पीड़िता ने बताया कि 5 अगस्त की शाम 7 बजे 30-35 लोगों की भीड़ उसके घर में घुस आई और तोड़फोड़ की। सबके हाथ में धारदार हथियार थे। इस भीड़ ने पहले तो घर के दरवाजे और खिड़कियाँ तोड़कर एक बक्सा लूटा उसके बाद उसको एक गौशाला के पीछे ले गए और वहाँ उसे चुप रहने की धमकी देकर सबने बारी-बारी से उसका बलात्कार किया।
घटना के समय महिला का पति घर पर नहीं था उसका खुलना के अस्पताल में इलाज चल रहा था। जब उसे इस घटना का पता चला तो वो असहाय होकर अपना परिवार लेकर इलाके से चला गया। हालाँकि बाद में जमात के स्थानीय नेताओं डॉ कमाल और अब्दुल के आश्वासन पर पीड़िता, उसका पति और बच्चे 13 अगस्त को वापस लौटे। पूछने पर महिला ने बताया कि वो बलात्कारियों की पहचान नहीं कर पाएगी क्योंकि सबके मुँह पर मास्क थे।
इस मामले में ताला पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी मोमिनुल इस्लाम ने दावा किया कि पुलिस को बलात्कार के मामले की जानकारी नहीं दी गई है। प्रभारी ने कहा पीड़ित परिवार से बातचीत कर उनके नाम और पते की जानकारी लेने के बाद ‘आवश्यक कार्रवाई’ की जाएगी।
इस मामले पर मगुरा यूपी के चेयरमैन गणेश देबनाथ ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “मैंने पीड़ितों के परिवारों और पड़ोसियों से बात की है। जब तक राजनीतिक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, मैं मदद नहीं कर पाऊँगा। इसलिए मैं पत्रकारों से अनुरोध करता हूँ कि वे पीड़ित परिवार के साथ खड़े हों।”
गौरतलब है कि 9 अगस्त को बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओइक्या परिषद ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना के जाने के बाद देश के 52 जिलों में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों, विशेषकर हिंदुओं पर हमलों की 205 घटनाओं का विवरण दिया गया था।
परिषद ने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मुहम्मद यूनुस को इन घटनाओं की जानकारी पत्र लिखकर दी थी। संगठन के अध्यक्ष निर्मल रोसारियो ने कहा, “हमें प्रारंभिक जानकारी मिली है कि अब तक 52 जिलों में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की कम से कम 205 घटनाएँ हुई हैं। हम सुरक्षा चाहते हैं क्योंकि हमारा जीवन भयावह स्थिति में है। हम रात में जागकर अपने घरों और मंदिरों की रखवाली कर रहे हैं। हमने अपने जीवन में ऐसी घटनाएँ कभी नहीं देखी हैं। हम माँग करते हैं कि सरकार देश में सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करे।”