कड़े कानूनों के बावजूद खाड़ी देशों में मानव तस्करी में कमी नहीं आ रही है। हाल ही में कुवैत में कुछ सामाजिक संगठनों के हस्तक्षेप के बाद केरल की तीन महिलाओं को मानव तस्करी नेटवर्क के चंगुल से बचाया गया, लेकिन अभी भी वहाँ सैकड़ों महिलाओं के फँसे होने की खबर है। इसी बीच कुवैत में कई महीनों तक फँसी रही केरल की दो महिलाओं का दिल दहला देने वाला एक ऑडियो क्लिप सामने आया है। अपने वतन वापस लौट चुकी इन महिलाओं ने अपनी आप बीती बताई है कि कैसे मानव तस्करी रैकेट ने उन्हें नौकरी का झाँसा दिया और बाद में उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें कुवैत ले जाकर बेच दिया गया।
मानव तस्करी रैकेट ने केरल की दो महिलाओं की कीमत 3,50,000 रुपए लगाई थी। उन्हें कोच्चि स्थित एक ‘भर्ती’ एजेंसी द्वारा कुवैत में घरेलू नौकरानी के लिए बेचा गया था। खाड़ी देश में उन्हें दर्दनाक दौर से गुजरना पड़ा। महीनों बाद यहाँ से बच निकलने में कामयाब रहीं रेखा और उषा (बदले हुए नाम) के पास कई रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानियाँ हैं। इन दोनों को परिवार के भरण-पोषण के लिए विदेश में नौकरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा। बेहद गरीब परिवार से होने के कारण उनके पास कम दिनों में ज्यादा पैसे कमाने का और कोई विकल्प नहीं था। लेकिन उनकी गरीबी का फायदा उठाया गया और उन्हें अपने घरों से बहुत दूर एक अंजान देश में प्रताड़ित किया गया। नौकरी की चाह में झूठे दावों की शिकार हुई महिलाओं ने किसी तरह व्हाट्सएप पर एक ऑडियो क्लिप शेयर किया, उसमें उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार के बारे बताया और उन्हें रैकेट के चंगुल से बचाने की माँग की। इस ऑडियो क्लिप में ये महिलाएँ रो रही हैं और मलयाली भाषा में अपनी दर्दनाक कहानी बता रही हैं कि किस तरह उन्हें कुवैत में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।
द न्यूज मिनट के मुताबिक, ऑडियो में उन्होंने बताया, “हमें यहाँ लाकर कई दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया, भूखा रखा गया, हमारे साथ मारपीट और गाली गलौच की गई। जबरन श्रम के लिए मजबूर किया गया। इसके अलावा धमकी दी गई कि अगर हमने उनकी बात मानने से इनकार किया तो उन्हें आतंकी संगठन आईएसआईएस (ISIS) को बेच दिया जाएगा।”
रेखा बताती हैं, “जब मैंने जनवरी 2022 में कुवैत में बेबी सिटर्स और होम नर्स की नौकरी के लिए एक विज्ञापन देखा, तब मैंने उस पर लिखे फोन नंबर पर संपर्क किया। नंबर आनंद नाम के एक व्यक्ति का था, उसने मुझे चलिक्कवट्टम में अपने ऑफिस आने को कहा।”
वह कहती हैं, “गोल्डन वाया नाम की एजेंसी के कर्मचारियों ने उसे एक अच्छा सैलरी पैकेज ऑफर किया। उसे बताया गया कि अगर वह एक ‘दाई’ (नैनी) के रूप में काम करती है, तो उसे 60,000 रुपए मासिक वेतन और रहने के लिए घर दिया जाएगा। उसे यह भी बताया गया कि उसका एकमात्र काम बच्चों की देखभाल करना होगा, क्योंकि उन घरों में अन्य कामों के लिए नौकर हैं। इसके साथ ही उसे फ्लाइट का टिकट और वीजा भी एजेंसी की तरफ से दिया जाएगा।” रेखा ने बताया कि एजेंसी में दो महिलाएँ भी थीं, जिससे उन्हें एजेंट की बात पर पूरा विश्वास हो गया।
वहीं, उषा मानती हैं कि अगर उन्होंने एजेंसी के वादों को ठुकरा दिया होता तो बहुत अच्छा था। वह कहती हैं, “जब मैंने उनसे पूछा कि वीजा और टिकट मुफ्त क्यों हैं, तो उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि महिलाओं की भर्ती मोदी सरकार की योजना के तहत हो रही है। हमें बताया गया कि जाने से पहले हमें केवल अपने मेडिकल चेक-अप और आरटी-पीसीआर परीक्षणों के लिए भुगतान करना होगा। उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि मुझे एक अच्छी प्रतिष्ठित फर्म में भेजा जा रहा है।”
वह बताती हैं कि उसे समीर नाम के एक व्यक्ति से अपना टिकट, वीजा और पासपोर्ट लेने के लिए कहा गया था। इस पर उषा पूछती हैं कि वह उस पर कैसे विश्वास कर सकती हैं? उससे कहा गया कि समीर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में कार्यरत है। वह केरल के नेदुंबसेरी में स्थित होटल रॉयल विंग्स में उनका इंतजार कर रहा है।
