सऊदी अरब की सरकार ने 100 इमामों और मौलवियों को बरख़ास्त कर दिया है। इन सभी ने कट्टरपंथी इस्लामी संगठन ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ की आलोचना करने या उसकी हरकतों की निंदा करने से इनकार कर दिया था। इनमें से अधिकार ऐसे मौलवी हैं, जो मक्का और अल-कासिम में उपदेश दिया करते थे। इस्लामी मामलों के मंत्रालय ने इन मौलवियों को निर्देश जारी किया था कि ये समाज को बाँटने वाले ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ की आलोचना करें।
लेकिन, इन सभी ने कट्टरपंथी संगठन की हरकतों की निंदा करने से इनकार कर दिया। इससे पहले ‘सऊदी काउंसिल ऑफ सीनियर स्कॉलर्स’ ने निर्देश दिया था कि शुक्रवार को जुमे के दिन होने वाली नमाज के दौरान ये सभी मौलवी मुस्लिमों को ये बताएँ कि ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ एक आतंकी संगठन है जो इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं को जनता तक पहुँचाने की बजाए अपने हितों के लिए उसके साथ छेड़छाड़ करता है। मौलवियों को लोगों को बताना था कि ये संगठन इस्लाम की शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता।
2014 में ही सऊदी अरब ने ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ को आतंकी संगठन घोषित करते हुए मुल्क में इसे प्रतिबंधित कर दिया था। 1950 के दशक में सऊदी अरब ने संगठन के हजारों कार्यकर्ताओं को शरण दी थी, जिन्हें मिस्र और सीरिया सहित कई इलाकों में प्रताड़ित किया जा रहा था। जल्द ही उन्होंने सऊदी में प्रभाव कायम करना शुरू कर दिया। 1990 में इराक का कुवैत पर हमला और अमेरिका का इराक पर हमले में सऊदी अरब के शामिल होने से संगठन के साथ उसके रिश्ते खराब हो गए।
The Ministry of Islamic Affairs has terminated the services of more than 100 mosque imams and preachers for their negligence of the ministry’s directives to warn against the dangers of the Muslim Brotherhood in the Friday sermon https://t.co/6v3k5cUmip
— Saudi Gazette (@Saudi_Gazette) December 16, 2020
इस समूह ने मुल्क में अमेरिकी सेना की मौजूदगी की निंदा करते हुए सुधारों की वकालत की। इसके बाद इस संगठन को मुल्क में ‘बुराइयों की जड़’ बताते हुए इसका दमन शुरू कर दिया गया। 2013 में मिस्र में आंदोलन हुआ और ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ से आने वाले मोहम्मद मोर्सी को राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इस आंदोलन के पीछे सऊदी अरब का हाथ बताया गया। सऊदी का इस्लामी मंत्रालय इस मामले में सख्त है और उसने कहा है कि मजहब की आड़ में वो इस संगठन को पनपने नहीं देगा।
इससे पहले सऊदी अरब ने बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोगों (NRIs) को वापस प्रत्यर्पित किया था। ये सभी खाड़ी मुल्क में रहते हुए CAA के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे थे। इन्होंने दिल्ली के शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन से प्रेरित होकर वहाँ भी सड़क पर उतर कर मोदी सरकार के इस कानून के खिलाफ जम कर प्रदर्शन किया था। बाद में सऊदी अरब ने इन सभी को भारत को सौंपने का निर्णय लिया।