Sunday, September 8, 2024
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नेपाल में गिरी चीन समर्थक प्रचंड सरकार, विश्वास मत हासिल नहीं कर पाए माओवादी: सहयोगी ओली ने हाथ खींचकर दिया तगड़ा झटका

प्रचंड की सत्ता गिराने में सबसे बड़ा हाथ नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का रहा। अब तक ओली की एमाले कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रचंड की पार्टी CPN-माओवादी सेंटर के साथ गठबंधन कर रखा था।

भारत के पड़ोसी देश नेपाल में बड़ी राजनीतिक हलचल हुई है। नेपाल में गुरुवार (12 जुलाई, 2024) को प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की गद्दी चली गई है। उन्होंने अपना बहुमत खो दिया है। वह देश की संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान बहुमत सिद्ध करने में असफल रहे हैं।

गुरुवार को संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा में अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में प्रचंड मात्र 63 वोट जुटा पाए। वहीं उनके विरुद्ध 194 वोट पड़े। नेपाल में सरकार बनाने के लिए प्रतिनिधि सभा के 275 सदस्यों में से 138 वोट चाहिए होते हैं, जो दहल नहीं जुटा पाए और उनकी सत्ता चली गई।

प्रचंड की सत्ता गिराने में सबसे बड़ा हाथ नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का रहा। अब तक ओली की एमाले कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रचंड की पार्टी CPN-माओवादी सेंटर के साथ गठबंधन कर रखा था। नेपाल में सबसे हालिया चुनाव 2022 में हुए थे, इन चुनावों में किसी भी दल को सरकार बनाने लायक सीटें नहीं मिली थी।

इन चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर नेपाली कॉन्ग्रेस सामने आई थी, इसके पास 89 सीटें थीं। वहीं ओली की पार्टी की पार्टी को 79 सीटें मिली थी। प्रचंड की पार्टी को मात्र 30 सीटें मिली थी लेकिन वह जोड़तोड़ से प्रधानमंत्री बन गए थे, उन्हें ओली ने समर्थन दे दिया था। प्रधानमंत्री प्रचंड की इस गठबंधन सरकार को अभी 19 महीने ही सत्ता में हुए थे।

हालाँकि, बीते कुछ समय से गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। इसी कारण से ओली ने समर्थन खींचने का फैसला लिया। उनके समर्थन खींचने के कारण सरकार अल्पमत में आ गई। ओली ने इसी के साथ नई सरकार के लिए भी विपक्षी पार्टी नेपाली कॉन्ग्रेस से समझौता कर लिया है।

जल्द ही नेपाल में ओली की अगुवाई वाली सरकार बनने के कयास लगाए जा रहे हैं। बताया गया है कि केपी शर्मा ओली पहले डेढ़ साल तक प्रधानमंत्री रहेंगे और इसके बाद नेपाली कॉन्ग्रेस के मुखिया शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बनाए जाएँगे। इसके अलावा आपस में कई मंत्रालयों और सत्ता का बँटवारा किया जाएगा।

यह भी बताया जा रहा है कि ओली और दहल के बीच बात बिगड़ने का कारण प्रचंड सरकार द्वारा हाल ही में पेश किया गया बजट रहा। इसके अलावा नेपाल के सिक्योरिटी बोर्ड के मुखिया की नियुक्ति इस गठबंधन के टूटने की सबसे बड़ी वजह रही। इसी कारण से ओली ने कॉन्ग्रेस के साथ अपनी नजदीकियाँ बढ़ा लीं।

गौरतलब है कि नेपाल की आंतरिक राजनीतिक वर्ष 2008 में राजशाही के पूर्णतया खत्म होने के बाद अस्थिर ही रही है। वर्ष 2008 से 2024 के बीच नेपाल में 13 बार प्रधानमंत्री बदल चुके हैं। इस बीच नेपाल के संविधान में भी बदलाव हुए हैं। प्रचंड की सरकार गिरने के बाद पुनः संविधान में संशोधन की बात हो रही है।

नेपाल की इस राजनीतिक हलचल का भारत पर क्या असर होगा, यह आने वाले समय में पता चलेगा। जहाँ पहले प्रचंड को प्रबल चीन समर्थक माना जाता था, वहीं हालिया दिनों में वह भारत के करीब आते नजर आए थे। वह भारत दौरे में मंदिरों में भी गए थे।

दूसरी तरफ ओली का कार्यकाल भारत और नेपाल के रिश्तों के बीच तल्खी वाला रहा था। ओली कार्यकाल के दौरान नेपाल ने भारतीय इलाकों को अपने नक़्शे में दिखाना चालू कर दिया था, जिसके बाद विवाद हुआ था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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