कुलभूषण जाधव के मामले इंटरनैशनल कोर्ट में जीत के बाद भारत को एक और कामयाबी मिली है। पाकिस्तान सरकार ने कुलभूषण जाधव से मिलने के लिए भारत को कॉन्सुलर एक्सेस देने का निर्णय लिया है। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को शुक्रवार को पाकिस्तान राजनयिक मदद मुहैया करवाने को अंततः तैयार हो गया है।
पाकिस्तान का यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के दबाव में लिया गया है। इसे भारतीय कूटनीति के विजय के रूप में भी देखा जा रहा है। क्योंकि इससे पहले पाकिस्तान लगातार कुलभूषण जाधव को राजनयिक मदद देने से इनकार करता रहा है।
Pakistani media: Pakistan offers consular access to Kulbhushan Jadhav tomorrow. (file pic) pic.twitter.com/M76cmyicYA
— ANI (@ANI) August 1, 2019
बता दें कि पाकिस्तान के व्यवहार में यह बदलाव इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के फैसले के बाद आया है। दरअसल, पाकिस्तान भारतीय नागरिक को जासूस बताकर फाँसी देना चाहता था। लेकिन फिर भारत ने इस मामले को इंटरनैशनल कोर्ट में उठाया। कोर्ट ने पाकिस्तान को जाधव को सुनाई गई फाँसी की सजा पर प्रभावी तरीके से फिर से विचार करने और राजनयिक पहुँच प्रदान करने का बुधवार (जुलाई 31, 2019) को आदेश दिया था।
इससे पहले, 17 जुलाई 2019 को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण जाधव मामले में भारत के पक्ष में निर्णय दिया था। अदालत ने पाकिस्तान को कुलभूषण जाधव को दी गई सजा की समीक्षा करने और पुनर्विचार करने को कहा था। इसके साथ ही कुलभूषण जाधव को मिली मौत की सज़ा पर भी रोक लगा दी गई थी। अदालत ने पाकिस्तान को वियना संधि के उल्लंघन का दोषी पाया था। अदालत ने कहा कि कुलभूषण जाधव को उनके अधिकारों के बारे में विवरण नहीं दिया गया। इसके अलावा अदालत ने इस बात का भी जिक्र किया कि जाधव की गिरफ़्तारी की जानकारी भारत को तुरंत नहीं दी गई।
बता दें कि 2016 में ईरान से अगवा कर पाकिस्तान ने उन्हें भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के लिए जासूसी के आरोप में मौत की सज़ा सुनाई थी, जिसे रोकने के लिए भारत सरकार ने हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में अपील की थी। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान को निर्देश दिया था कि उसके अंतिम निर्णय पर पहुँचने तक कुलभूषण जाधव की सज़ा पर अमल न किया जाए।
कुलभूषण जाधव (49 साल) भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने अप्रैल 2017 में बंद कमरे में सुनवाई के बाद जासूसी और आतंकवाद के आरोपों में उन्हें मौत की सजा सुनाई थी।