जर्मनी में एक मुस्लिम शरणार्थी ने महिला अधिकारी से हाथ मिलाने पर असहमति जताई। शरणार्थी डॉक्टर के अनुसार, उसने ऐसा मजहबी कारणों से किया। इस मामले पर जर्मनी की अदालत ने उसे नागरिकता प्रदान करने से मना कर दिया। लेबनान का रहने वाला 40 वर्षीय चिकित्सक साल 2002 में जर्मनी आया था। उसने धार्मिक आधार पर महिला अधिकारी से हाथ मिलाने के लिए मना कर दिया।
इस पर जर्मनी की सरकार का कहना है कि धर्म और लिंग के लिहाज़ से किसी भी तरह का भेदभाव अमान्य है। यह संविधान द्वारा दिए गए समानता के अधिकारों की अनदेखी है। ऐसा करने वाले किसी भी नागरिक को नागरिकता नहीं दी जा सकती है, जिसका देश के संविधान में भरोसा नहीं हो।
“A firm, hearty #handshake gives a good first impression, and you’ll never be forgiven if you don’t live up to it.”#Muslims #Women #Germanyhttps://t.co/dWxK6DSUYu
— Hermann Observer (@Clarsonimus) October 19, 2020
लेबनान का मुस्लिम चिकित्सक पिछले दो दशकों से जर्मनी में बतौर शरणार्थी रह रहा था। साल 2012 में भी उसने नागरिकता के लिए आवेदन किया था, तब उसने जर्मनी के संविधान की मान्यता वाले दस्तावेज़ और आतंकवाद के विरोध वाले शपथ पत्र पर हस्ताक्षर भी किया था। इसके बाद जब उसने यह सारे दस्तावेज़ महिला अधिकारी को सौंपे थे तब उसने महिला अधिकारी से हाथ मिलाने के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया। हालाँकि उसका यह भी कहना था कि उसने अपनी पत्नी से वादा किया है कि वह किसी दूसरी महिला से हाथ नहीं मिलाएगा इस वजह से उसने ऐसा किया।
इन तथ्यों के आधार पर साल 2015 में जर्मनी के स्थानीय प्रशासन ने उसे वहाँ की नागरिकता देने से मना कर दिया था। इस आदेश के बाद लेबनान के मुस्लिम चिकित्सक ने लेबनान की शरणार्थी अदालत में याचिका दायर की, उस याचिका पर अब आदेश सुनाया गया है। बाडेन वुर्टेमबर्ग की अदालत ने इस मुद्दे पर कहा कि चिकित्सक को जर्मनी की नागरिकता न दिया जाने वाला आदेश सही है। अदालत के अनुसार कोई भी व्यक्ति धर्म या लिंग के आधार पर हाथ मिलाने (हैंड शेक) से मना नहीं कर सकता है।
इसके अलावा अदालत के न्यायाधीश ने भी इस मामले पर अपनी नज़रिया रखा। उन्होंने कहा, “हाथ मिलाने (हैंड शेक) के वैधानिक मायने हैं, यह अनुबंध के निष्कर्ष का सूचक है और तो और यह जर्मनी की सरकार – मुस्लिम चिकित्सक के बीच हुआ है। इसके अलावा, हाथ मिलाना हमारे समाज, संस्कृति और कानूनी जीवन का अभिन्न अंग है, यह साथ रहने की भावना को भी आकार देता है। कोई भी व्यक्ति अगर धर्म या लिंग के आधार पर हाथ मिलाने से मना करता है तो जर्मनी के संविधान द्वारा दिए गए बराबरी के अधिकारी की अवहेलना करता है। ऐसा करने वाले किसी भी व्यक्ति को नागरिकता नहीं दी जा सकती है।”
लेबनान मूल के इस शरणार्थी चिकित्सक ने जर्मनी से चिकित्सा की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उसने एक क्लीनिक में बतौर चिकित्सक काम करना शुरू कर दिया था। फ़िलहाल उसे जर्मनी की नागरिकता देने से साफ़ मना कर दिया गया है और जल्द ही उसे जर्मनी से भेजा भी जा सकता है।