बीते कुछ समय से चीन जितनी भी गतिविधियों में शामिल होता है वह सवालों के घेरे में आ ही जाती हैं। चाहे चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस हो या चीन की सेना का भारतीय सेना से हुआ सीमा विवाद हो। हर संदर्भ में चीन की भूमिका संदिग्ध रही है, फिलहाल चीन से शुरू हुई कई तरह की परेशानियों के चलते उसे वैश्विक स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। लद्दाख में चीन और भारतीय सेना के बीच हुए टकराव के बाद भारत को वैश्विक स्तर पर समर्थन मिल रहा है। दुनिया के तमाम देशों ने भारत चीन विवाद पर खुल कर भारत का पक्ष लिया है।
शुक्रवार (जुलाई 3, 2020) के दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लद्दाख का दौरा किया और घायल हुए सैनिकों से मिले। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा देश के लोगों और भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाते हुए कई अहम बातें कहीं। प्रधानमंत्री का यह दौरा चीन के लिए साफ़ संदेश था कि भारत किसी भी तरह का विवाद होने पर पीछे नहीं हटेगा। इन बातों के बावजूद यह उल्लेखनीय है कि दुनिया के किन-किन देशों ने भारत का समर्थन करते हुए क्या कुछ कहा है?
अमेरिका
अमेरिकी समाचार समूह द वाशिंगटन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ अमेरिका ने साफ़ शब्दों में इसके लिए चीन के रवैये को ज़िम्मेदार ठहराया है। व्हाईट हाउस की मीडिया सचिव कायले मेक्नेनी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बयान का ज़िक्र करते हुए कहा “भारत चीन सीमा पर चीन का घटिया रवैये और दुनिया के तमाम देशों के साथ उसका व्यवहार लगभग एक जैसा है, चीन की हरकतों से यह साफ़ हो जाता है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का असल उद्देश्य और स्वभाव क्या है।”
इसके अलावा अमेरिका के स्टेट सेक्रेटरी माइक पोमियो ने भारत के 59 चीनी एप्लीकेशन पर लगाए प्रतिबंध के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा चीन के अधिकांश एप्लीकेशन कम्युनिस्ट पार्टी के लिए ख़ुफ़िया तौर पर जासूसी का काम करते हैं।
फ्रांस
फ्रांस के रक्षा मंत्री ने गलवान घाटी में वीरगति को प्राप्त हुए 20 भारतीय सैनिकों के लिए अफ़सोस जताते हुए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा। पत्र में उन्होंने लिखा “यह हमला सैनिकों, उनके परिवार वालों और देश के हर नागरिक पर थाl। ऐसे मुश्किल समय के दौरान हम पूरी फ्रांस की सेना की तरफ से दुःख जताते हैं और हर हालातों में भारत के साथ हैं।”
साथ ही फ्रांस भारत के 36 रफायल जेट समय रहते उपलब्ध कराने के निवेदन पर भी विचार कर रहा है। कुल 4 रफायल जेट का पहला बैच जिसमें मीटीयोर एयर टू एयर मिसाइल और स्कैल्प क्रूज़ मिसाइल इस महीने अंत तक भारत आ जाएगा।
जापान
जापान ने भी इस मामले में पूरी तरह भारत का समर्थन किया है। जापान के भारत में राजदूत सतोशी सुजुकी ने बताया कि उनकी भारत के विदेश सचिव हर्ष वी श्रृंगला से इस बारे में चर्चा हुई थी। सतोशी सुजुकी ने ट्वीट कर कहा, “मेरी विदेश सचिव श्रृंगला से अच्छी बातचीत हुई है। एलएसी पर श्रृंगला की ओर से दी गई जानकारी की और भारत सरकार के शांतिपूर्व समाधान के प्रयासों की मैं प्रशंसा करता हूँ। जापान आशा करता है कि इस विवाद का शांतिपूर्वक समाधान होगा। जापान यथास्थिति को बदलने की किसी भी कार्रवाई का विरोध करता है।”
इसके अलावा जापान सरकार के विदेश मंत्रालय ने भी हाल ही में इस मामले पर अपना मत रखा था। मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि वह इस मामले पर शुरू से निगाह रखे हुए है, क्योंकि ऐसी घटनाओं का सीधा असर क्षेत्रीय स्थिरता पर पड़ सकता है।
Had a good talk with FS Shringla. Appreciated his briefing on the situation along LAC, including GOI’s policy to pursue peaceful resolution. Japan also hopes for peaceful resolution through dialogues. Japan opposes any unilateral attempts to change the status quo.
— Satoshi Suzuki (@EOJinIndia) July 3, 2020
ऑस्ट्रेलिया
इसी कड़ी में ऑस्ट्रेलिया ने भी चीन का खुल कर विरोध किया है। ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में भारत के साथ साझा सैन्य समझौते पर सहमति जताई है जिससे आने वाले समय में दोनों देशों के बीच समबन्ध और बेहतर होंगे। इस समझौते की जानकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मोरिसन के बीच हुई वर्चुअल समित के बाद साझा की गई थी।
ऑस्ट्रेलिया इंडिया म्युचुअल लोजिस्टिक्स सपोर्ट नाम के इस समझौते के बाद भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच कई चीज़ें आसान हो जाएँगी। वहीं ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच रिश्ते उस समय से ही गड़बड़ हैं जब ऑस्ट्रेलिया ने खुले तौर पर चीन के वुहान से शुरू हुए कोरोना वायरस के स्रोत की जाँच की जाए। इसके बाद चीन ने ऑस्ट्रेलिया से आने वाली जौ पर अतिरिक्त कर लगा दिया था और ऑस्ट्रेलियाई बीफ पर प्रतिबंध। ऑस्ट्रेलियाई सरकार का यह भी कहना था कि चीन दुनिया के तमाम बड़े देशों पर होने वाले साइबर अटैक के लिए भी ज़िम्मेदार है।
ब्रिटेन
ब्रिटेन ने भी भारत – चीन सीमा विवाद पर अपना मत रखते हुए कहा कि हिंसा से किसी का भला नहीं होने वाला है। ब्रिटेन और चीन के बीच पिछले काफी समय से नेशनल सेक्योरिटी एक्ट पर विवाद चल रहा है, जिसके चलते हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता खतरे में आ गई। ब्रिटेन का कहना है कि चीन ने उस कानून का साफ़ तौर पर उल्लंघन किया है जिसके आधार पर 1977 में हॉन्गकॉन्ग चीन के हवाले किया गया था। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस मामले पर कहा था, “भारत और चीन को इस मामले का हल बातचीत से निकालना चाहिए।”
आसियान
इन सारे देशों के अलावा आसियान (ASEAN) ने भी भारत चीन सीमा विवाद के बीच चीन का खुल कर विरोध किया है।साथ ही लद्दाख में भारत और चीन की सेना के बीच बने हालातों के लिए पूरी तरह चीन को ज़िम्मेदार ठहराया है। हाल ही में 10 देशों के इस समूह ने चीन द्वारा दक्षिणी चीन सागर पर किए गए दावे को भी सिरे से खारिज किया है। समूह के देशों का यह कहना है कि 1982 में हुई यूएन ओशियन ट्रीटी के आधार पर कोई देश के नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता है जबकि चीन ने ऐसा कई बार किया है।