नेपाल की केपी ओली सरकार ने देश के विवादित नक्शे वाली किताब के वितरण पर रोक लगा दिया है। नेपाल के विदेश मंत्रालय और भू प्रबंधन मंत्रालय ने शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी इस किताब के विषयवस्तु पर गंभीर आपत्ति जताई थी। इसके बाद नेपाली कैबिनेट ने शिक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह न केवल इस किताब का वितरण रोके बल्कि उसके प्रकाशन पर भी रोक लगाए। नेपाली कैबिनेट के इस फैसले से शिक्षा मंत्री गिरिराज मणि पोखरल को करारा झटका लगा है।
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक विदेश मंत्रालय और भू प्रबंधन मंत्रालय ने कहा था कि इस किताब में कई तथ्यात्मक ग़ल्तियाँ और ‘अनुचित’ कंटेंट है, इस वजह से किताब के प्रकाशन पर रोक लगाई गई है। कानून मंत्री शिव माया ने कहा, “हमने यह निष्कर्ष निकाला है कि किताब के वितरण पर रोक लगा दी जाए।” माया ने माना कि कई गलत तथ्यों के साथ संवेदनशील मुद्दों पर किताब का प्रकाशन गलत कदम था।
नेपाल की एजुकेशन मिनिस्ट्री ने कुछ दिन पहले इस विवादित किताब को लॉन्च किया था और इसे सेकंडरी स्कूल के स्टूडेंट्स के लिए रेफरेंस बुक कहा गया था। नेपाल के एजुकेशन मिनिस्टर गिरिराज मनी पोखरेल ने 15 सितंबर को 110 पेज की यह किताब ‘सेल्फ स्टडी मटीरियल ऑन नेपाल्स टेरिटरी एंड बॉर्डर’ रिलीज की। इसमें मुख्य तौर पर भारत के साथ नेपाल के सीमा विवाद का जिक्र है और बताया गया है कि भारत के कई इलाके नेपाल का हिस्सा हैं।
इस किताब में नेपाल का नया एरिया 147,641.28 स्क्वायर किलोमीटर दिखाया गया है, जिसमें 460.28 स्क्वायर किलोमीटर एरिया कालापानी का है। नेपाल के नए पॉलिटिकल मैप में भी भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पयाधुरा एरिया को अपना बताया गया है। इस किताब की प्रस्तावना खुद नेपाल के एजुकेशन मिनिस्टर ने लिखी है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि किस तरह उन्होंने 24 साल पहले कालापानी, लिुपलेख और लिम्पयाधुरा से भारतीय सेना को हटाने के लिए कैंपेन किया था।
नेपाल के सीनियर पॉलिटिकल जर्नलिस्ट बिनोद घीमीरे ने काठमांडू रिपोर्ट में कहा है कि जो नया मैप नेपाल सरकार ने जारी किया था, वहीं इस किताब में भी है लेकिन लगता है कि पॉलिटिकल सर्कल में इस किताब की प्रस्तावना पर ज्यादा आपत्ति है, जिसमें अनडिप्लोमेटिक भाषा का इस्तेमाल किया गया है।
लैंड मैनेजमेंट मिनिस्ट्री का भी कहना है कि इसमें कई जगहों पर गलत और असंवेदनशील टिप्पणी की गई है। मिनिस्ट्री के मुताबिक अभी कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख का पूरा एरिया का नाम अब तक पब्लिश नहीं किया है और उससे पहले ही किताब छापना ठीक नहीं है।
बिनोद घीमीरे ने कहा कि यह लगता है कि इस किताब से विदेश मंत्रालय भी खुश नहीं है क्योंकि यह डिप्लोमेसी के लिहाज से भी सही नहीं है। नेपाल में कई एक्सपर्ट्स भी इस किताब के छापने के वक्त को लेकर सवाल उठा चुके हैं। उनके मुताबिक ज्यादातर एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे वक्त में जब भारत-नेपाल के बीच डिप्लोमेटिक बातचीत कई महीनों से रुक गई थी, ऐसे में इस तरह का कदम भारत-नेपाल के बीच रिश्ते खराब करने वाला होगा। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने इस किताब पर रोक लगाकर इसका ख्याल रखा है कि भारत-नेपाल के बीच रिश्ते खट्टे न हों।
बता दें कि भारत और नेपाल के बीच मई में सीमा विवाद पैदा हो गया था। इस बीच नेपाल सरकार ने बच्चों की एक किताब में विवादित नक्शा प्रकाशित किया है। यही नहीं, इसमें भारत के साथ सीमा विवाद का भी जिक्र है। नेपाल के इस कदम से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत को झटका पहुँचने की आशंका पैदा हो गई थी।