अड़ियल रवैए के कारण भारत में संकटों में उलझी माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर को फ्रांसीसी अदालत ने भी फटकार लगाई है। अदालत ने ट्विटर को सोशल मीडिया पर नस्लवाद, लिंगभेद और अन्य प्रकार के घृणास्पद पोस्ट से निपटने के लिए उठाए गए सभी कदमों का विवरण देने को कहा है।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, कई फ्रांसीसी सोशल मीडिया एक्टिविस्ट समूहों ने पिछले साल ट्विटर को अदालत में यह जानने के लिए घसीटा था कि वह अपने प्लेटफॉर्म पर घृणित सामग्री को रोकने के लिए क्या कर रहा है। भेदभाव विरोधी कार्यकर्ताओं (anti-discrimination activists) ने सोशल मीडिया कंपनी पर घृणित टिप्पणियों को रोकने में लगातार विफल रहने का आरोप लगाया था।
मजिस्ट्रेट फैब्रिस वर्ट की अध्यक्षता वाली फ्रांसीसी अदालत ने मंगलवार (6 जुलाई 2021) को भेदभाव-विरोधी कार्यकर्ता समूह के पक्ष में फैसला सुनाया। उन्होंने ट्विटर को कार्यकर्ता समूह उन सभी कदमों से संबंधित दस्तावेज सौंपने का आदेश दिया जो मई 2020 से हेट स्पीच रोकने के लिए उठाया गया है। अदालत ने कहा, “ट्विटर को सभी प्रशासनिक, संविदात्मक, टेक्निकल या कर्मिशियल दस्तावेज सौंपने चाहिए, जिसमें साइट पर होमोफोबिक, नस्लवादी और सेक्सिस्ट पोस्ट के खिलाफ एक्शन लेने का विवरण दिया गया हो।”
अदालत ने माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट से फ्रांस में मध्यस्थों को नियुक्त करने के पीछे के कारण की व्याख्या करने के लिए भी कहा, जो उन पोस्टों की जाँच करते हैं और कंटेंट मॉडरेटर हैं, जिन्हें यूजर्स घृणित साम्रगी के रूप में चिह्नित करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि ट्विटर के वैश्विक संचालन को कार्यकर्ताओं की जाँच के लिए खोलने का अदालत का फैसला सिर्फ फ्रांस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर में है।
अदालत ने ट्विटर को फैसले का पालन करने के लिए दो महीने का समय दिया है। ट्विटर ने कहा है कि वह अदालत के आदेश का अध्ययन कर रहा है। ट्विटर ने कहा, “हमारी पहली प्राथमिकता हमारे मंच का इस्तेमाल करने वाले लोगों की सुरक्षा को आश्वस्त करना है। हम एक सुरक्षित इंटरनेट बनाने, ऑनलाइन नफरत फैलाने वालों के खिलाफ शिकंजा कसने, सार्वजनिक बातचीत में अभद्र भाषा के प्रयोग को रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
इसी बीच फ्रांस यहूदी छात्र संघ (यूईजेएफ), जिसने ट्विटर के खिलाफ 5 अन्य समूहों के साथ मिलकर मामला दर्ज किया था, इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, “ट्विटर को अंततः जिम्मेदारी लेनी होगी, तर्क-वितर्क करना बंद करना होगा और नैतिकता को लाभ व अंतरराष्ट्रीय विस्तार से पहले रखना होगा।”
हाल ही में सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनियों की न केवल ऑनलाइन दुर्व्यवहार को लेकर आलोचना की गई है, बल्कि उन अकाउंट को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया गया है, जो हिंसा भड़काते हैं। इसके अलावा एक खास विचारधारा के लोगों को बढ़ावा देने का आरोप भी है।
हालाँकि, भारत, नाइजीरिया सहित कई देश इन बड़ी-तकनीकी कंपनियों के मनमाने कामकाज के प्रति सजग हो गए हैं। वे सोशल मीडिया कंपनियों को घरेलू कानूनों के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए नए सख्त कानून लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए भारत में मोदी सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों के कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए नए आईटी नियम लागू किए हैं। लेकिन, ट्विटर नीतियों का हवाला दे इन नियमों का पालन करने में विफल रहा है।