इजरायल का एक पत्रकार छोरी-छिपे मक्का पहुँच गया, जिसका खुलासा होने के बाद मुस्लिमों में उबाल है। उसने वहाँ का अपना वीडियो भी शेयर किया है। बता दें कि हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बायडेन ने इजरायल और सऊदी के तटवर्ती शहर जेद्दाह का दौरा किया है। मक्का में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वहाँ की सरकार ने प्रतिबंधित कर रखा है। उक्त पत्रकार का नाम गिल तमारी है, जो ‘चैनल 13’ के वर्ल्ड एडिटर के रूप में कार्यरत है।
उक्त पत्रकार ने जिस वीडियो को शेयर किया, उसमें वो मक्का के भव्य दरवाजों से होकर गुजर रहा है और साथ ही वो ‘ग्रैंड मस्जिद’ से होकर भी गुजरता है, जहाँ काबा स्थापित है। इस्लाम में ये सबसे पवित्र जगह माना जाता है। इस दौरान पत्रकार ने ड्राइवर के चेहरे को ब्लर कर दिया। उसके टीवी नेटवर्क ने भी इस वीडियो को साझा किया है। पत्रकार ने मक्का से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माउंट अराफात का भी दौरा किया।
हज यात्रा के दौरान यहीं बड़ी संख्या में मुस्लिम जमा होते हैं। बता दें कि हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को कवर करने के लिए कई इजरायली पत्रकार सऊदी अरब पहुँचे थे। इजरायल और सऊदी अरब के रिश्ते हाल के दिनों में ठीक हुए हैं। हल ही में इजरायल का एक बिजनेस डेलीगेशन भी वहाँ गया था। 1948 में सऊदी अरब ने यहूदी राष्ट्र की मान्यता को नकार दिया था और फिलिस्तीन का पक्ष लिया था। लेकिन, हाल के दिनों में राजनयिक और सुरक्षा वाले संवाद के कारण इस रुख में बदलाव आया है।
מכה היא העיר הכי קדושה לאיסלאם ומוקפת בכניסתה במצלמות משוכללות כדי למנוע כניסה למי שאינו מוסלמי. גיל תמרי היה לכתב הישראלי הראשון שהצליח להיכנס ולצאת למסע בעיר. ומה קרה כשחשדו בו? הכתבה המלאה – הערב במהדורה המרכזית@tamarygil pic.twitter.com/BzYKXP06P0
— חדשות 13 (@newsisrael13) July 18, 2022
गिल तमारी ने मक्का में घूमते हुए न सिर्फ वीडियो बनाया, बल्कि वहाँ के महत्वपूर्ण जगहों के बारे में भी बताते रहे। मक्का गेट के अंदर किसी भी गैर-मुस्लिम का प्रवेश बैन है। उन्होंने माउंट अराफत पर सेल्फी भी ली। सोशल मीडिया उन्हें गालियाँ पड़ रही हैं और मुस्लिम कह रहे हैं कि इजरायल ने मुस्लिमों को जेल में रखा है, जबकि एक यहूदी खुलेआम मक्का में घूम रहा। पत्रकार ने कहा है कि उनका ये दौरा मुस्लिमों को आहत करने के लिए नहीं था, वो माफ़ी माँगते हैं। उन्होंने कहा कि वो मक्का की सुंदरता को दिखा रहे थे।
बता दें कि एक बार जब मक्का पर कब्ज़ा हो गया था तो कुछ फ़्रांस के सैनिकों की मदद ली गई थी। चूँकि वहाँ गैर-मुस्लिमों की एंट्री वर्जित है, इसीलिए एक छोटे से समारोह में फ़्रांस के सैनिकों का धर्मांतरण करा के तब उन्हें अंदर लाया गया था। 7 साल पहले नवम्बर के महीने में इस्लामिक आतंकी हमला झेलकर फ्रांस ने 44 साल पहले मक्का की मस्जिद बचाने, और इसके अलावा अयातोल्ला खोमैनी को शरण देने की कीमत भर चुकाई थी।