प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से ब्रिटिश ब्रॉडकास्टर बीबीसी (BBC) द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री का व्यापक विरोध हुआ है। डॉक्यूमेंट्री में गुजरात दंगों का सारा दोष पीएम मोदी पर मढ़ने की कोशिश की गई है। हालाँकि, जिस देश में बीबीसी का मुख्यालय है, वहाँ रह रहे भारतीय प्रवासियों ने इस प्रोपेगेंडा डॉक्यूमेंट्री के खिलाफ हाल में प्रदर्शन किया है। हमारी कई रिपोर्ट्स में डॉक्यूमेंट्री के कई भ्रामक पहलुओं पर चर्चा की गई है। भारत सरकार ने भ्रम फैलाने वाले कंटेंट की वजह से डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।
ब्रिटेन में डॉक्यूमेंट्री के विरोध में कई एनआरआई बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए और मीडिया हाउस के मुख्यालय के बाहर और कई शहरों में विरोध प्रदर्शन किया। निश्चित तौर पर यह पहली बार था जब अनिवासी भारतीय, विशेषकर हिंदू इतनी बड़ी संख्या में किसी खास वजह से सड़कों पर उतरे हैं। ऑपइंडिया ने पंडित सतीश के शर्मा के साथ बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर एनआरआई के विरोध-प्रदर्शन के बारे में विस्तृत चर्चा की और इस तरह के विरोध का कारण जानने की कोशिश की।
बीबीसी के दो चेहरे
यह समझने की जरूरत है कि जब हिंदुओं की बात आती है तो बीबीसी के दो चेहरे होते हैं। यदि आप बीबीसी पर हिंदू त्योहारों से संबंधित रिपोर्ट्स को देखते हैं, तो वे दिवाली समारोह, होली समारोह आदि को दिखाएँगे। यह बहुसांस्कृतिक ब्रिटिश कहानी में बहुत जरूरी ‘रंग’ जोड़ता है। उनकी मंशा ब्रिटेन के तथाकथित बहुसांस्कृतिक प्रकृति को पॉजिटिव रूप से दिखाने की होती है। ऐसे बहुत से लेख हैं जिनमें बीबीसी खुशी-खुशी हिंदुओं द्वारा ब्रिटेन के समाज को दिए योगदान का जश्न मनाता है।
इस संस्थान के दूसरे चेहरे पर आते हैं, जहाँ उन्हें परंपरागत रूप से भारत और विशेष रूप से हिंदुओं के बारे में कुछ भी अच्छा दिखाने में कठिनाई होती है। यह एक रणनीतिक कदम है। यह लगभग एक सिज़ोफ्रेनिया (schizophrenic) व्यक्ति के साथ बातचीत करने जैसा है। जब भी किसी चीज का हिंदू आयाम होता है, बीबीसी रणनीतिक रूप से और लगातार भारतीय कहानी को नकारात्मक और हानिकारक के रूप में दिखाने की कोशिश करता हो। सिज़ोफ्रेनिया मानसिक विकार का एक प्रकार है।
जब हम हिंदू दर्शन और अन्य सभी चीजों के बारे में बात करते हैं तो एक समान विरोधाभास स्पष्ट होता है। उदाहरण के लिए, बीबीसी की वेबसाइट को देखिए। वे वही पुरानी कहानी दिखाएँगे और वही पुरानी छवि पेश करेंगे कि सनातन धर्म में एक श्रेणी के अनुसार वंशानुगत अंतर्विवाही जाति सँरचना (hereditary hierarchical endogamous caste structure) है और यह धार्मिक है। यह हिंदू परंपरा का हिस्सा है।
दिलचस्प बात यह है कि तथ्यों के साथ साबित हो चुका है कि यह पूरी तरह से गलत है। कई एनआरआई हिंदुओं ने बीबीसी को सही जानकारी प्रदान की है और ब्रिटिश ब्रॉडकास्टर के साथ काम करने की कोशिश की है, लेकिन वह अपने पक्ष में एक भी वेबपेज नहीं बदलवा सके। इस तरह बीबीसी हिंदू आवाज सुनने के लिए अनिच्छुक रहा है। हिन्दुओं के साथ बीबीसी का इतिहास देखें तो कई बार स्नेह की स्थिति भी बनी थी लेकिन ज्यादातर समय रिश्ते खराब ही रहे।
समय के साथ बढ़ता गया गुस्सा
लोगों का यह विरोध प्रदर्शन अचानक नहीं हुआ है। समय के साथ बीबीसी के खिलाफ गुस्सा और निराशा बढ़ती चली गई। बीबीसी के खिलाफ पहले भी अभियान चलाए गए हैं लेकिन इसके खिलाफ लोग सड़कों पर नहीं उतरे थे।। अतीत में, बीबीसी के खिलाफ बहुत सारे पत्र-लेखन अभियान और शिकायतें दर्ज की गई हैं। उदाहरण के लिए, जब बीबीसी ने कश्मीर के बिना भारत का नक्शा प्रकाशित किया, तो मीडिया हाउस को एनआरआई हिंदुओं की आलोचना का सामना करना पड़ा था।
