पाकिस्तान के पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति, स्थापना होने के बाद तीन बाद खंडित की जा चुकी है। अब आज दोबारा से करतारपुर साहिब में सिख साम्राज्य के पहले शासक महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा स्थापित की जाएगी।
पाकिस्तान में महाराजा रणजीत सिह की 9 फुट की कास्य की प्रतिमा पहली बार 2019 में स्थापित हुई थी। उस समय इसे उनकी समाधि के पास लाहौर किले में बनाया गया था। हालाँकि पाकिस्तान के इस्लामी कट्टरपंथियों ने महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति को दो बार तोड़ा था। एक बार 2019-20 में और दूसरी बार 2021 में।
ऐसे में पंजाब के पहले सिख मंत्री और पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष सरकार रमेश सिंह अरोड़ा ने फिर से इस मूर्ति की स्थापना की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बहाल की गई प्रतिमा को करतारपुर साहिब में रखा जा रहा है ताकि वहाँ आने वाले भारतीय सिख इसके दर्शन कर सकें। उन्होंने प्रतिमा की सुरक्षा के भी आश्वासन दिए हैं।
बता दें कि महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति की पुनर्स्थापना का काम 26 जून यानी आज 185वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में हो रहा है। इसके लिए करीबन 450 भारतीय, पाकिस्तान में है। महाराजा रणजीत सिंह ने 19वीं शताब्दी में पंजाब पर शासन किया था। वे सिख साम्राज्य के पहले महाराजा थे। उन्हें उनके शौर्य और साहस के कारण कभी नहीं भुलाया जा सकता।
आज जिस पाकिस्तान की जमीं पर महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति लगने वाली है उसी पाकिस्तान के बालाकोट में महाराज ने 300 इस्लामी आतंकियों का सफाया किया था। ऐसा उन्होंने 1831 में किया था जब सैयद अहमद शाह ने राजा रणजीत सिंह द्वारा अज़ान और गौतस्करी पर प्रतिबंध लगाने की बात सुनकर जिहाद की घोषणा कर दी थी। उस समय महाराजा ने उसे सबक सिखाने के लिए अपनी सेना के साथ एक पहाड़ी के पास डेरा डाल लिया।
शुरू में तो अहमद शाह ने हमले से बचने के लिए खेतों खेतों में पानी अधिक मात्रा में डलवा दिया ताकि जब महाराजा रणजीत सिंह की सेना हमला करने आएँ तो उनकी गति धीमी पड़ जाए। हालाँकि उसका पैंतरा काम नहीं आया। दोनों पक्ष एक दूसरे पर हमला करने के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करते रहे और एक दिन एक अज़ीबोगरीब घटना हुई जिसने सिख सेना को मौका दे दिया कि वो इस्लामी कट्टरपंथियों को मार गिराएँ।
मौजूदा लेखों में जिक्र मिलता है कि, 6 मई 1831 के दिन एक जिहादी अपना दिमागी संतुलन खो बैठा और उसे अपने सामने हूरें दिखाई देने लगीं। वो एकदम से चिल्लाते हुए भागा कि उसे हूर बुला रही है और जाकर उन्हीं धान के खेतों में फँस गया जिसे सिख सेना के लिए जाल की तरह बिछाया गया था। मौक़े को परखते हुए सिखों की सेना ने उसे अपनी बंदूक का निशाना बनाकर मार गिराया। उन जिहादियों में हूरों के पास पहुँचने वाला चिराग अली पहला नाम था। इसके बाद सिख सेना ने सभी जिहादियों को ढेर करना शुरू कर दिया। उस दौरान भी इस युद्ध में क़रीब 300 से ज्यादा जिहादियों को सिखों की सेना ने हूरों के क़रीब पहुँचाया था जिनकी कब्रें आज भी वहाँ पर मौजूद हैं।