पाकिस्तान के अलावा एक और ऐसे देश का नाम सामने आ रहा है। जो पिछले काफी समय से भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर तुर्की ने पाकिस्तान की बातों का समर्थन किया था। लेकिन इसके बाद वह भारत विरोधी गतिविधियों का गढ़ बन चुका है। तुर्की में पनप रहे इस नए तरह के आतंकवाद को कोई और नहीं बल्कि वहाँ की एर्दोगन सरकार खुद बढ़ावा दे रही है।
हैरानी की बात यह है कि केरल और कश्मीर में मौजूद इन इस्लामी कट्टरपंथियों को हर तरह की मदद मिल रही है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इस बारे में हिन्दुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कई अहम बातें बताई। उन्होंने कहा तुर्की की तरफ से भारत के लोगों को कट्टर बनाने की भरपूर कोशिश जारी है। इतना ही नहीं तुर्की भारत के मजहब विशेष वाले कट्टर लोगों को और कट्टर बना कर उन्हें भारत विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल करना चाहता है।
तुर्की दक्षिण एशियाई देशों में अपना विस्तार करना चाहता है। लेकिन दूसरी तरफ इस इलाके में सऊदी अरब का प्रभाव किसी से छुपा नहीं है। इसके लिए तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन और उनकी सरकार की तरफ से तमाम प्रयास जारी हैं। उसका नतीजा है कि तुर्की ने अपनी छवि बतौर एक रेडिकल इस्लामिक देश स्थापित कर ली है।
इसी कड़ी में पिछले ही हफ्ते तुर्की की सरकार ने बाईज़ानटाईन कैथेद्रल हगिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में तब्दील कर दिया था। एर्दोगन के इन कदमों से इतना साफ़ है कि वह वैश्विक स्तर पर खुद को मजहब विशेष के रखवाले की तरह दिखाना चाहते हैं। पिछले साल एर्दोगन ने उन मलेशिया के महातिर मोहम्मद और पाकिस्तान के इमरान खान समेत कुछ मजहबी देशों के साथ एक गैर-अरब इस्लामी देशों का संगठन बनाने की कोशिश की थी। इसमें ईरान और क़तर ने भी तुर्की की सरकार का साथ दिया था।
सऊदी अरब और यूएई से भारत के समझौते बढ़ने के बाद तुर्की ने पाकिस्तान की और निहारना शुरू कर दिया था। रियाध के दबाव की वजह से तुर्की के साथ होने वाली बैठक में इमरान खान अंतिम वक्त में पीछे हट गए थे। जबकि तुर्की की तरफ से इमरान खान को मनाने की कोशिशें जारी थीं। अधिकारियों का मानना है कि तुर्की की सरकार ने एजेंडा तैयार किया है। जिसके तहत वह दक्षिण एशियाई देशों के मजहबी लोगों में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। इस एजेंडे में भारत के समुदाय विशेष को प्राथमिकता में रखा गया है।
भारतीय खुफ़िया अधिकारियों के मुताबिक़ तुर्की ने कश्मीर के कट्टर अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को सालों आर्थिक मदद की थी। बीते कुछ समय में तुर्की ने अलग तरीकों से भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया है। एर्दोगन सरकार ने पिछले कुछ सालों के दौरान भारत में कई मज़हबी आयोजनों को बढ़ावा दिया। जिसमें वह समुदाय के युवाओं को अपने मन मुताबिक़ मज़हबी प्रशिक्षण दे रहे हैं। इसी कड़ी में उस कट्टरपंथी समूह का नाम सामने आया है जो केरल में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है।
कुछ अधिकारियों का कहना है, “हम अच्छी तरह जानते हैं कि यह समूह तुर्की के लोगों से मिलने के लिए क़तर जाता है। जिससे इन्हें आर्थिक मदद मिलती रहे। उन्हें केरल में इस तरह की गतिविधियों को अंजाम देने के लिए 40 लाख रूपए तक मिलते हैं। इसके अलावा तुर्की पाकिस्तान और इस्लामी कट्टरपंथी जाकिर नाइक की फंडिंग भी करता है। तुर्की फ़िलहाल पाकिस्तान के लिए ‘नया दुबई’ बन चुका है। साल 2000 से लेकर 2010 के बीच दुबई आईएसआई का गढ़ बना हुआ था। जहाँ से पाकिस्तान भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देता था।”
इस दशक के दौरान पाकिस्तान की आईएसआई ने भारत के मजहब विशेष वालों को उनके ही देश के खिलाफ़ कट्टर बनाने का काम किया था। यहीं से इंडियन मुजाहिद्दीन ही शुरुआत हुई थी। इसके बाद यूएई और भारत ने आपस में संधि कर ली थी। जिसके बाद यूएई ने खुद भारत विरोधी गतिविधियों को ख़त्म करना शुरू कर दिया था। इसके अलावा भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ़ हो रहे विरोध में भी तुर्की ने अपनी भूमिका निभाई थी। भारत में हो रहे विरोध प्रदर्शन जारी रखने के लिए तुर्की ने आर्थिक मदद तक की थी।
कश्मीर मुद्दे पर भी संयुक्त राष्ट्र असेम्बली में भी सिर्फ एर्दोगन ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के खिलाफ़ बोला था। भारत के खिलाफ़ साज़िश में पाकिस्तान तुर्की का पूरा साथ देता है। इस साल हुए पाकिस्तान के दौरे में एर्दोगन ने कश्मीर पर कई हैरान कर देने वाली बातें कही थीं। उनका कहना था “कश्मीर हमारे लिए पहले जैसा ही है। कश्मीर जितना अहम पाकिस्तान के लिए उतना ही अहम हमारे लिए भी है।”