एक और उदाहरण है जिसे याद किया जा सकता है। जब नई दिल्ली की सड़कों पर किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, बीबीसी इसे हिंदू-सिख मामला बनाने में बहुत सक्रिय रूप से शामिल था। उन्होंने इसके धार्मिक आयाम पर जोर दिया था। एनआरआई हिंदुओं ने नैरेटिव पर आपत्ति जताई, लेकिन ये आपत्तियाँ आम तौर पर लिखित शिकायत तक ही रही। जिस तरह से बीबीसी के काम करने के तरीके में भेदभाव समाहित हैं, इसने 2014 के बाद एनआरआई हिंदुओं को लगातार इसके नैरेटिव को लेकर सोचने पर मजबूर किया है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ब्रिटेन में रहने वाले अधिकांश हिंदू इसे अपनी कर्मभूमि मानते हैं और भारत को अपनी जन्मभूमि के रूप में देखते हैं। वे दोनों के लिए अपने दायित्वों को पूरा करते हैं। लेकिन जब बात उस बिंदु पर आती है जहाँ आपकी पहचान पर हमला किया जा रहा है और आपकी जन्मभूमि पर हमला किया जा रहा है, तो इसका मतलब है कि आपके जो अधिकार अपनी कर्मभूमि में लिए हैं, वे वास्तविक नहीं हैं।
कैसे बीबीसी की लीसेस्टर रिपोर्टिंग ने एनआरआई हिंदुओं में गुस्सा जगाया
एनआरआई हिंदुओं ने पाया कि बीबीसी की प्रधानमंत्री मोदी के विरोध रिपोर्टिंग खासतौर से गुजरात दंगों के डॉक्यूमेंट्री झूठ से भरे हुए थे। इसी तरह, बीबीसी द्वारा रिपोर्ट की गई लीसेस्टर हिंसा भी उतनी ही झूठी थी। उन्होंने ‘हिंदुत्व’ शब्द को इस तरह पेश करने की कोशिश की जैसे कि यह कुछ नकारात्मक हो। वास्तव में, हिंसा में तथाकथित दक्षिणपंथी अतिवाद या फासीवादी प्रोपेगेंडा का आरएसएस या बीजेपी से कुछ लेना-देना नहीं था। हालाँकि, उन्होंने इसे इस तरह पेश किया। ब्रिटेन में रहने वाले हिंदू अभी इससे उबरे नहीं थे कि पीएम मोदी के खिलाफ बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ने उनके गुस्से को बढ़ा दिया।
लीसेस्टर हिंसा की जाँच के बारे में बोलते हुए पंडित सतीश ने कहा कि मामले की जाँच में अधिक समय लग रहा है। गौरतलब है कि अब तक लगभग 120 गिरफ्तारियाँ की जा चुकी हैं और कुछ हफ्ते पहले पुलिस ने हिंसा के कुछ आरोपितों की पहचान करने के लिए जनता से मदद भी माँगी थी। दिलचस्प बात यह है कि मुस्लिम समुदाय ने इसकी शिकायत की और इसे ‘मुस्लिम मामला’ बनाने और मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की कोशिश के रूप में पेश किया किया है।
लीसेस्टर ने डॉक्यूमेंट्री को लेकर बीबीसी के विरोध में अनिवासी भारतीयों को सड़कों पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विशेष रूप से, फर्जी नैरेटिव फैलाने में बीबीसी सबसे प्रमुख अपराधियों में से एक था। उन्होंने उन लोगों को एक मँच दिया जो स्पष्ट रूप से भारत विरोधी और हिंदू विरोधी थे। यह अपनी लीसेस्टर रिपोर्टिंग में पूरी तरह से पक्षपाती था और फिर प्रधानमंत्री पर बनाई गई डॉक्यूमेंट्री में भी पक्षपाती था।
पंडित सतीश ने कहा, “लीसेस्टर तक, ब्रिटिश हिंदुओं ने बीबीसी के पूर्वाग्रह को वीपीसीसी (Vestigial post-colonial condescension) समझा था, लेकिन लीसेस्टर के साथ बीबीसी के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदल गया है। यहाँ बीबीसी ने घृणा फैलाने वाले अपराधियों के लिए मीडिया सुरक्षा प्रदान की और हिंसा के अपराधियों के रूप में हिंदू पीड़ितों को चित्रित किया। अब इन गतिविधियों के साथ, अधिकांश ब्रिटिश हिंदू स्वीकार करते हैं कि बीबीसी ‘ने भारत को तोड़ने वाली ताकतों को अपनी आत्मा बेच दी है।” वीपीसीसी एक प्रकार का पूर्वाग्रह है जो श्वेत वर्चस्ववादियों द्वारा लाखों भारतीयों को गुलाम बनाने से जुड़ा है।
यह लेख पंडित सतीश के शर्मा से हुई चर्चा पर आधारित है।