ब्रिटिश कैबिनेट ऑफिस ने भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन और उनकी पत्नी एडविना की डायरियों और उनके पत्रों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। माउंटबेटन परिवार पर किताब लिखने वाले ब्रिटिश लेखक एंड्रू लोनी 2017 से प्रयास कर रहे थे कि माउंटबेटन परिवार के पत्र और डायरियाँ सार्वजनिक किए जाएँ। इसके लिए वो लगभग 2 करोड़ 60 लाख रुपए (£250 000) भी खर्च कर चुके।
ब्रिटिश कैबिनेट ऑफिस और साउथहैम्पटन विश्वविद्यालय ने इन्हें ‘देश के लिए सुरक्षित’ बताते हुए लेखक लोनी की अपील ठुकरा दी। हालाँकि लेखक का मानना है कि माउंटबेटन और उनकी पत्नी एडविना के इन पत्रों और डायरियों को सार्वजनिक करने से भारत के विभाजन और एडविना के रिश्तों के रहस्य सामने आ सकते हैं।
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार साउथहैम्पटन विश्वविद्यालय ने बताया कि उन्हें ब्रिटिश सरकार से निर्देश आया है कि माउंटबेटन और उनसे जुड़े कुछ दस्तावेजों को सार्वजनिक न किया जाए। इस पर लेखक लोनी यह आशंका जताते हैं कि इन दस्तावेजों में निश्चित ही कुछ विशेष रहस्य हैं अन्यथा इन्हें गुप्त रूप से सुरक्षित रखने के लिए न कहा जाता।
कई शिक्षाविदों का भी यही मानना है कि सुरक्षित रखे गए ये दस्तावेज भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन, भारत की आजादी और विभाजन तथा माउंटबेटन की पत्नी एडविना के साथ भारत के पहले प्रधानमंत्री और कॉन्ग्रेस नेता जवाहरलाल नेहरू के संबंधों को उजागर कर सकते हैं।
जवाहरलाल नेहरू और वायसराय की पत्नी एडविना माउंटबेटन के रिश्ते हमेशा से ही रहस्य का विषय रहे। कई लोगों की लिखी हुई किताबों और उपलब्ध दस्तावेजों से यह जानकारी सामने आती है कि नेहरू और एडविना के बीच जो रिश्ता था, वह किसी अधिकारिक जान-पहचान से कहीं अधिक था।
एडविना की बेटी पामेला हिक्स भी नेहरू से खास प्रभावित थीं और उन्होंने यह बात अपनी किताब ‘डॉटर ऑफ एम्पायर’ में बताई है। उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए बताया था कि उनकी माँ एडविना और नेहरू एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे।
पामेला हिक्स ने तब कहा था कि नेहरू की पत्नी की पहले ही मौत हो चुकी थी। उनकी शादीशुदा बेटी इंदिरा गाँधी भी दिल्ली से बाहर रहती थीं। तब नेहरू की मुलाकात एक आकर्षक महिला से होती है। दोनों के बीच एक चिंगारी पैदा होती है और दोनों एक दूसरे के प्यार में डूब जाते हैं।
नेहरू के जीवनीकार स्टेनली वॉलपर्ट ने अपनी किताब ‘नेहरू: अ ट्राइस्ट विद डेस्टिनी’ में बताया कि माउंटबेटन के नाती लॉर्ड रेम्सी के अनुसार खुद लॉर्ड माउंटबेटन, एडविना को लिखी गई नेहरू की चिट्ठियों को प्रेम-पत्र कहा करते थे।
जब भारत स्वतंत्र हो गया और ब्रिटिश भारत छोड़ कर चले गए तब भी नेहरू और एडविना की मुलाकात होती रहती थी। जवाहरलाल नेहरू जब भी लंदन जाते थे, एडविना के साथ कुछ दिन जरूर बिताते थे। इसकी पुष्टि लंदन में तत्कालीन भारतीय उच्चायोग में काम करने वाले खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा ‘ट्रुथ, लव एण्ड लिटिल मेलिस’ मे की है।
जब 59 वर्ष की आयु में एडविना की मृत्यु 1960 में हुई तो सरकारी खर्चे पर लेडी माउंटबेटन को श्रद्धांजलि देने की व्यवस्था की गई थी। उनकी इच्छा के अनुसार लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा उन्हें समुद्र में दफन किया गया। ऐसे में नेहरू भी पीछे नहीं रहे। नेहरू ने भारतीय नौसेना के फ्रिगेट आईएनएस त्रिशूल को एस्कॉर्ट के रूप में और साथ ही उनकी याद में पुष्पांजलि देने के लिए भेजा था।
पामेला हिक्स ने बताया कि जब उनका शोक संतप्त परिवार घटनास्थल पर माल्यार्पण के बाद हट गया था तो भारतीय फ्रिगेट आईएनएस त्रिशूल उस जगह पर आया और नेहरू के निर्देशों के अनुसार मैरीगोल्ड के फूलों से उस पूरे एरिया को आच्छादित कर दिया गया था।
ऐसे ही कई रहस्य हो सकते हैं, जिनके कारण ब्रिटिश कैबिनेट ने माउंटबेटन और उनकी पत्नी के पत्रों और डायरियों को सार्वजनिक करने से मना किया होगा।