अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 जून को पहले विदेशी दौरे पर मालदीव पहुँचे थे। इस दौरान पीएम मोदी को मालदीव का सर्वोच्च पुरस्कार ‘आर्डर ऑफ़ दी रूल ऑफ़ इज़्ज़ुद्दीन’ से सम्मानित किया गया था और अब भारत के लिए मालदीव से एक और अच्छी खबर आई है। दरअसल, मालदीव और चीन के बीच हिंद महासागर में एक वेधशाला बनाने के लिए समझौता हुआ था और अब पीएम मोदी के मालदीव दौरे के बाद ये संभावनाएँ जताई जा रही है कि चीन और मलदीव के बीच का ये समझौता रद्द हो सकता है। मौजूदा स्थिति में मालदीव के रिश्ते भारत के साथ मजबूत होते दिखाई दे रहे हैं।
In relief to India, Maldives may scrap ocean deal with China https://t.co/wUvk5TG5t9
— TOI India (@TOIIndiaNews) June 16, 2019
खबर के मुताबिक, जब अब्दुल्ला यामीन मालदीव में राष्ट्रपति के पद पर आसीन थे, उस समय मालदीव और चीन के बीच की नजदीकियाँ बढ़ी थी और दोनों देश के बीच ‘प्रोटोकॉल ऑन इस्टेबलिशमेंट ऑफ ज्वाइंट ओशियन ऑब्जर्वेशन स्टेशन बिटवीन चाइना एंड मालदीव्स’ नाम का समझौता हुआ था। जिससे भारत को सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई थी। इस समझौते का मतलब चीन को मालदीव के मुकुनुथू में एक वेधशाला बनाने की इजाजत देना था। फिलहाल इस समझौते पर बातचीत रुक गई है।
इस समझौते पर विराम लगना भारत के लिए इसलिए अच्छी खबर है, क्योंकि ये जगह भारत की समुद्री सीमा के बेहद करीब है और यदि ये समझौता हो जाता तो चीनी आसानी से हिंद महासागर में अपनी पैठ बना सकते थे। इसके जरिए कई व्यापारिक और दूसरे जहाजों की आवागमन होता है। इस मुद्दे पर तत्कालीन भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर ने मालदीव के राजनयिक अहमद मोहम्मद से चर्चा की थी। जिसमें राजनयिक ने स्पष्ट किया था कि चीन केवल मौसम संबंधी महासागर अवलोकन केंद्र बनाना चाहता है।
हालाँकि, यामीन सरकार ने इस समझौते को कभी सार्वजनिक नहीं किया और जब मामला सामने आया तो चीन ने इस पर सफाई देते हुए कहा था कि वेधशाला का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्य के लिए नहीं होगा। मालदीव दौरे के दौरान पीएम मोदी ने चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत की विकासात्मक साझेदारी दूसरों को सशक्त बनाने के लिए थी न कि उनकी भारत पर निर्भरता बढ़ाने और उन्हें कमजोर करने के लिए।