दुनिया का छठा सबसे अमीर इस्लामी मुल्क मलेशिया अपने यहाँ बांग्लादेशी मजदूरों की संख्या बढ़ने को लेकर चिंतित है। बता दें कि बांग्लादेश का आधिकारिक मजहब भी इस्लाम ही है। बांग्लादेश ने मजदूरों को बाहर भेजने वाले एजेंसियों की संख्या बढ़ा कर 2000 कर दी है, जिस पर मलेशिया के मानव संसाधन मंत्री एम सरवनम ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि मलेशिया इसके बाद बांग्लादेश के मजदूरों के लिए एक डम्पिंग ग्राउंड (कचरा फेलने की जगह) न बन जाए।
उन्होंने ‘फ्री मलेशिया टुडे’ से बात करते हुए कहा कि बांग्लादेश की बांग्लादेशी को इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों को मलेशिया भेजने की इजाजत नहीं दी जा सकती। बांग्लादेश से फ़िलहाल मात्र 10 एजेंसियों को मजदूरों को मलेशिया लाने की इजाजत है, जिसे अब 20 गुना बढ़ाने के लिए बांग्लादेश ने मलेशिया सरकार से निवेदन किया है। मजदूरों की भर्ती के लिए दोनों देशों के बीच एक करार (MoU) पर लगभग एक वर्ष से विचार-विमर्श का दौर जारी है।
बांग्लादेश के मानव संसाधन मंत्री ने कहा कि ताज़ा फैसले पर उन्होंने आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि इससे पहले 10 कंपनियों को ही बांग्लादेश से मजदूर लाने की इजाजत थी, लेकिन इसे बढ़ाया जाना था पर इतना नहीं। उन्होंने कहा कि फाइनल ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है और अब इसे कैबिनेट में पेश किया जाएगा। अगले दो सप्ताह में अंतिम निर्णय होगा। मलेशिया ने जबरन मजदूरी के खिलाफ बने अंतरराष्ट्रीय नियम-कानून के अंतर्गत भी आने का निर्णय लिया है।
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— Berita Harian (@bharianmy) November 26, 2021
सितंबर 2018 में मलेसिया की सरकार ने बांग्लादेशी श्रमिकों के लिए विदेशी कर्मचारी आवेदन प्रणाली (SPPA) को निलंबित कर दिया था, जो केवल 10 चयनित एजेंसियों द्वारा भर्ती प्रक्रिया की अनुमति देता है। पिछली प्रणाली में प्रत्येक बांग्लादेशी मजदूरों को मलेशिया में काम करने के लिए वर्क परमिट और अन्य मामलों की अनुमति के लिए एजेंट को भुगतान प्रक्रिया के लिए आरएम 20,000 (3.54 लाख रुपए) तक का शुल्क देना पड़ता था। मानव तस्वीर को लेकर यूएन की रिपोर्ट के बाद भी मलेशिया ने कई कदम उठाए हैं।