रेखा का कहना है कि जब उन्होंने अपने वीजा पर ‘हाउसमेड’ लिखा हुआ देखा तो वह शुरुआत में घबरा गई थीं। बाद में रेखा उनसे इसके बारे में पूछती हैं, तो उन्होंने कहा कि वह यह सब अडजस्ट कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस वीजा के लिए पैसे देने हैं। वह कहती हैं, “उन्होंने मुझसे वादा किया था कि उनका एजेंट मुझे केवल बच्चों की देखभाल के काम के लिए भेज रहा था, इसलिए मैंने खुद को समझाया।” इसके बाद रेखा 6 और उषा 15 फरवरी को कुवैत पहुँची। हवाई अड्डे पर जैद जहर अल-दवसारी मैनपावर रिक्रूटमेंट एजेंसी के एमके गसाली नाम के एक व्यक्ति ने उनका स्वागत किया, जिसे मजीद के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद सब कुछ शीशे की तरह साफ होता गया।
रेखा कहती हैं, “जब मैंने गसाली से उस बच्चे के बारे में पूछा, जिसकी देखभाल के लिए मुझे यहाँ लाया गया था। उसे बताया कि तुम्हें यहाँ बच्चा सम्भालने के लिए नहीं लाया गया है। उन्होंने दावा किया कि ऐसा कोई वीजा नहीं है, जो कुवैत में श्रमिकों को सिर्फ बच्चों की देखभाल करने के लिए यहाँ आने की अनुमति देता हो।” वह आगे बताती हैं, “उसने मुझसे कहा कि तुम्हारे साथ क्या हुआ, इसके प्रति मेरी कोई जवाबदेही नहीं है। तुम्हे यह सब उस व्यक्ति से पूछना चाहिए, जिसने यहाँ भेजा है। रेखा कहती हैं, “कुवैत में उनका बाकी समय धमकियों और अमानवीय व्यवहार के साथ बीता। गसाली ने यह भी बताया था कि उन्होंने उसे 3.5 लाख रुपए में खरीदा है। इसलिए कुवैत में घरेलू काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।”
रेखा ने बताया कि उसे ऐसे परिवार में नौकर बनाकर भेजा गया, जहाँ आठ लोग रहते थे। वह रोते हुए याद करती हैं, “मुझे वहाँ सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक काम करना पड़ता था, बिना खाना खाए और आराम किए। कभी-कभी, वे मुझे एक या दो चपाती और काली चाय देते थे। उनके लिए यह मेरे जिंदा रहने के लिए पर्याप्त था। एक दिन, जब मैं थकान के कारण खड़ी नहीं हो पा रही थी, तभी उस घर की मालकिन ने आकर मुझे लात मारी, चप्पल से मारा और बहुत पीटा। मेरे सिर पर पानी डाल दिया और मुझे तेज धूप में खड़ा कर दिया। कह रही थी अभी तक तेरा काम नहीं हुआ। मैं इससे बहुत डर गई थी कि मैंने किसी तरह काम फिर से शुरू कर दिया।”
केरल की महिला ने बताया, “इस घटना के पाँच दिन बाद मेरी तबीयत बहुत खराब हो गई। नाक से खून बहने लगा था। मैंने अपनी स्थिति के बारे में एजेंसी को लगातार अपडेट किया। मैंने वीडियो पर गसाली को फोन किया और उसे मेरी नाक से खून बहने की तस्वीरें भेजीं, लेकिन उसने कोई ध्यान नहीं दिया।” वह कहती हैं, “मुझे बाद में एक क्लिनिक ले जाया गया, लेकिन क्लिनिक में कहा गया कि गम्भीर स्थिति है, मुझे अस्पताल ले जाना होगा। इसके बजाय अरब लोग मुझे एजेंसी के पास ले गए, क्योंकि वे मेरी देखभाल नहीं करना चाहते थे।”
उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए बताया, “यह आतंक अभी खत्म नहीं हुआ था। अगले दिन मुझे अस्पताल ले जाने की बजाय एजेंसी के लोगों ने मुझे अपने कार्यालय में ले गए और मुझे वहाँ बंद कर दिया। एजेंसी के लोगों ने मुझे धमकाना शुरू कर दिया और बेल्ट से मारा। उन्होंने कहा कि हम अरब लोगों ने तेरी कीमत दी है। इसलिए मुझे वापस जाकर वहाँ काम करना होगा। उन्होंने ऐसा नहीं करने पर मुझे ISIS (आतंकवादियों) के पास भेजने की धमकी दी, मुझे याद दिलाया कि मेरा पासपोर्ट अभी भी उनके पास है। उसी रात वे मुझे वापस उस घर में ले गए जहाँ मुझे पीटा गया था।”
रेखा की तरह उषा को भी कुवैत में कई बार प्रताड़ना दी गई। चप्पलों, बेल्ट से पीटा गया, भूखा रखा गया। शराफुद्दीन, हबीब और रफीक ये वे लोग थे, जिन्होंने रेखा और उषा की घर वापस आने में मदद की। दोनों महिलाओं का कहना है कि अगर एसोसिएशन ने मदद नहीं की होती, तो हमारे बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। रेखा कहती हैं, “हो सकता है कि उन्होंने मेरे खराब स्वास्थ्य के कारण मुझे जाने दिया हो। लेकिन दूसरी महिलाएँ एसोसिएशन की मदद से यहाँ से निकलने में कामयाब रहीं। रेखा ने सभी दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की उम्मीद जताई है। उसने कहा कि अभी वहाँ और भी लोग फँसे हुए हैं, जो नरक से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
गौरतलब है कि रैकेट के चंगुल से भागी दोनों महिलाओं के कुवैत पहुँचने पर पासपोर्ट जब्त कर लिए गए थे। बीते दिनों एक ने मीडिया में बताया था, “वहाँ पहुँचने के बाद हमें पता चला कि वे हमें अरब परिवारों के घर की नौकरानी बनाने के लिए यहाँ पर लेकर आए थे। जब हमने इसका विरोध किया तो उन लोगों ने हमें फर्जी मामलों में फँसाकर जेल में डालने की धमकी दी। हम इससे काफी डर गए थे। यह भी नहीं जानते थे कि किसी अनजान जगह पर क्या करें।”