पाकिस्तान को आए दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फजीहत का सामना करना पड़ता है। आगामी 27 और 28 नवंबर को दुनिया के कई मुस्लिम आबादी वाले देशों के संगठन ‘आर्गेनाईजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन’ (OIC) की बैठक होनी है। इन देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के पहले ही पाकिस्तान को बड़ा झटका देते हुए संगठन ने तय किया है कि वह ‘कश्मीर मुद्दे’ को अपने एजेंडे में शामिल नहीं करेंगे।
क्योंकि पाकिस्तान भारत के अंदरूनी मसलों में दखल देकर उन्हें अंतरराष्ट्रीय बनाने का प्रयास करता रहा है। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए यह ख़बर पाकिस्तान के लिए काफी निराशाजनक है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की इस दो दिवसीय बैठक में मौजूदगी को लेकर बुधवार (25 नवंबर 2020) को पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की तरफ से आधिकारिक बयान जारी किया गया था।
बयान के मुताबिक़ पाकिस्तानी विदेश मंत्री की तरफ से उन तमाम चुनौतियों पर चर्चा की जाएगी, जिनका सामना मुस्लिम समुदाय को करना पड़ता है, जिसमें से एक विवाद ‘जम्मू कश्मीर मुद्दा’ भी है। बयान के अगले हिस्से में लिखा था कि जब से भारत ने जम्मू कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाया है, तब से वहाँ मानवाधिकार हनन जारी है, शाह महमूद कुरैशी इस पहलू पर सबसे ज़्यादा जोर देंगे।
OIC के एजेंडे में ‘जम्मू कश्मीर मुद्दे’ का ज़िक्र तक नहीं
अफ़सोस पाकिस्तान की तरफ से जम्मू कश्मीर मुद्दे की चर्चा को लेकर किए गए दावे पूरी तरह झूठ हैं क्योंकि OIC की ओर से अंग्रेज़ी और अरबी में जारी किए गए आधिकारिक बयान में जम्मू कश्मीर मुद्दे पर कोई उल्लेख ही नहीं है। बयान में संगठन के सचिव (सेक्रेट्री जनरल) युसूफ अल ओथाईमीन का हवाला देते हुए कहा गया है कि बैठक की थीम, शांति और विकास के लिए आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट (United against terrorism for peace and development) होगी। इस बैठक के एजेंडे में उन चुनौतियों को शामिल किया गया है, जिनका सामना मुस्लिम समुदाय के लोग कर रहे हैं।
बयान के मुताबिक़, “फ़लीस्तीनी मुद्दा, हिंसा, कट्टरपंथ, आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई, मज़हबी दुष्प्रचार और इस्लामोफ़ोबिया को शामिल करते हुए काउंसिल अल्पसंख्यक मुस्लिमों, अन्य देशों में मौजूद मुस्लिमों और रोहिंग्या के लिए आर्थिक सहयोग (ICJ की मदद से) के मुद्दों पर चर्चा करेगी। इसके अलावा बैठक के दौरान संगठन का प्रयास होगा कि संस्कृतियों, धर्मों, सामाजिक विषयों और समुदायों के बीच संवाद की गुंजाइश बने।” जैसा कि इस पूरे बयान में पढ़ा जा सकता है कि कहीं भी जम्मू कश्मीर मुद्दे का उल्लेख तक नहीं है। अरबी भाषा में जारी किए गए बयान में भी जम्मू कश्मीर मुद्दे का कोई उल्लेख नहीं मौजूद है।
पाकिस्तान ने गैरकानूनी रूप से कश्मीर के कई क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया है और पिछले काफी समय से प्रयास कर रहा था कि OIC की बैठक में जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा हो। OIC के सदस्यों ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान को नज़रअंदाज़ करते हुए इस पर कोई बात नहीं कही है। पाकिस्तान के संबंध सऊदी अरब और यूएई से तनावपूर्ण हैं और यह दोनों देश 57 सदस्यों वाले OIC में बेहद प्रभावशाली हैं। सऊदी अरब ने वर्चुअल वीटो का इस्तेमाल करते हुए 57 मुस्लिम देशों के इस ब्लॉक में इस्लामाबाद के इस कदम का समर्थन करने से इनकार कर दिया है।
अरब से बदतर होते पाकिस्तान के रिश्ते
कुछ सालों पहले तक सऊदी अरब और पाकिस्तान एक दूसरे के करीबी देशों में गिने जाते थे लेकिन पाकिस्तान के रवैये की वजह से दोनों देशों के रिश्ते बदतर हुए हैं। पूर्व में लंबे समय तक एक दूसरे के सहयोगी रहे पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच पहली बार दरार तब आई, जब सऊदी अरब ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करने से मना कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के रिश्ते लगातार बदतर हुए हैं।
इसके बाद फरवरी 2020 में भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब सऊदी अरब ने पाकिस्तान के उस निवेदन को ठुकरा दिया था, जिसके तहत पाकिस्तान जम्मू कश्मीर मुद्दे पर भारत की कार्रवाई का प्रतिरोध करने के लिए OIC देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक करवाना चाहता था। जब से भारत ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 ख़त्म किया है, तब से पाकिस्तान इस प्रयास में है कि इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाए और OIC में इस मुद्दे पर चर्चा हो।
पाकिस्तान के उकसाने के बावजूद सऊदी का मत स्पष्ट
पाकिस्तान ने सऊदी के सामने भारत के लिए जम कर जहर उगला लेकिन सऊदी अरब ने इस बात को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया। अपने स्तर से नीचे गिरते हुए पाकिस्तान ने सऊदी अरब को धमकी दी थी कि उसकी बात नहीं सुने जाने पर वह OIC में फूट डाल सकता है। ऐसी दोयम दर्जे की धमकियों के बाद सऊदी ने निर्णय लिया कि वह पाकिस्तान को दिए जाने वाले आर्थिक सहयोग पर भी रोक लगाएगा।
इस साल अगस्त में सऊदी ने पाकिस्तान को दिया हुआ 3 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ जल्द लौटाने की बात कही थी, जो उन्होंने साल 2018 के दौरान इमरान सरकार को दिया था। कश्मीर मुद्दे पर इतने तिरस्कार का सामना करने के बाद पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने तुर्की और मलेशिया जैसे मुस्लिम देशों को सऊदी के विरुद्ध एकजुट करने का असफल प्रयास किया था। इसके पहले सऊदी अरब ने पाकिस्तान के साथ किए गए उस समझौते को ‘रिन्यू’ करने से मना कर दिया था, जिसके तहत पाकिस्तान को सऊदी से कच्चा तेल मिलना था। समझौते के मुताबिक़ हर साल लगातार भुगतान करने पर 3.2 बिलियन डॉलर के कच्चे तेल का प्रावधान था।
सऊदी अरब का रवैया देखते हुए उसके पड़ोसी मुल्क यूएई ने भी पाकिस्तान के विरुद्ध कई बड़े कदम उठाए। हाल ही में यूएई ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पाकिस्तान और अफगानिस्तान के नागरिकों को वीज़ा देने से अस्थाई तौर पर मना कर दिया था। इसके अलावा यूएई ने भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को नज़रअंदाज़ ही किया है। उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार की सक्रिय कूटनीति और सकारात्मक छवि की वजह से भारत को काफी लाभ हुआ है। पिछले कुछ समय में भारत के संबंध पश्चिम एशियाई देशों से बेहतर हुए हैं जो कि अपने आप में ऊर्जा का बहुत बड़ा स्रोत हैं और वहाँ 90 लाख अप्रवासी भी मौजूद हैं।