रूस और चीन 4,209 किमी लंबी सीमा साझा करते हैं। रिपोर्टों के अनुसार, रूस का रक्षा मंत्रालय उन संभावित चुनौतियों को लेकर सतर्क है, जो लंबे समय में चीन द्वारा सीमा पर पैदा की जा सकती हैं। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि रूस के उत्सव पर चीन की आपत्ति सोशल मीडिया से आगे नहीं बढ़ेगी।
दरअसल, 1969 में दोनों देश युद्ध के कगार पर थे, लेकिन 2008 में दोनों देशों के बीच समझौता हो गया था। समझौते के दौरान, रूस ने अमूर और उसुरी नदियों के कुछ द्वीपों को चीन को सौंप दिया। हालाँकि, व्लादिवोस्तोक पर यथास्थिति अपरिवर्तित रही। कथित तौर पर, चीन ने विभिन्न पारस्परिक समझौतों का उल्लंघन करते हुए रूस में लगभग 160,000 वर्ग किमी भूमि पर दावा किया है।
चीन का विस्तारवाद
वियोन की खबर के अनुसार, चीन कम से कम 21 देशों के जमीन पर अवैध रूप से कब्जा किए हुए है। भले ही अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने उसके संदिग्ध दावों को खारिज कर दिया है, मगर फिर भी चीन फिलीपींस में द्वीपों के स्वामित्व पर जोर देता है। यही हाल वियतनाम का है।
कम्युनिस्ट द्वारा संचालित देश ने इंडोनेशियाई क्षेत्र में द्वीपों के पास पानी में मछली पकड़ने के अधिकार पर भी अपना दावा किया है। इसके अलावा चीन का लाओस, कंबोडिया के ऐतिहासिक मिसाल और थाईलैंड के साथ मेकांग नदी को लेकर 2001 से विवाद चल रहा है।
चीन का जापान के साथ सेनकाकू और रयु क्या द्वीप को लेकर विवाद चल रहा है। इसके अलावा, विस्तारवादी देश ने कई बार पूरे दक्षिण कोरिया पर दावा किया है। इसके अलावा, कम्युनिस्ट-नियंत्रित देश का उत्तर कोरिया के साथ पेक-टू और टूमन नदी को लेकर भी विवाद जारी है। इससे पहले, खबरें आईं थी कि चीन ने नेपाल के गोरखा जिले में रुई गाँव पर कब्जा कर लिया था।
चीनी आक्रामकता को समझें
सोनम वांगचुक ने पहले ही बताया था कि चीनी निरंकुश सरकार अपने उन 140 करोड़ लोगों से डरती है, जो सरकार के लिए बंधुआ मजदूरों के रूप में बिना किसी मानवाधिकारों के काम करते हैं। उसे डर है कि लोगों में बढ़ते असंतोष से कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ विद्रोह हो सकता है।
कोरोना वायरस महामारी के बीच, चीन को अपने कारखानों को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बेरोजगारी की दर 20% तक बढ़ गई है। इसलिए, पड़ोसी देशों के प्रति चीन का शत्रुतापूर्ण रवैया देश को एकजुट रखने की एक चाल का हिस्सा है।
उन्होंने बताया कि 1962 का भारत-चीन युद्ध भी तत्कालीन चीनी सरकार द्वारा अपनाई गई उन रणनीतियों का ही हिस्सा था, जिसका उद्देश्य 1957 से 1962 के बीच चले अकाल से निपटने में प्रशासन की विफलता से जनता का ध्यान हटाने का था। वांगचुक ने कहा कि निरंकुश सरकार यह जानती है कि यदि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि या देश की समृद्धि में कमी आती है, तो बड़े पैमाने पर विद्रोह स्वाभाविक है।
भारत-चीन गतिरोध
एक सैन्य अभ्यास की आड़ में लगभग 5000 चीनी सेना के जवानों ने भारत की ओर एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर अपना रुख कर दिया। मौजूदा गतिरोध 5-6 मई को शुरू हुआ था, जो सिक्किम तक जारी है। भारतीय सेना ने उन्हें कई क्षेत्रों में घुसपैठ करने से रोका था।
एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सेनाएं उच्च ऊँचाई वाले क्षेत्रों से पूर्वी लद्दाख सेक्टर तक पहुँच गई थीं। 15 जून को एक कर्नल सहित लगभग 20 भारतीय सैनिक उस वक्त वीरगति को प्राप्त हो गए थे, जब चीनी सैनिकों ने पत्थरों, बल्लों और कांटेदार तारों से उन पर हमला कर दिया था। माना जाता है कि चीन के 43 सैनिक हताहत हुए थे, लेकिन चीन ने अब तक हताहतों की संख्या की पुष्टि नहीं की है।