कारगिल युद्ध (1999) के 25 साल बाद पाकिस्तान सेना ने पहली बार इस संघर्ष में अपनी भूमिका को स्वीकार किया है। यह स्वीकारोक्ति पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर द्वारा शुक्रवार (6 सितंबर 2024) को रावलपिंडी में आयोजित रक्षा दिवस पर दिए गए भाषण के दौरान सामने आई।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने कहा, “पाकिस्तानी बहादुरों का समूह है जो आजादी के महत्व करता है और आजादी के लिए कुछ भी करने को तैयार है।” मुनीर ने आगे कहा, “चाहे 1948 हो, 1965 हो, 1971 हो या 1999 का कारगिल युद्ध हो, हजारों सैनिकों ने देश और इस्लाम के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी है।” मुनीर के इस बयान को पहले के आधिकारिक रुख से अलग माना जा रहा है, क्योंकि पाकिस्तान लंबे समय से इस युद्ध में अपनी सीधी भागीदारी को नकारता रहा है।
कारगिल युद्ध मई और जुलाई 1999 के बीच लड़ा गया था, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय नियंत्रण रेखा (LoC) को पार करके जम्मू-कश्मीर के कारगिल में घुसपैठ की। पाकिस्तान ने शुरू में इन घुसपैठियों को “कश्मीर की आजादी के लड़ाके” या “मुजाहिदीन” के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि भारत ने इसे पाकिस्तानी सेना की साजिश बताया। भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत घुसपैठियों को वापस खदेड़ने के लिए सैन्य कार्रवाई की, जो अंततः सफल रही।
इस युद्ध में पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भारी आलोचना का सामना करना पड़ा, जबकि भारत ने अपनी सैन्य प्रतिष्ठा को मजबूत किया। पाकिस्तान ने तब तक अपनी सेना की भागीदारी को अस्वीकार किया था, और यहाँ तक कि मारे गए सैनिकों के शवों को स्वीकार करने से भी इंकार कर दिया था।
First time ever #PakistaniArmy accepts involvement in #KargilWar. Pakistan Army Chief General #AsimMunir confirms Pakistan Army's involvement in #KargilWar. Pakistan Army Chief General Asim Munir in a defence day speech on Friday said, "1948, 1965, 1971 or Kargil war between… pic.twitter.com/Um83MwSrwM
— Upendrra Rai (@UpendrraRai) September 7, 2024
रावलपिंडी में पाकिस्तान के जनरल असीम मुनीर का बयान, जिसमें उन्होंने कारगिल युद्ध का उल्लेख किया, इसे पाकिस्तान की ओर से उस युद्ध में अपनी भूमिका को स्वीकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। सोशल मीडिया पर उनके इस बयान की बड़े पैमाने पर चर्चा हो रही है। इससे पहले, पाकिस्तान हमेशा यह दावा करता रहा कि कारगिल में लड़ रहे लोग स्थानीय कश्मीरी विद्रोही थे, न कि पाकिस्तानी सैनिक।
जनरल मुनीर के इस बयान ने पाकिस्तान के पूर्व रुख पर सवाल उठाए हैं और इसके बाद पाकिस्तान के कुछ पत्रकारों और विश्लेषकों ने भी इस बयान के महत्व को रेखांकित किया है। कई दशकों तक पाकिस्तान ने यह दावा किया कि कारगिल में लड़ाई स्थानीय विद्रोहियों और कबीलाई नेताओं द्वारा लड़ी जा रही थी, जबकि भारतीय पक्ष से कई बार यह दावा किया गया कि ये पाकिस्तानी सेना के सैनिक थे जो कारगिल की ऊँचाइयों पर तैनात थे।
BREAKING NEWS
— Bharat Spectrum (@BharatSpectrum) September 7, 2024
• After 25 years, the Pakistan Army has admitted it was directly involved in the Kargil War.
• This is the first time they've done so, as they previously said it was just "Mujahideen" fighters. Pakistan had also refused to accept the bodies of its officers who… https://t.co/BFNQIW8HAV pic.twitter.com/CDjZDvAW8L
बता दें कि कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ थे, जिन्होंने उस समय भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ लाहौर घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इस घोषणा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच तनाव को कम करना और शांति स्थापित करना था। हालाँकि, इस हस्ताक्षर के कुछ ही महीनों बाद कारगिल युद्ध छिड़ गया। नवाज़ शरीफ ने तब से इस सैन्य अभियान की आलोचना की है और इसे “रणनीतिक गलती” के रूप में दर्शाया।
नवाज शरीफ ने सार्वजनिक रूप से इस अभियान से दूरी बनाते हुए इसका दोष सेना, विशेषकर उस समय के सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ पर मढ़ा है। मुशर्रफ, जो बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने, को कारगिल युद्ध के मुख्य योजनाकारों में से एक माना जाता है।
पूर्व पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) शाहिद अज़ीज़ ने भी इस युद्ध के बारे में खुलकर बात की। अज़ीज़, जिन्होंने कारगिल में अहम भूमिका निभाई थी, ने यह खुलासा किया कि इस योजना की जानकारी केवल मुशर्रफ और उनके कुछ शीर्ष कमांडरों को ही थी। उन्होंने इस ऑपरेशन को “चार लोगों की योजना” बताते हुए कहा था कि कारगिल युद्ध को लेकर पाकिस्तान की तरफ से न तो अच्छी तरह से योजना बनाई गई थी और न ही इसके लिए कोई राजनीतिक समर्थन था।
भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रभाव
कारगिल युद्ध का भारत-पाकिस्तान संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने दोनों देशों को एक और पूर्ण युद्ध के कगार पर ला दिया। इस युद्ध ने लाहौर घोषणा पत्र के माध्यम से बनाए गए विश्वास को खत्म कर दिया और कश्मीर विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की संभावनाओं को धूमिल कर दिया। पाकिस्तान की हरकतों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा की गई और अमेरिका ने पाकिस्तान को अपनी सेना वापस बुलाने के लिए मजबूर किया।
भारत के लिए, कारगिल में जीत ने उसकी सैन्य प्रतिष्ठा को और बढ़ावा दिया, जबकि पाकिस्तान को अपनी विफलताओं के लिए आंतरिक आलोचना का सामना करना पड़ा। यह युद्ध पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल का कारण भी बना, जिसके परिणामस्वरूप नवाज़ शरीफ को उसी साल एक सैन्य तख्तापलट के बाद सत्ता से बेदखल कर दिया गया।
जनरल मुनीर का हालिया बयान पाकिस्तान की सेना और राजनीतिक प्रतिष्ठान के भीतर लंबे समय से चल रहे अलग-अलग नजरियों को उजागर करता है। यह बयान भले ही संक्षिप्त और अस्पष्ट हो, लेकिन इसने कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान सेना की भूमिका पर फिर से चर्चा शुरू कर दी है। इस युद्ध की विरासत आज भी दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को प्रभावित करती है, और दोनों देश शांति की ओर बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। फिलहाल भारत और पाकिस्तान के बीच नाममात्र के ही संबंध हैं।