पाकिस्तान के अख़बार डॉन ने साल 2023 में होने वाले रमजान में पाकिस्तानियों के लिए मौजूदा आर्थिक संकट को बड़ी मुसीबत के तौर पर बताया है। अख़बार का मानना है कि इस से निम्न और मध्यम वर्ग के लोग ज्यादा प्रभावित होंगे। इसी के साथ दावा किया गया है कि पिछले साल 2022 के मुकाबले इस साल लोग अपनी खरीदारी में कटौती कर सकते हैं। इसी लेख में सरकार से भी यह उम्मीद की गई है कि वो रमज़ान के महीने में आम लोगों के लिए सस्ते रेट पर सामान उपलब्ध करवाए।
गौरतलब है कि रमज़ान महीने में लगभग 12 घंटे घंटे भूखे-प्यासे रह कर मुस्लिम इफ्तार पार्टी में अपना रोजा तोड़ते हैं। हालाँकि, पाकिस्तान के मौजूदा हालात को देखते हुए इस बात की संभावना काफी कम लग रही है कि वह रमज़ान के महीने में भी महँगाई पर लगाम लगा पाएगी। टैक्स आदि में छूट देने की स्कीम किसी इन हालातों को और भी बद से बदतर बना सकती है। इसी के साथ मौजूदा सामानों में 10 से 15% की छूट लोगों को आकर्षित नहीं कर पाएगी, जब तक भावों में यह गिरावट 30 से 40% तक न हो।
कराची रिटेल ग्रॉसर्स समूह के महासचिव फरीद कुरैशी ने मीडिया संस्थान ‘डॉन’ को बताया कि वो रमज़ान के लिए 2 टाइप के राशन पैक कर रहे हैं। इसमें पहले बैग का दाम 4000 पाकिस्तानी रुपए है। इस पैकिंग में आटा, चीनी, चावल, दाल और चाय है। वहीं दूसरा पैक पहले पैक से 2000 रुपए महँगा है। हालाँकि, इसमें पहले के मुकाबले सामान भी ज्यादा है। 6000 रुपए के इस पैक में नमक, तेल, घी, चना और सेवई भी है।
फरीद कुरैशी के मुताबिक, साल 2022 के रमज़ान में उन्होंने सामानों को 40 से 50% कम रेट पर बेचा था। चावल काफी महँगा होने के चलते फरीद ने उसे अपनी पैकिंग में जगह नहीं दी है। फरीद कुरैशी का कहना है कि पहले 150 से 300 रुपए किलो की दर पर मिलने वाला चावल अब 300 से 500 रुपए प्रति किलोग्राम के रेट से बिक रहा है। वहीं फेडरल बी नामक इलाके के एक चिकन डीलर के मुताबिक, बढ़ी हुई महंगाई के चलते माँस की बिक्री भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। उनका कहना है कि पहले हफ्ते में एक ग्राहक औसतन 2 से 3 पक्षी खरीदता था पर अब महँगाई बढ़ने पर यह खरीद सप्ताह में 1 पक्षी पर सिमट गई है।
कॉलोनी में राशन बेचने वाले एक दुकानदार का कहना है कि मौजूदा हालत को देखते हुए सामान उधार देने में दिक्कत आती है। दुकानदार का दावा है कि उधार ले जाने वाले कई बार पैसे देते ही नहीं हैं और कुछ अन्य लोग पैसे देर से चुकाते हैं, क्योंकि उनको मिला वेतन महीना खत्म होने से पहले ही खत्म हो जाता है। मीडिया संस्थान ‘डॉन’ का मानना है कि पाकिस्तान की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इस बार इफ्तारी करवाने वाली संस्थाओं पर लम्बी लाइनें दिख सकती हैं।
आर्थिक समस्या में होते हुए भी इफ्तारी और सेहरी जैसे कार्यक्रम करवाने वाली संस्थाओं को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते पीछे हटना मुश्किल है।