पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने सोमवार (16 अगस्त) को अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की सराहना की। इस्लामाबाद में ‘एकल राष्ट्रीय पाठ्यक्रम’ के उद्घाटन समारोह के दौरान उन्होंने तालिबानी शासकों द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा करने को उचित ठहराया। उन्होंने दावा करते हुए कहा कि अफगान के नागरिकों की मानसिक गुलामी की जंजीरें टूट गईं। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा उन पर अपनी संस्कृति को थोपना मानसिक दासता के समान था।
सांस्कृतिक पहलू पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “जब आप किसी की संस्कृति को अपनाते हैं, तो आप इसे श्रेष्ठ मानते हैं, लेकिन बाद में इसके गुलाम बन जाते हैं।” उन्होंने इस तरह की दासता को उचित ठहराते हुए दावा किया कि मानसिक दासता इससे बदतर थी। अफगान के लोग बड़े निर्णय लेने में असमर्थ थे वह पूरी तरह से गुलामी की जंजीरों से जकड़े हुए थे।
तालिबान के लिए इमरान खान और उनकी सहानुभूति
जून 2013 में, जब एक अमेरिकी ड्रोन हमले में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का उप प्रमुख वलीउर रहमान महसूद मारा गया था, तब खान ने उसे ‘शांति दूत’ के रूप में संदर्भित करके नए विवाद को जन्म दिया था। रहमान पर 5 मिलियन, 50 लाख रुपए अमरीकी डालर का इनाम रखा गया था। उस पर अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो बलों के खिलाफ हमले आयोजित करने का आरोप लगाया गया था। वह 2009 में अफगानिस्तान में एक अमेरिकी ठिकाने पर आत्मघाती हमले के सिलसिले में भी वांछित था, जिसमें सीआईए के सात एजेंट मारे गए थे।