ताइवान में चीन को बड़ा झटका लगा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कट्टर विरोधी लाई चिंग-ते ने राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनावों में जीत हासिल की है। शनिवार (13 जनवरी, 2024) को ताइवान में राष्ट्रपति चुनाव की मतगणना की गई, जिसमें उन्होंने जीत दर्ज की। अभी तक वोटिंग पूरी नहीं हुई है, लेकिन लाई को विजेता घोषित कर दिया गया है। वो मौजूदा समय में ताईवान के उप-राष्ट्रपति हैं और अब 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे।
सत्तारूढ़ ‘डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी’ (DPP) के लाई चिंग-ते, जिन्हें विलियम लाई नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने 41.6% वोटों के साथ जीत हासिल की। उनके प्रतिद्वंद्वी, कुओमिन्तांग (KMT) के होऊ यू-इह ने 33.4% वोट हासिल किए। लाई चिंग-ते एक स्वतंत्रतावादी नेता हैं जिन्हें चीन द्वारा एक ‘उपद्रवी‘ के रूप में देखा जाता है। उनकी जीत से चीन-ताइवान संबंधों में तनाव बढ़ने की संभावना है।
लाई चिंग-ते ने अपने चुनावी अभियान के दौरान एक अधिक स्वतंत्रतावादी रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि वह ताइवान की संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और चीन के साथ एकीकरण के किसी भी प्रयास का विरोध करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह ताइवान को एक अधिक लोकतांत्रिक और समृद्ध समाज बनाने के लिए काम करेंगे।
लाई चिंग-ते की जीत से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को झटका लगा है। शी जिनपिंग ताइवान को चीन का एक प्रांत मानते हैं और उन्होंने ताइवान को अपने नियंत्रण में लाने के लिए सैन्य कार्रवाई करने की धमकी दी है। लाई चिंग-ते की जीत के बाद, ताइवान में चीन-विरोधी भावना बढ़ने की संभावना है। लाई चिंग-ते ने ताइवान के लोगों से चीन के साथ संघर्ष के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है।
अमेरिका से नजदीकी की वजह से खार खाता है जिनपिंग
लाई चिंग-ते की जीत से अमेरिकी खेमे में भी खुशी की लहर है। ताइवान को भले ही अमेरिका आधिकारिक रूप से अलग देश नहीं मानता, लेकिन ताइवान की संप्रभुता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं, चीन ताइवान को अपना एक प्रांत मानता है और वह ताइवान को अपने नियंत्रण में लाने के लिए सैन्य कार्रवाई करने की धमकी देता है। लाई चिंग-ते की जीत से चीन की चिंता बढ़ने की संभावना है क्योंकि वह ताइवान को अपने नियंत्रण में लाने के प्रयासों को और अधिक कठिन बना सकती है।
लाई चिंग-ते की जीत से चीन-ताइवान संबंधों में तनाव बढ़ने की संभावना है। लाई चिंग-ते एक स्वतंत्रतावादी नेता हैं जिन्हें चीन द्वारा एक “उपद्रवी” के रूप में देखा जाता है। उनकी जीत से चीन की चिंता बढ़ने की संभावना है क्योंकि वह ताइवान को अपने नियंत्रण में लाने के प्रयासों को और अधिक कठिन बना सकती है।